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बर्थडे स्‍पेशल | एकदम गजब था रामानंद सागर और उनकी ‘रामायण’ का जादू

‘रामायण’ देखने के लिए लोग बिजली के अभाव में ट्रैक्‍टर की बैटरी का इस्‍तेमाल इन्‍वर्टर की तरह करते थे.

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रामानंद सागर ऐसी शख्‍स‍ियत के रूप में याद किए जाते हैं, जिन्‍होंने टीवी सीरियल 'रामायण' के जरिए करोड़ों देशवासियों के दिलों पर राज किया. उन्‍होंने रामकथा को छोटे पर्दे पर बेहद जीवंत और रोचक तरीके से पेश कर लंबे अरसे तक लगभग पूरे देश को 'सम्‍मोहित' किए रखा.

रामानंद सागर के जन्‍मदिन (29 दिसंबर) पर हम उनके जीवन और खासकर 'रामायण' सीरियल से जुड़ी कुछ खास बातें पेश कर रहे हैं.

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रामानंद सागर लेखक, पत्रकार, कहानीकार, स्‍क्रिप्‍ट राइटर, डायलॉग राइटर और फिल्‍म निर्माता-निर्देशक थे. हालांकि उनके पूरे व्‍यक्‍त‍ित्‍व को बयां करने के लिए इतने शब्‍द नाकाफी हैं.

लाहौर से मायानगरी तक का सफर

रामानंद सागर का जन्‍म 29 दिसंबर, 1917 को लाहौर के पास हुआ था, जो अविभाजित भारत का अंग था. बचपन का नाम चंद्रमौली चोपड़ा था. इनकी नानी ने इन्‍हें गोद लिया था, जिन्‍होंने नया नाम दिया रामानंद . बंटवारे के बाद इनका परिवार भारत आ गया. शुरुआती जीवन संघर्ष से भरा रहा.

मायानगरी मुंबई में इन्‍होंने करियर की शुरुआत कहानी और स्‍क्रीनप्‍ले लिखने से की. तेजी से कामयाबी की सीढ़ि‍यां चढ़ते हुए 1950 में प्रोडक्शन कंपनी सागर आर्ट कॉरपोरेशन शुरू की. कई फिल्‍मों और धारावाहिकों के जानदार डायलॉग लिखे. बतौर निर्माता-निर्देशक कई हिट फिल्‍में और सीरियल दिए. आरजू, इंसानियत, पैगाम, आंखें, ललकार, गीत जैसी कई बेहतरीन फिल्‍में बनाने के बाद छोटे पर्दे पर भी धूम मचाई.

‘रामायण’ देखने के लिए लोग बिजली के अभाव में ट्रैक्‍टर की बैटरी का इस्‍तेमाल इन्‍वर्टर की तरह करते थे.
ग्राफिक्‍स: रोहित मौर्य/क्‍व‍िंट हिंदी
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वैसे तो इनके बनाए कई टीवी सीरियल चर्चित हुए, लेकिन 'रामायण' के जादू की तो बात ही कुछ और है. रामायण के कुछ खास पहलुओं पर एक नजर...

1. 'रामायण' की पहली कड़ी 25 जनवरी, 1987 को दिखाई गई. इस सीरियल का प्रसारण 31 जुलाई, 1988 तक चला. दूरदर्शन पर इसे रविवार सुबह को 45 मिनट (विज्ञापन समेत) का स्‍लॉट मिला, जो कि उस दौर में एक अनोखी बात थी. तब ज्‍यादातर सीरियल को 30 मिनट के स्‍लॉट मिलते थे.

2. 78 एपिसोड वाला यह सीरियल सुपरहिट रहा, लोकप्रियता में भी और कमाई के नजरिए से भी. पहले कई फिल्‍मकारों ने इसके फ्लॉप होने की आशंका जाहिर की थी. लेकिन इसने दुनिया में सबसे ज्‍यादा देखे जाने वाले मिथकीय (Mythological) सीरियल के तौर पर 'लिम्‍का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स' में जगह पाई थी.

3. तब 'रामायण' टीवी पर आते ही देश की सड़कों और गलियों में दिनदहाड़े कर्फ्यू जैसा सन्‍नाटा पसर जाया करता था. लोग सीरियल की टाइमिंग देखकर अपना सुबह का प्रोग्राम सेट करते थे. 1987-88 के दौरे में कोई भी इस हकीकत को अपने आसपास आसानी से महसूस कर सकता था.

4. उस दौर में देश की आबादी करीब 80 करोड़ थी. इस सीरियल को करीब 10 करोड़ लोग देखते थे. आज भी डीवीडी और यू-ट्यूब पर लोग इसकी कड़ि‍यों को खोजकर देखते हैं.

‘रामायण’ देखने के लिए लोग बिजली के अभाव में ट्रैक्‍टर की बैटरी का इस्‍तेमाल इन्‍वर्टर की तरह करते थे.
राम और सीता के किरदार में अरुण गोविल और दीपिका चिकलिया (फोटो साभार: सागर आर्ट्स)
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5. 'रामायण' के टेलीकास्‍ट के दौर में अरुण गोविल-दीपिका चिकलिया की तस्‍वीर वाले कैलेंडर भी खासे लोकप्रिय हो चुके थे, जिन्‍होंने राम और सीता का किरदार निभाया था. कई तो इन्‍हें राम-सीता की तरह पूजते भी थे.

6. रामानंद सागर का मानना था कि रामायण के पात्र पर्दे पर तभी जीवंत किरदार निभा सकते हैं, जब वे आचरण में भी वैसी ही सादगी और शुद्धता लाएं. उन्‍होंने सीरियल के सभी पात्रों को हिदायत दे रखी थी कि सीरियल बनने के दौरान वे आचरण बेहतर रखें. सभी पात्रों ने उनकी बातों पर अमल भी किया.

7. अपने दौर का वह ऐसा पहला सीरियल था, जिसे लोग बड़े पैमाने पर इकट्ठे होकर, सामूहिक तौर पर देखते थे. तब घर-घर टीवी सेट की पहुंच आज जैसी नहीं थी. हालांकि ग्रामीण और कस्‍बाई इलाकों में भी लोग बिजली के अभाव में ट्रैक्‍टर की बैटरी का इस्‍तेमाल इन्‍वर्टर की तरह करते थे. ऐसे रामभक्‍तों की भी कोई कमी नहीं थी, जो बिना नहाए-धोए और अगरबत्‍ती जलाए अपना टीवी ऑन नहीं करते थे.

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