भारत वास्तव में एक विविधताओं का समूह है , राजनीति और सरकारें भी समाज का ही आइना होती है अगर हम यह कहें की हमारे समाज में किसी भी स्तर पर संपूर्ण नियंत्रण किया जा सकता है तो यह भूल है. मैं यह कतई नहीं कह रहा की सरकार में नियंत्रण या अनुशासन ना हो और मजबूत सरकार नहीं होनी चाहिए, लेकिन मेरा यह सोचना है कि जो भी सरकार बने वह पूर्णत: व्यवस्थित और स्थिर होने के साथ-साथ भारत की जनता के सरोकार की सरकार होनी चाहिए और यह जब ही संभव है, जब समय-समय पर सरकार की मनमानी पर check & balance होना अति आवश्यक है.
गठबंधन की मजबूत सरकार ही देश का असली प्रतिनिधित्व कर सकती है, मैं इससे आगे की बात भी कहना चाहता हूं कि संसद में गिनती के बहुमत का आधार केवल संस्थाओं और प्रक्रिया को चलाने का आधार देना चाहिए, किसी भी ऐसे कानून को बदलने के लिए, जिससे आवाम की ‘ रोटी , कपड़ा और मकान और सांसे जुड़ी हुई रहती है उसमें पचास फीसदी वोटों के प्रतिनिधित्व का होना अनिवार्य हों और किसी भी संविधान संशोधन के लिए दो तिहाई वोटों के प्रतिनिधित्व का होना अनिवार्य हों इसका मतलब यह है की कोई भी सरकार केवल गिनती के बहुमत के आधार पर देश की मालिक ना बन बैठे और समय-समय पर उसे भारत के नागरिकों की याद आए और डर भी बना रहे की जनता देख रही है और सुन रही है.
इसका यह भी एक दूरगामी फायदा होगा की हारने वाला उम्मीदवार भी जनता के विचारों को सुनने के लिए उतना ही जिम्मेवार होगा जितना की जीतने वाला सांसद और समय-समय पर विभिन्न मुद्दों पर और कानून के लिए जनता के बीच में जाना मजबूरी होगी .
लेकिन भारत का वर्तमान राजनैतिक परिदृश्य ऐसा है कि सरकार बिना बीजेपी और कांग्रेस नीत गठबंधन के संभव नहीं है और पिछले 20 साल का विश्लेषण करें तो यह पता चलता है कि इन दोनों राष्ट्रीय पार्टियों को करीब करीब 52 से 60 फीसदी ही सीटों की संख्या ही मिली है और बाकी 40 फीसदी सीट दूसरे क्षेत्रीय दलों को मिलती है, इसका मतलब यह हुआ की क्षेत्रीय दलों को मिलने वाली सीटों में से आधी के करीब सरकार बनाने वाली राष्ट्रीय पार्टी के साथ होनी चाहिए .
मतलब करीब 180 से 200 सीटें राष्ट्रीय पार्टी और करोबी 100 सीटें क्षेत्रीय दलों का सहयोग होना एक आदर्श सरकार बनाता है और पिछले 30 सालों में राष्ट्रीय पार्टी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकारों का प्रदर्शन भी तुलनात्मक रूप से आर्थिक मोर्चे पर बेहतर ही रहा है. इस देश को व्यक्तिवादी और बिना विचार विमर्श वाली सरकार नहीं चाहिए, बल्कि विचारों और विमर्शों से गुजरती हुई एक संवेदनशील और सहयोग और भागीदारी की संस्कृति वाली लोकतांत्रिक सरकार चाहिए सेवा जिसका नारा नहीं भाव हो I जय हिंद !
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)