पुलवामा हमले से पूरा देश स्तब्ध है. शहीदों की जलती चिताएं और उनके बिलखते परिवारों का क्रंदन भारत माता के आंचल को आंसुओं से भिगो रहा है. देश की ये व्यथा कहीं गुस्सा, कहीं बेबसी, कहीं हिम्मत और कहीं कविता की शक्ल में अभिव्यक्त हो रही है. पढ़िए दिल्ली के मैक्स अस्पताल के डॉक्टर अश्विनी सेतिया की कविता.
कोई शब्द नहीं मिलता जो मन की व्यथा कहे।
उमड़ते हुए रोष और संताप की कथा कहे।।
पूछो उस मां से, जिसका बेटा चिर निद्रा में सोया है।
और उस बहन से, जिसने भाई अपना खोया है।।
तोते की तरह हर बार वही दो लाइन दोहराते हो।
मगरमच्छ के आंसू बहा कर औपचारिकता निभाते हो।।
वीरों के बलिदान में भी तुम्हें राजनीति ही दिखती है।
चिताओं पर उनकी, सत्ता की रोटी जो सिकती है।।
देशद्रोही स्वच्छंद घूमते करने करतूतें काली को।
‘भारत तेरे टुकड़े होंगे’ सह जाते हो उस गाली को।।
जो तुम्हें सुरक्षित रखें, नहीं ख्याल उन्हीं की सुरक्षा का।
भूल गए, तुम्हारा ही दायित्व है उनकी भी रक्षा का।।
भ्रमित युवा नहीं, वह बर्बर आतंकवादी है।
रक्त रंजित की जिसने, पावन कश्मीर की घाटी है।।
है बर्बर किंतु कायर, निहत्थों पर घात लगा करते वार।
परिचय पाएं भारत के वीरों का, सामने आएं तो एक बार।।
हमें भी अब आदत हो गई है कोरी बातें करने की।
राहत कोष में कुछ देकर फर्ज की इति समझने की।।
अब विश्वास नहीं नेताओं पर, हमको ही कुछ करना है।
सेना का सम्मान, गर्व देश पर, उनके आदर्शों को वरना है।।
(डॉ. अश्विनी सेतिया दिल्ली के मैक्स सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल में गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट और प्रोग्राम डायरेक्टर हैं. उनकी कोशिश लोगों को बिना दवा के स्वस्थ जीवन जीने में मदद करना है. उनसे ashwini.setya@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.)
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