नयी दिल्ली, 12 अप्रैल : भाषा : देश दुनिया में कोरोना वायरस के प्रकोप के बीच चिकित्सा विशेषज्ञों का कहना है कि संक्रामक रोगों का समय रहते इलाज ढूंढने के लिए अनुसंधान एवं विकास पर विशेष ध्यान देने के साथ ही एक ‘समग्र एवं दीर्घकालीन नीति’’ बनाने की जरूरत है। उनका यह भी कहना है कि भारत समेत दुनिया के तमाम देश पिछले डेढ़ दशक में इस दिशा में उचित कदम उठाने में विफल रहे हैं । इसी मुद्दे पर पेश है स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की पूर्व सचिव सुजाता राव से ‘‘भाषा के पांच सवाल’’ पर उनके जवाब :
सवाल : वायरस संक्रमण के बढ़ते मामलों को देखते हुए स्वास्थ्य क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास की क्या स्थिति है?
जवाब : पिछले 10 वर्षो में 7-8 तरह के प्रभावशाली वायरस सामने आए जिनमें सार्स, जिका, इबोला, एच1एन1, कोविड-19 आदि शामिल है । हमारे देश में बड़ी आबादी के विपरीत स्वास्थ्य प्रणाली मजबूत नहीं है । कुपोषण एवं स्वस्थ जीवनशैली के अभाव में काफी संख्या में लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम है । ऐसे में बीमारियों को लेकर सतत रूप से अनुसंधान एवं विकास पर ध्यान देने की जरूरत है जिसकी हमारे देश में काफी कमी है । अभी हमारे देश में स्वास्थ्य क्षेत्र पर कुल सकल घरेलू उत्पादक का एक प्रतिशत खर्च होता है और अनुसंधान एवं विकास पर खर्च मामूली है । देश में कई संस्थाएं स्वास्थ्य क्षेत्र में शोध कर भी रही हैं तो वह ‘आपरेशनल रिसर्च’ के इर्द गिर्द है । आज ‘विषाणु विज्ञान सहित बेसिक साइंस’ (बुनियादी विज्ञान) के क्षेत्र में अनुसंधान एवं विकास की जरूरत है । हमें न केवल स्वास्थ्य क्षेत्र के बजट को दोगुना करना होगा बल्कि अनुसंधान पर अलग से वृहद बजट आवंटित करना होगा।
सवाल : अनुसंधान एवं शोध को लेकर चूक कहां हो रही है ? इसका आगे का रास्ता क्या है ?
जवाब : भारत ही नहीं पिछले करीब डेढ़ दशक में दुनियाभर में अनेक क्षेत्रों में वायरस सहित संक्रामक बीमारियां काफी कम अंतराल पर सामने आई हैं । इसके बावजूद संक्रामक रोगों से निपटने पर दुनिया ने कोई खास ध्यान नहीं दिया । मौजूदा संकट के समय संक्रामक रोगों से निपटने में अनुसंधान एवं विकास की कमी आज स्पष्ट दिखायी दे रही है । भारत को ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को संक्रामक रोगों से निपटने के लिये एक ‘समग्र एवं दीर्घकालीन नीति’’ बनाने की जरूरत है जहां इस क्षेत्र में लगातार शोध पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए ।
सवाल :: कोविड-19 सहित संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिये जांच सबसे महत्वपूर्ण है । ऐसे में भारत किस स्थिति में हैं और आगे क्या किया जाना चाहिए ।
जवाब : छोटे से देश दक्षिण कोरिया में भी कोरोना वायरस टेस्ट करने वाले 650 लैब हैं । भारत में अभी करीब 140 लैब में कोरोना वायरस संक्रमण की जांच होने की व्यवस्था है । भारत को ऐसे लैब की संख्या बढ़ानी होगी जो बीमारियों की जांच करते हैं क्योंकि इसके आधार पर ही उपचार किया जाता है । अलग अलग क्षेत्रों में टेस्टिंग किट पहुंचानी होगी, तकनीशियनों को प्रशिक्षित करना होगा।व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई), वेंटीलेटर सहित कई अन्य चीजों के आयात के बजाय हमें इनके स्थानीय उत्पादन पर ध्यान देना होगा । उम्मीद है कि कोरोना संकट से राजनीतिक नेतृत्व के साथ ही समाज भी सबक लेगा।
सवाल : लॉकडाउन सहित कोरोना वायरस से निपटने के लिए सरकार को कोई सुझाव?
जवाब : इस वायरस का प्रभाव करीब 220 जिलों में है । ऐसे में इन जिलों में जांच में तेजी लायी जाए, हॉटस्पाट पर खास ध्यान दिया जाए और प्रबुद्ध वर्ग की मदद से जांच की खातिर आगे आने के लिए लोगों को विश्वास में लिया जाए ।
सवाल : आने वाले दिनों में क्या स्थिति होगी?
जवाब : कोविड-19 का जहां तक सवाल है, इसका एकदम अलग आनुवांषिक कोड है जिसे अभी तक सुलझाया नहीं जा सका है। इसकी गुत्थी सुलझाने के साथ यह भी समझना होगा कि हम एक बीमारी के लिये लॉकडाउन कर रहे हैं लेकिन देश में कई अन्य बीमारियों से प्रभावित लोग भी हैं । उन पर भी ध्यान देने की जरूरत है, नहीं तो मुश्किल होगी । ओपीडी सेवाएं बंद नहीं होनी चाहिए, इसका तरीका बदला जा सकता है।
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