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My report Debate: अब सबको साथ लेकर चलने वाली सरकार चाहिए

भारतीय ने 70 साल में हर तरह की सरकारें देखी हैं. देश में 1989 तक लगातार एक ही पार्टी के बहुमत वाली सरकारें रहीं.

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भारतीय लोकतंत्र ने 70 साल में हर तरह की सरकारें देखी हैं. देश में 1989 तक लगातार एक ही पार्टी के बहुमत वाली सरकारें रहीं. जनता पार्टी सरकार को छोड़ दें, तो एक ही परिवार का देश, राजनीति और सरकार पर दबदबा रहा. 1989 के बाद मिली जुली सरकारों का दौर आया और ये 25 साल चला. इसके बाद 2014 में देश में फिर से एक पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला, हालांकि ये भी एक गठबंधन सरकार ही है. अब हम इस बात का आंकलन करने की स्थिति में हैं कि पूर्ण बहुमत वाली और मिलीजुली सरकारों का कामकाज कैसा रहा, किन सरकारों ने सबसे मजबूत फैसले लिए, किन सरकारों में विकास दर तेज रही, कौन सी सरकार ज्यादा इनक्लूसिव रही.

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शुरुआती 37 साल की स्थिर सरकारों को देखें, तो वे राष्ट्र निर्माण के साल थे. रियासतों को जोड़कर देश के एकीकरण का सबसे ऊपर था. भाषा के आधार पर कड़वाहट बढ़ रही थी, जिसका निराकरण जरूरी था. बुनियादी ढांचा बनाया जाना था.

लोगों के बीच राष्ट्र-भावना की स्थापना करनी थी. नेहरू-इंदिरा युग ने, जो कि एक दल वाली मजबूत सरकारों का दौर था, अपनी ये वाली भूमिका ठीक से निभाई. नए बने कई राष्ट्र जिस दौर में बिखर गए उस समय भारत की स्थिर सरकारों ने मजबूत राष्ट्र की स्थापना करने में कामयाबी हासिल की. लेकिन ऐसी ही एक मजबूत सरकार ने 1974 में राजनीतिक संकट आने पर देश पर इमरजेंसी लगा दी और लोकतांत्रिक अधिकारों का गला घोंट दिया.

मिली-जुली अर्थव्यवस्था का जो मॉडल नेहरू ने चुना और जिसे इंदिरा ने आगे बढ़ाया, उस दौर में विकास दर 4 परसेंट के आसपास टिकी रही. स्वास्थ्य और शिक्षा की दृष्टि से देखें तो कई नए विश्वविद्यालय, आईआईटी, आईआईएम, एम्स, आईआईसी आदि की स्थापना उस दौर में हुई. लेकिन व्यापक आबादी को स्वस्थ रखने, शिक्षा देने और उन्हें कीमती मानव संसाधन बनाने में ये सरकारें कई और देशों के मुकाबले बुरी तरह विफल रहीं. ये वही दौर था, जब साथ आजाद हुए कई देश जैसे चीन और पूर्वी एशियाई देश ज्यादा तेजी से तरक्की कर रहे थे.

चीन में डेंग जियाओ पिंग के समय जो आर्थिक सुधार हुए, वो भारत में काफी देर से आए. यहां भारत को 20 साल का डेफिसिट रहा. ये डेफिसिट भारत ने एक ऐसी सरकार में पूरा करने की कोशिश की, जो बेहद कमजोर और मिली-जुली सरकार थी. चंद्रशेखर की बेहद अल्पमत (सत्ताधारी दल के सिर्फ 50 सांसद थे) सरकार ने देश को आर्थिक संकट से बचाने के लिए सोना बेचने का साहसिक फैसला किया. उसी समय मनमोहन सिंर पहली बार सरकार की आर्थिक नीतियों को बनाने के काम में शामिल हुए.

नरसिंह राव की अल्पमत सरकार ने आर्थिक सुधार शुरू किए. इस दौर में विकास दर सात परसेंट के आसपास रही. मिली जुली सरकारों ने कुछ बेहद मजबूत फैसले लिए. विनिवेश, पोखरण-2 और इंडो-यूएस न्यूक्लियर डील कमजोर सरकारों की उपलब्धि हैं. लोकतंत्र के शुरुआती दौर में देश को स्थिर, मजबूत सरकारों की जरूरत थी. लेकिन अब अगर मिली-जुली सरकारें बनती हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं है, क्योंकि देश के फंडामेंटल्स स्थिर हैं.

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