26 जून को, वाराणसी (Varanasi) ने इंडिया स्मार्ट सिटी अवार्ड्स, 2020 के तहत विभिन्न श्रेणियों में तीन पुरस्कार जीते. उनमें से एक इको-रिस्टोरेशन (eco-restoration) के माध्यम से अस्सी नदी की पर्यावरण-बहाली के लिए था, यानी नदी से दूषित पदार्थों को हटाना. स्मार्ट सिटीज की वेबसाइट के मुताबिक, यह परियोजना कुल 5 करोड़ रुपये की लागत से पूरी हुई थी, लेकिन मेरे जमीनी अनुभव से एक अलग तस्वीर सामने आई. हालांकि, 3.5 किलोमीटर लंबी धारा के आखिर में कुछ काम दिखाई दे रहा था, जहां यह गंगा से मिलती है.
अस्सी नदी, जिसे वाराणसी के प्रशासन सहित कई लोगों द्वारा अस्सी 'नाला' भी कहा जाता है, शहर का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है. वाराणसी नाम वरुणा और अस्सी से निकला है, दो नदियां जो इससे होकर बहती हैं. दशकों से इन नदियों की प्रशासन ने अनदेखी की है, यह अनदेखी यहां तक कि गयी है कि अस्सी सीवेज नहर में बदल गया है.
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घरों के पीछे से बहने वाली अस्सी नदी में डाला हुआ कचरा
(फोटो: विकास त्रिपाठी)
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नदी जो नाले में बदल गई है
(फोटो: विकास त्रिपाठी)
नदी ने अपना पूरा वजूद खो दिया है - कोई ताजे पानी का स्रोत नहीं है, किनारे पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया गया है, और नदी के 3.5 किलोमीटर के पूरे क्षेत्र में कई नगरपालिका सीवेज सिस्टम हैं.
हमें ऐसा बताया गया था कि प्राचीन अस्सी नदी वाराणसी के कंदवा तालाब से निकलती है. लेकिन गूगल मैप के मुताबिक इसकी पहली झलक कंदवा से करीब 4 किलोमीटर दूर सुंदरपुर के कीर्ति नगर में मिलती है. जब मैं गूगल मैप द्वारा निर्देशित स्थान पर पहुंचा, तो नदी का कोई निशान नहीं था. वहां एक विशाल बंजर भूमि थी. जिस वास्तविक धारा का मैंने पता लगाया, जिसे हम अस्सी नदी कह सकते हैं, एक सरकारी कॉलेज की दीवार के पीछे थी.
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सरकारी कॉलेज की सीमा जिससे अस्सी गुजरती है
(फोटो: विकास त्रिपाठी)
जैसा कि मैंने दीवार के पीछे की कथित धारा को फॉलो किया, जो कि सरकारी कॉलेज और सुंदरपुर मंडी के बीच में फैली हुई है, एक बड़ी धारा सड़क के साथ उभरी और बाद में एक सीवेज नाले में मिल गई, जो साकेत नगर की ओर जाने से पहले लंका रोड से होकर जाती है.
कुछ हिस्सों पर, धारा पर नजर रखने का मतलब निजी संपत्तियों में प्रवेश करना था. कुछ के लिए, यह सिर्फ घर के पीछे कि एक निजी अपशिष्ट नाली है और दूसरों के लिए, मलबे से भरा एक निर्माण क्षेत्र है.
साकेत नगर में, कई सीवरेज लाइनें अस्सी धारा से मिलती हैं. इससे नदी की चौड़ाई बढ़ जाती है और यह नदी के समान हो जाती है. हालांकि अस्सी के दोनों किनारों पर नदी तलों का अतिक्रमण काफी साफ दिखता है.
नदी आगे वाराणसी के पॉश इलाके से होकर गुजरती है, जहां आईएएस अधिकारी, विश्वविद्यालय के प्रोफेसर और अन्य लोग टावरों में रहते हैं. लंका-रवींद्रपुरी पुल पर, नुकसान बहुत अधिक दिखाई दे रही है: दोनों तरफ मलबे के साथ काले सीवेज की एक धारा है.
अंत में, अस्सी रविदास घाट पर गंगा में विलीन हो जाती है. इस 100 मीटर के खिंचाव के साथ यहां बदबू बहुत ज्यादा है.
बहाली कहां दिखाई दे रही है?
अस्सी के अंत में, एक नवनिर्मित सीवेज-पंपिंग सिस्टम है, जिसके कारण धारा को मोड़ दिया गया है. इसलिए, गंगा में विलय होने से पहले अस्सी सीवेज-पंपिंग सिस्टम में गिरती है.
हालांकि, अभी तक ओरिजिनल स्ट्रीम पर कोई कैपिंग नहीं है. कैप्स पानी और दूषित कणों को आपस में मिक्स होने से रोकते हैं. कुछ दिन पहले जिलाधिकारी ने इस स्थल का दौरा किया था और निर्माण कार्य में देरी को लेकर अधिकारियों की खिंचाई की थी.
हालांकि, सफाई के बाद भी, गंगा में गंदा पानी देखा जा सकता है, जहां अस्सी का इसमें विलय होता है.
मेरी यात्रा के बाद के सवाल
यात्रा के दौरान केवल एक ही स्थान था, जहां जल उपचार दिखाई दे रहा था. यह आश्चर्य की बात है कि आवास और शहरी विकास मंत्रालय द्वारा 'असी नदी की पारिस्थितिकी बहाली' को कैसे सम्मानित किया गया, जब नदी बहाल होने के करीब भी नहीं है.
अवार्ड से कुछ दिन पहले ही नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में वरुणा और अस्सी नदियों की प्रदूषित जल व्यवस्था को लेकर एक याचिका पर सुनवाई हुई थी. लाइव लॉ के अनुसार, बेंच ने दो सप्ताह में कायाकल्प के लिए कार्य योजना की समीक्षा के लिए एक स्वतंत्र निगरानी समिति गठित करने के लिए कहा था.
जब मैंने वाराणसी स्मार्ट सिटी परियोजना के पीआरओ से इको-रिस्टोरेशन के बारे में पूछा, तो उन्होंने बताया कि इसका मतलब बिना किसी केमिकल के सफाई करना है. इस प्रक्रिया में नदी से कचरा बाहर निकाला जाता है.
उन्होंने आगे के सवालों पर जवाब नहीं दिया, जब पूछा गया कि क्या यह अस्सी पर किया गया है, तो इस पर उनका जवाब था कि संबंधित चार्टर उनके कार्यस्थल पर हैं.
वाराणसी नगर निगम की प्रतिक्रिया
क्विंट द्वारा उठाए गए सवालों के जवाब में, वाराणसी नगर निगम ने कहा कि अधिकारी अस्सी नदी की स्थिति के बारे में 'चिंतित' थे और कई उपचारात्मक उपाय किए भी गए हैं. जिनमें जल उपचार, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, स्टील जाल लगाने जैसे उपाय शामिल हैं.
वाराणसी नगर निगम के बयान में कहा गया है, "दीर्घकालिक उपाय सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट, पंपिंग स्टेशन सीवरेज नेटवर्क और सभी प्रदूषित पानी के व्यवस्थित मोड़ जैसे बुनियादी ढांचे का निर्माण हैं."
यह बताता है कि इको-रिस्टोरेशन कार्य अल्पकालिक उपाय हैं जिन्हें सीएसआर परियोजना के रूप में 2018- 19 में पायलट चरण में लागू किया गया था और अब 2020-21 में लागू किया जा रहा है, जिसकी प्रगति COVID-19 महामारी के कारण प्रभावित हुई.
पुरस्कार मिलने पर, नगर निगम ने कहा, "स्मार्ट सिटी मिशन के प्रति हमारा समर्पण, जिसने पुरस्कार जीता, हमारे द्वारा लागू किए गए अल्पकालिक उपायों की सफलता की कहानी है. हम दीर्घकालिक उपायों के लिए बनाई गई परियोजनाओं को पूरा करने के करीब हैं, जिससे निकट भविष्य में स्थायी समाधान हो जाएगा. उन्हें साल 2021 में इस मुकाम को हासिल करने का पूरा भरोसा है.
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