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लालू प्रसाद का कार्यकाल सिर्फ ‘सामाजिक न्याय’ तक सीमित नहीं

1990 के बाद न सिर्फ देश में, बल्कि राज्य स्तर भी काफी परिवर्तन हुए

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लालू प्रसाद के 15 साल के शासनकाल को अक्सर सिर्फ सामाजिक न्याय से जोड़ दिया जाता है. ये सच है कि 1967-1990 तक जो सियासी उठापटक बिहार की राजनीति में थी, उसको एक विराम 1990 में मिला, जब लालू मुख्यमंत्री चुने गए. एक पूर्ण बहुमत की सरकार बनी.

लालू प्रसाद के 15 साल के कार्यकाल को सिर्फ सामाजिक न्याय के चादर में समेट देना बेमानी है.

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1990 के बाद न सिर्फ देश में, बल्कि राज्य स्तर भी काफी परिवर्तन हुए. देश में आर्थिक उदारीकरण का दौर चला. विदेशी कंपनियों का आगमन हुआ और विकास की एक धारा चली जिसका प्रभाव पूरे देश पर पड़ा.

मुख्यमंत्री बनने के बाद लालू के लिए सबसे बड़ी चुनौती थी कि जो लोग मुख्यधारा में नहीं हैं, उनको सबसे पहले इस धारा से जोड़ा जाये. उनकी बात जनप्रतिनिधि से लेकर प्रशासनिक महकमे तक संज्ञान में लिया जाये. समाज में व्याप्त विषमता को खत्म किया जाये. दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को उसका अधिकार मिले. सबको सामान शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य और रोजगार मिले. सबको एक समान जीने का अधिकार मिले.

बिहार में लालू के 15 साल

सामाजिक न्याय लालू यादव के कार्यकाल का सिर्फ एक हिस्सा है. इसके अलावा अनेक काम हुए, जिसे दर्ज नहीं किया गया. पूरे 15 साल के शासनकाल को सिर्फ 'जंगलराज' कहना तो वैसा है, जैसे इससे पहले बिहार में सब 'मंगल' था.

लालू प्रसाद के कार्यकाल में शिक्षा

बिहार में 1981-1991 के बीच शिक्षा दर में वृद्धि करीब 5 प्रतिशत थी. 1991-2001 के बीच शिक्षा दर में दशकीय वृद्धि 10 प्रतिशत है. इस 10 साल में करीब 6 विश्वविद्यालय खोले गए, जिनमें जयप्रकाश नारायण यूनिवर्सिटी (छपरा), भूपेंद्र नारायण मंडल यूनिवर्सिटी (मधेपुरा), वीर कुंवर सिंह यूनिवर्सिटी (आरा), मौलाना मजहरुल हक अरबी- फारसी विश्वविद्यालय (पटना) प्रमुख हैं.

नीतीश कुमार ने परंपरा को आगे बढ़ाया

ये भी सच है कि नीतीश कुमार ने इसी परंपरा को कायम रखा और 2001-2011 के बीच बिहार की शिक्षा में 16 % वृद्धि देखी गयी. लेकिन इसमें तो 5 साल का कार्यकाल आरजेडी का भी है. चिकित्सा के क्षेत्र में जननायक कर्पूरी ठाकुर मेडिकल कॉलेज (मधेपुरा) खोले गए. बिहार में सर्वशिक्षा अभियान 2001 में शुरू किया गया.

बिहार शिक्षा परियोजना परिषद

सोसायटी रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860 के अंतर्गत 1991 में बिहार शिक्षा परियोजना परिषद की स्थापना हुई और इस योजना के लिए वित्तीय सहायता 3:2:1 के अनुपात में यूनिसेफ, केंद्र और राज्य सरकार उपलब्ध कराती थी. इसी परियोजना के तहत सीतामढ़ी मॉडल जिला योजना 1992 में लागू की गयी थी.

इस योजना का का मुख्य लक्ष्य प्राथमिक शिक्षा का सर्वव्यापीकरण करना था. इसके अंतर्गत ग्राम शिक्षा समितियों की गठन किया गया. महिला समाख्या कार्यक्रम और कई ग्रामों में विद्यालय विकास कोष की स्थापना की गयी. इसके अलावा मध्‍याह्नन भोजन योजना 15 अगस्त 1995 की शुरुआत हुई.

बिहार में मिड-डे मिल के तहत 1995-2004 तक प्रति छात्र 3 किलोग्राम खाद्यान्‍न दिया जाता था. 1 जनवरी 2005 से सारे विद्यालय में पकाया हुआ भोजन दिया जाने लगा.

15 साल के शासनकाल में केंद्र सरकार ने भी बिहार को बहुत ज्यादा आर्थिक मदद नहीं दी. बची कसर बिहार से झारखण्ड विभाजन ने पूरी कर दी. अब सारे उद्योग झारखण्ड में चले गए. बिहार का विभाजन, सामंतों का अत्याचार, शासन पर अभिजात्य वर्ग का कब्जा और केंद्र सरकार का बिहार के प्रति दोहरा मापदंड- ऐसी कई चीजें झेलकर शासन करना एक पिछड़े तबसे से आने वाले मुख्यमंत्री के लिए आसान नहीं था.

(My Report कॉलम के लिए ये आलेख हमें एलपी यादव ने भेजा है. इस आर्टिकल में लेखक के अपने विचार हैं. इसमें क्‍विंट की सहमति जरूरी नहीं है.)

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