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अमूल स्टार है ‘अटरली बटरली’ थरूर परिवार 

थरूर की बहनों ने बचपन में अमूल एड में डेब्यू किया तो थरूर देर आए मगर दुरुस्त आए

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अमूल के साथ मेरे परिवार का जुड़ाव बेहद निजी है. यह तब शुरू हुआ जब 1961 में अमूल के लिए विज्ञापन करने वाली कंपनी एएसपी (एडवर्टाइजिंग एंड सेल्स प्रमोशन लिमिटेड) को दूध के पाउडर का अपनी तरह का पहला एड कैंपेन शुरू करने के लिए एक बच्चे की तस्वीर की जरुरत थी.

वे कुल 712 तस्वीरें देख चुके थे जब मेरे पिता के मित्र और उनके क्रिएटिव हेड सिल्वेस्टर डा कुन्हा ने मेरे पिता (ऐड क्लब ऑफ बॉम्बे) से पूछा कि उनकी भी तो एक छोटी बच्ची है तो क्यों न वे उसकी भी तस्वीर दिखा दें.

मेरे पिता ने तस्वीर दे दी, फिर उसके बाद जो हुआ, इतिहास है. मेरी छोटी बहन शोभा थरुर पहली अमूल बेबी बनी. एएसपी ने इस चयन को ट्रेड प्रेस के विज्ञापन में छपवाया था.

थरूर की बहनों ने बचपन में अमूल एड में डेब्यू किया तो थरूर देर आए मगर दुरुस्त आए
712 बच्चों की तस्वीरें देखने के बाद शोभा थरुर चुनी गईं पहली अमूल बेबी. (फोटो: शशि थरूर)
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इतिहास ने खुद को दोहराया जब अगले साल एएसपी ने कहा कि उन्हें अगले कैंपेन के लिए रंगीन तस्वीर की जरुरत है. तब तक शोभा बड़ी हो चुकी थी. पर उसकी छोटी बहन स्मिता का जन्म हो चुका था. और इस बार एक आसान तलाश के बाद स्मिता पहली रंगीन अमूल बेबी बन गई.

थरूर की बहनों ने बचपन में अमूल एड में डेब्यू किया तो थरूर देर आए मगर दुरुस्त आए
पहली रंगीन अमूल बेबी, स्मिता थरुर. (फोटो: शशि थरूर)
अपनी तेजी और प्रासंगिकता की वजह से अमूल के विज्ञापनों ने उसे हमेशा पाठकों की नजर में बनाए रखा. इनकी वजह से अमूल ने न सिर्फ भारतीयों के खाने में बल्कि उन के दिल और दिमाग में भी जगह बना ली.

यह एक साधारण सी बात हो सकती है पर मेरे परिवार के लिए यह एक बड़ी बात थी. हालांकि अपने पहले मॉडलिंग असाइनमेंट्स के लिए मेरी बहनों को कुछ खास कीमत नहीं मिली थी.

अमूल के विज्ञापन सिर्फ अखबारों में ही नहीं छपे थे (टीवी से पहले के दिनों में अखबार की पहुंच बहुत ज्यादा थी), इन विज्ञापनों को पोस्टर बना कर उन सब स्टोर्स में भी लगाया गया था जहां अमूल पाउडर बिक रहा था.

30 साल से ज्यादा वक्त बाद जब स्मिता ने अपनी तस्वीर को देश के किसी धूल भरे कोने में एक दुकान में लगी देखी तो वो हैरान रह गई थी.

थरूर की बहनों ने बचपन में अमूल एड में डेब्यू किया तो थरूर देर आए मगर दुरुस्त आए
अमूल बेबी स्मिता थरूर. (फोटो: शशि थरूर)
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जहां मेरी बहनें (और हम सब) अमूल बेबी बनने की खुशी का आनंद ले रही थे, मैं खुद एक दुबले-पतले, कमजोर, दमे से परेशान बच्चे की तरह बड़ा हो रहा था, जो अमूल जैसे किसी स्वास्थ्य को बढ़ाने वाले प्रोडक्ट के विज्ञापन का हिस्सा बिल्कुल नहीं बन सकता था.

पर जब में संयुक्त राष्ट्र में काम कर वापस लौटा और राजनीति में आया तो अमूल के विज्ञापनों में मुझे भी ले ही लिया गया.

ये एक बच्चे के गोल गालों को दिखाने वाले विज्ञापनों की तस्वीरें नहीं थीं, ये मेरा मजाक बनाते कार्टून थे, जैसे कि अमूस अक्सर देश के उन प्रसिद्ध लोगों के कार्टून बनाया करता है जो शायद खुद को ज्यादा गंभीर समझे जाने की उम्मीद करते हैं.

थरूर की बहनों ने बचपन में अमूल एड में डेब्यू किया तो थरूर देर आए मगर दुरुस्त आए
थरुर की ऑक्सफोर्ड स्पीच के बाद अमूल का विज्ञापन. (फोटो: अमूल का Twitter page)
इन कार्टून विज्ञापनों में किसी मुद्दे पर कार्टून बनाया जाता है और साथ में होता है एक मजेदार कैप्शन, जो अक्सर डबल मतलब का होता है.


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अब तक मेरे ऊपर 4 या 5 कार्टून बने हैं, और मुझे बहुत मजा आया. बड़े शहरों की मुख्य जगहों पर, बड़े अखबारों के पहले पन्ने पर, हर जगह लगे ये विज्ञापन. हर विज्ञापन उस खास जगह को दिखाता है जो अमूल ने हमारे मन में अपने लिए बना ली है.

और एड का स्लोगन हमारे जीवन और खुशियों में अमूल की ‘अटरली-बटरली’जरुरत को दिखाता है.

थरूर की बहनों ने बचपन में अमूल एड में डेब्यू किया तो थरूर देर आए मगर दुरुस्त आए

लगातार द्विभाषी होते ये विज्ञापन मजेदार हैं, ये साफ दिखाते हैं कि इस सप्ताह भारत में किस बारे में बात हो रही है. पिछले कुछ दशकों में इन विज्ञापनों ने हमारे देश के सामाजिक बदलावों का एक इतिहास तैयार कर लिया है.

अपनी तेजी और प्रासंगिकता की वजह से अमूल के विज्ञापनों ने उसे हमेशा पाठकों की नजर में बनाए रखा. इनकी वजह से अमूल ने न सिर्फ भारतीयों के खाने में बल्कि उन के दिल और दिमाग में भी जगह बना ली है.

थरूर की बहनों ने बचपन में अमूल एड में डेब्यू किया तो थरूर देर आए मगर दुरुस्त आए

और इस तरह हर थरूर के घर में अमूल की एक खास जगह है. मेरे पिता को आज मेरा हल्का सा मजाक बनाते इन कार्टूनों को अपनी पसंदीदा मरीन ड्राइव पर देखकर बहुत खुशी होती. वो खुश हुए होते कि आखिर मैंने अमूल एड में आकर अपनी बहनों से बराबरी कर ली.

(संयुक्त राष्ट्र के पूर्व अंडर सेक्रेटरी जनरल शशि थरूर इस समय कांग्रेस सांसद व लेखक हैं.)

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