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World Environment Day: गर्माती धरती, पिघलते ग्लेशियर,खतरे की आहट 

पर्यावरण का प्रदूषण सिर्फ किसी राष्ट्र विशेष की निजी समस्या न होकर एक सार्वभौमिक चिंता का विषय बन गया है

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World Environment Day: गर्माती  धरती, पिघलते ग्लेशियर,खतरे की आहट 
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मार्च 2014 में यूनाइटेड नेशन की एक साइंटिस्ट कमेटी के चीफ ने चेतावनी दी थी कि अगर ग्रीनहाउस गैसों का प्रदूषण कम नहीं किया गया तो क्लाइमेट चेंज का दुष्प्रभाव बेकाबू हो सकता है. ग्रीनहाउस गैसें धरती की गर्मी को वायुमंडल में ब्लॉक कर लेती हैं, जिससे तापमान बढ़ जाता है और मौसम में बदलाव देखे जा रहे हैं. क्लाइमेट चेंज पर अंतर-सरकारी समिति ने इस विषय पर 32 सेगमेंट की एक रिपोर्ट जारी की है.

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समय की पुकार है कि अब कार्रवाई की जाए. ग्रीनहाउस गैसों का इमिशन कम नहीं किया गया, तो हालात बेकाबू हो जाएंगे. नोबल पुरस्कार विजेता वैज्ञानिकों के दल की तैयार इस रिपोर्ट में कहा गया है कि यूरोप में जानलेवा लू, अमेरिका में दावानल, ऑस्ट्रेलिया में भीषण सूखा और मोजाम्बिक, थाईलैंड और पाकिस्तान में प्रलयकारी बाढ़ जैसी 21वीं शताब्दी की आपदाओं ने यह दिखा दिया है कि मानवता के लिए मौसम का खतरा कितना बड़ा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि क्लाइमेट चेंज का प्रभाव अधिक बढ़ा तो खतरा और बढ़ जाएगा.

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कुछ समय पहले साइनस के जानकार जेम्स लवलौक ने चेतावनी दी थी कि अगर दुनिया के लोगों ने एकजुट होकर पर्यावरण को बचाने की कोशिश नहीं की तो जलवायु में भारी बदलाव के परिणामस्वरूप 21वीं सदी के आखिरी तक छह अरब लोग मारे जाएंगे. संसार के एक महान पर्यावरण विशेषज्ञ की इस भविष्यवाणी को मानव जाति को हल्के में नहीं लेना चाहिए.

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आज पूरे विश्व के जलवायु में होने वाले परिवर्तन मनुष्यों के द्वारा ही उत्पन्न किये गये हैं.
फोटो:iStock

आज जब दक्षिण अमेरिका में जंगल कटते हैं तो उससे भारत का मानसून प्रभावित होता है. इस प्रकार प्रकृति का कहर किसी देश की सीमाओं को नहीं जानती. वह किसी धर्म किसी जाति और किसी देश और उसमें रहने वाले नागरिकों को पहचानती भी नहीं. वास्तव में आज पूरे विश्व के जलवायु में होने वाले परिवर्तन मनुष्यों ने ही उत्पन्न किये हैं.

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डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगेन में दिसंबर, 2010 में आयोजित सम्मेलन में दुनिया भर के 192 देशों से जुटे नेता जलवायु परिवर्तन से संबंधित किसी भी नियम को बनाने में सफल नहीं हुए थे. इस सम्मेलन के तुरंत बाद आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ब्राउन ने कहा-

‘यह तो बस एक पहला कदम है, इसे कानूनी रूप से बाध्यकारी बनाने से पहले बहुत से कार्य किये जाने हैं. असली दिक्कत यह है कि सार्वभौमिक हित का मसला होते हुए भी यहा राष्ट्रीय हितों का विकट टकराव है. हमारा मानना है कि कई दशकों से पर्यावरण बचाने के लिए माथापच्ची कर रही दुनिया अब अलग-अलग देशों के कानूनों से उब चुकी है.

विश्व की कई जानी-मानी हस्तियों का मानना है कि अब अंतर्राष्ट्रीय अदालत बनाने का ही रास्ता बचा है, ताकि हमारी गलतियों की सजा अगली पीढ़ी को न झेलनी पड़ी.

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विश्व की कई जानी-मानी हस्तियों का मानना है कि अब अंतर्राष्ट्रीय अदालत बनाने का ही रास्ता बचा है, ताकि हमारी गलतियों की सजा अगली पीढ़ी को न झेलनी पड़ी.
फोटो:iStock
अभी हाल ही में सैन फ्रांसिस्को स्थित गोल्डमैन एनवार्नमेंट फाउंडेशन द्वारा भारत के रमेश अग्रवाल को पर्यावरण के सबसे बड़े पुरस्कार ‘गोल्डमैन प्राइज’ से नवाजा गया है. उन्होंने छत्तीसगढ़ में अंधाधुंध कोयला खनन से निपटने में ग्रामीणों ने मदद की और एक बड़ी कोयला परियोजना को बंद कराया. रमेश अग्रवाल छत्तीसगढ़ में काम करते हैं और वह लोगों की मदद से एक बड़े प्रस्तावित कोयला खनन को बंद कराने में सफल रहे.

उनके साथ इस पुरस्कार को पाने वाले अन्य लोगों में पेरु, रूस, दक्षिण अफ्रीका, इंडोनेशिया और अमेरिका के 6 पर्यावरण कार्यकर्ता शामिल हैं. इन सभी विजेताओं को प्रत्येक को पौने दो लाख डालर की राशि मिलेगी. इससे पहले ग्लोबल वार्मिग के खिलाफ लड़ाई के लिए संयुक्त राष्ट्र संघ के क्लाइमेट पैनल के राजेंद्र पचौरी और अमेरिका के पूर्व उप राष्ट्रपति अलगोर को शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है.

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पर्यावरण का प्रदूषण सिर्फ किसी राष्ट्र विशेष की निजी समस्या न होकर एक सार्वभौमिक चिंता का विषय बन गया है
फोटो:iStock

जलवायु परिवर्तन की समस्या पर अभी हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भी कहा है कि जलवायु परिवर्तन पृथ्वी पर ऐसे बदलाव ला रहा है, जिससे मानव जाति पर गंभीर प्रभाव पड़ेगा. उन्होंने अमेरिका के लोगों से स्वस्थ और बेहतर भविष्य के लिए पर्यावरण सुरक्षा की अपील की. वास्तव में आज मानव और प्रकृति का सह-संबंध सकारात्मक न होकर विध्वंसात्मक होता जा रहा है.

ऐसी स्थिति में पर्यावरण का प्रदूषण सिर्फ किसी राष्ट्र विशेष की निजी समस्या न होकर एक सार्वभौमिक चिंता का विषय बन गया है. पर्यावरण असंतुलन हर प्राणी को प्रभावित करता है. इसलिए पर्यावरण असंतुलन पर अब केवल विचार-विमर्श के लिए बैठकें आयोजित नहीं करना है. अब उसके लिए ठोस पहल करने की आवश्यकता है, नहीं तो बदलता जलवायु, गर्माती धरती और पिघलते ग्लेशियर जीवन के अस्तित्व को ही संकट में डाल देंगे. जरूरी हो जाता है कि विश्व का प्रत्येक नागरिक पर्यावरण समस्याओं से निपटने के लिए अपना-अपना योगदान दें.

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विश्व भर में जलवायु परिवर्तन से होने वाले खतरों से निपटने के लिए विश्व के सभी देशों को एक मंच पर आकर विश्व संसद, विश्व सरकार और विश्व न्यायालय के गठन पर सर्वसम्मति से निर्णय लिया जाना चाहिए.

(इनपुट IANS)

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