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'मैडम कमिश्नर' किताब में अजित पवार का जिक्र, पुलिस की 3 एकड़ जमीन नीलाम करने का आरोप

पूर्व पुलिस कमिश्नर मीरां चड्ढा बोरवंकर ने ये भी लिखा कि उन्होंने अजित पवार के निर्देश का विरोध किया था

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न्यूज
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पुणे (Pune) की पूर्व पुलिस कमिश्नर मीरां चड्ढा बोरवंकर ने मैकमिलन द्वारा प्रकाशित अपनी किताब 'मैडम कमिश्नर' (Madame Commissioner - Book) में बिना नाम लिए लिखा है कि महाराष्ट्र (Maharashtra) के डिप्टी सीएम अजित पवार (Ajit Pawar) ने पुलिस की तीन एकड़ जमीन की नीलामी की थी जो गैर कानूनी है.

हालांकि किताब में अजित पवार का नाम नहीं लिखा है, उसमें 'जिला मंत्री' लिखा गया है. दरअसल ये वाकया 2010 का है जब महाराष्ट्र के जिला संरक्षक मंत्री अजित पवार थे.

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बोरवंकर से जब पूछा गया तो उन्होंने बताया कि, “दादा का मतलब अजीत पवार है और वह उस समय जिला संरक्षक मंत्री भी थे.” वहीं अजित पवार ने इस बात को खारिज कर दिया है और कहा कि जिला संरक्षक मंत्री के पास जमीन के नीलामी का अधिकार नहीं है.

किताब के अनुसार, बात 2010 की है. पुणे के यरवदा में पुणे पुलिस की लगभग तीन एकड़ जमीन तत्कालीन जिला संरक्षक मंत्री अजित पवार के आदेश पर नीलाम की गई थी. जब मंत्री ने जमीन सौंपने के लिए बुलाया, तो पुणे की तत्कालीन पुलिस आयुक्त मीरां चड्ढा बोरवंकर ने जमीन छोड़ने से इनकार कर दिया क्योंकि उन्हें लगा कि पुलिस के लिए अधिक कार्यालय स्थान और पुलिस कर्मियों के लिए घरों के लिए इस जमीन की जरूरत थी.

“मैं कभी भी जमीन की किसी नीलामी में शामिल नहीं हुआ. दरअसल, मैं ऐसी नीलामियों का विरोध करता हूं. इसके अलावा, जिला संरक्षक मंत्री के पास जमीन की नीलामी करने का अधिकार नहीं है. हम ऐसे ही सभी (सरकारी) जमीनें नहीं बेच सकते. ऐसे मुद्दे राजस्व विभाग के समक्ष जाते हैं जो इसे राज्य मंत्रिमंडल के समक्ष रखता है. अंतिम निर्णय कैबिनेट लेती है. फिर जो भी रेट चल रहा है उस हिसाब से जमीन की कीमत तय की जाती है, इसलिए, मैं बताना चाहता हूं कि मेरा इस मामले से कोई लेना-देना नहीं है... आप अधिकारियों से जांच कर सकते हैं कि मैं ऐसे मामलों में हमेशा सरकार का पक्ष कैसे लेता हूं. भले ही मुझ पर कोई दबाव हो, मुझे इसकी परवाह नहीं है.”
अजित पवार

वहीं तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने कहा कि, "मुझे इस मामले पर टिप्पणी करने से पहले रिकॉर्ड देखना होगा."

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आखिर किताब में लिखा क्या है?

किताब के एक अध्याय जिसका शीर्षक "मंत्री" है, इसमें बोरवंकर लिखतीं हैं कि, "हाल ही में पुणे में पुलिस आयुक्त के रूप में पदभार संभालने के बाद, मैं विभिन्न पुलिस स्टेशनों में अपराध परिदृश्यों से परिचित हो रही थी और अधिकारियों से मिल रही थी. उन दिनों में से एक दिन, मुझे संभागीय आयुक्त का फोन आया कि जिला मंत्री ने मुझे अगले दिन सुबह उनसे मिलने के लिए बुलाया है. ....उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि यरवदा पुलिस स्टेशन की जमीन के मुद्दे पर भी चर्चा होगी."

उन्होंने आगे लिखा कि, “…मैं संभागीय आयुक्त कार्यालय में जिला मंत्री से मिली. उनके पास इलाके का एक बड़ा सा नक्शा था. उन्होंने बताया कि नीलामी सफलतापूर्वक हो गई है और मुझे सबसे ज्यादा बोली लगाने वाले को जमीन सौंपने के लिए आगे की प्रक्रिया करनी है. मैंने कह दिया कि चूंकि यरवदा पुणे के केंद्र में हैं, इसलिए पुलिस को भविष्य में ऐसी प्रमुख जमीन कभी नहीं मिलेगी. और हमें पुलिस के लिए अधिक कार्यालयों के साथ-साथ आवासीय क्वार्टरों के निर्माण के लिए इसकी जरूरत थी. मैंने कहा कि हाल ही में कार्यभार संभालने के बाद, एक निजी पार्टी को पुलिस की जमीन देना यह माना जाएगा कि नए पुलिस आयुक्त ने खुद को बेच दिया है. लेकिन मंत्री ने मेरी बात को खारिज कर दिया और जोर देकर कहा कि मैं प्रक्रिया पूरी करूं."

इसके अलावा, बोरवंकर ने किताब में आगे लिखा कि, “उनके निर्देशों से नाखुश होकर, मैंने उनसे विनम्रता से पूछा कि मेरे पूर्ववर्ती – पिछले पुलिस आयुक्त – ने जमीन क्यों नहीं सौंपी, अगर नीलामी पहले ही हो चुकी थी. मैंने यहां तक ​​कहा कि मेरी राय में इस प्रक्रिया में खामियां थी और पुलिस विभाग के हित के विरुद्ध भी थी. मेरे लिए पुलिस जमीन के इतने महत्वपूर्ण टुकड़े को एक निजी पार्टी को देना संभव नहीं होगा, जबकि हमें खुद इसकी आवश्यकता थी, मैंने उनसे धीरे से लेकिन अंतिम रूप से कहा लेकिन मंत्री ने अपना आपा खो दिया और नक्शा कांच की मेज पर फेंक दिया."

इनपुट: इंडियन एक्सप्रेस

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