गांदरबल जिले के डेयरी किसानों ने शनिवार 31 जनवरी को विरोध प्रकट करते हुए नालों में दूध के डिब्बे खली कर दिए. यह इसलिए हुआ क्योंकि कश्मीर के श्रीनगर शहर में डीलरों द्वारा सैकड़ों लीटर दूध नहीं खरीदा जा रहा था. गांदरबल जिले के लार इलाके में रहने वाले डेयरी किसान अपनी दशकों पुरानी नौकरी जाने के डर से चिंतित हैं जिनसे उनकी आजीविका और रोजी -रोटी चलती है.
मध्य कश्मीर के गांदरबल के रेपोरा जिले की रहने वाली 34 वर्षीय डेयरी किसान जमरुदा बानो ने 20 गायों को खरीदने के लिए अपनी सोने की चूड़ियां और गहने सिर्फ इस उम्मीद पर बेच दिए कि उनके परिवार की सहायता होगी.
वह अकेले श्रीनगर शहर के अलग-अलग हिस्सों में 30 कैन दूध की आपूर्ति कर रही थीं, लेकिन उनके सारे सपने उस दिन चकनाचुर हो गए जिस दिन उन्हें पता चला कि दूध का एक भी डिब्बा डीलरों द्वारा नहीं खरीदा जा रहा है.
मध्य कश्मीर के गांदरबल के दूध उत्पादक पिछले 20 दिनों से घाटी के विभिन्न हिस्सों में बाहर से दूध की आपूर्ति के खिलाफ अपना गुस्सा और आक्रोश प्रकट कर रहे हैं.
शनिवार 31 जनवरी को दुग्ध उत्पादक अपना गुस्सा और आक्रोश प्रकट करते हुए नालों में दूध के डिब्बे खाली करते हुए नजर आए. उनका आरोप है कि बाहर से दूध की अनियंत्रित आपूर्ति ने उनके रोजगार को प्रभावित किया है, इस वजह से पिछले कुछ महीनों से कई लोग बेरोजगार हो गए हैं.
विरोध करने वाले दूध व्यापारियों का कहना है कि डीलर और जनता उनसे दूध नहीं खरीद रही है, क्योंकि हर दिन दूध के बड़े कंटेनर घाटी में आ रहे हैं जिसने घाटी के बाजारों पर कब्जा कर लिया है.
जमरुदा बानो ने बताया कि "पिछले कुछ वर्षों में हमारे पास खरीददारों ने मूल दूध की खपत बंद कर दी है वे पैकेट वाला दूध पसंद कर रहे हैं जो किसी भी समय आसानी से मिल जाता है".
जमरुदा ने अपनी आपबीती सुनाते हुए कहा कि जब उसके 30 डिब्बे दूध वापस आए तो उसने उन्हें नाले में खली कर दिया. बानो ने कहा कि "गरीब अब कहां जाए और क्या खाए इस वजह से मुझे नींद भी नहीं आ रही है "
'गायों के लिए चारा खरीदने के लिए भी नहीं हैं पैसे'
जमरुदा बानो ने बताया कि जब हमने गाय खरीदी तो सरकार ने हमें सब्सिडी दी, लेकिन ऐसा लगता है कि हम अब बेरोजगार हो गए हैं. हमारी गाय भुखमरी की कगार पर हैं मेरे पास इतने पैसे भी नहीं हैं की मैं उनके लिए चारा खरीद सकुं. मैं दूध बेचकर ही गायों को चारा खिलाती थी और अपने परिवार का पेट भरती थी लेकिन अब हर दिन उत्पादित दूध में 60% की कमी आ गई है जिससे सब कुछ खत्म हो गया है.
एक अन्य डेयरी किसान रफीक अहमद ने कहा कि 20 गाय तो खरीद लीं लेकिन अब उसे घाटा हो रहा है.
रफीक ने कहा कि "इस तरह 70% दूध फेंकने के बाद मैं अपनी गायों को क्या खिलाउंगा क्योंकि मेरे पास तो चारा खरीदने के पैसे भी नहीं हैं. यदि सरकार मदद नहीं करेगी तो हम अपनी गायों को बेचने के लिए मजबूर हो जायेंगे और हमारे सारे सपने भी टूट जायेंगे.
उसी जिले के 26 वर्षीय निसार अहमद ने भी अपनी दुख भरी दास्तान सुनाते हुए कहा कि पिछले 7 वर्षों से डेयरी चला रहा हूं, सरकार की मदद से एक डेयरी चलाकर परिवार की देखभाल कर रहा हूं और इसके लिए मैंने अपनी शिक्षा भी अधूरी छोड़ दी.
निसार अहमद ने कहा कि "अब गायों का क्या करुंगा जब दूध ही नहीं बिकेगा तो कैसे घर परिवार और गायों का खयाल रखूंगा. निसार ने एलजी प्रशासन से अपील करते हुए कहा कि हमारी मदद करें और हमारी गायों को बचाएं.
गाय व्यापारियों ने यह भी शिकायत की, कि अधिकारियों को अपनी परेशानी बताने के बावजूद भी कोई मदद नहीं मिल रही.
"हम मदद मांगने के लिए सम्बंधित अधिकारियों के पास भी गए लेकिन कुछ फायदा नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि हमने अपने गायों को खिलाने के लिए अपने सब कुछ बेच दिया अब हमें इस बात का डर सता रहा है कि कहीं हम बेरोजगार न हो जाए "
दूध व्यापारियों को प्रशासन से उम्मीद है कि वो उनकी मदद करेंगे और बाहर से आने वाले दूध पर रोक लगाएंगे.
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