मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर राकेश मारिया ने अपनी नई किताब 'लेट मी से इट नाउ' में चर्चित शीना बोरा हत्या मामले के बारे में कुछ सनसनीखेज खुलासे किए हैं. किताब में हुए खुलासों में महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस के साथ मारिया के एसएमएस का आदान-प्रदान शामिल है, साथ ही मामले की जांच और प्रमुख व्यक्तियों की भूमिका से उनके अचानक हटने वाली परिस्थितियों का भी जिक्र किया गया है.
केस से अचानक हटा दिया गया था
मार्च, 1993 के मुंबई सीरियल धमाकों और 26/11 के मुंबई आतंकी हमलों जैसे बड़े मामलों को देखने वाले 63 वर्षीय हाईप्रोफाइल भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी मारिया ने शीना बोरा हत्या मामले की व्यक्तिगत रूप से जांच की थी. लेकिन जांच के दौरान ही उन्हें स्थानांतरित कर दिया गया था.
फडणवीस को एक एसएमएस में मारिया ने इस बात पर नाराजगी व्यक्त की कि कैसे उन्हें और उनकी टीम को जांच के बीच में ही पदोन्नत करते हुए तबादला कर दिया गया. उन्होंने कहा कि उन्हें ऐसे समय पर स्थानांतरित किया गया जब पीटर मुखर्जी की भूमिका और वित्तीय लेनदेन में समानांतर रूप से जांच की जा रही थी.
उन्होंने कहा कि हालांकि पीटर मुखर्जी की भूमिका को सामने लाने और फिर उसे गिरफ्तार करने में सीबीआई को 90 दिन लग गए. मारिया ने इसे उनके व मुंबई पुलिस टीम के लिए अनुचित और अन्यायपूर्ण करार दिया.
'जब जवाब ने पूरी जांच टीम को चौंका दिया''
अपनी किताब में मारिया ने अपने दो शीर्ष सहयोगियों देवेन भारती (अब अतिरिक्त डीजीपी, एटीएस) और अहमद जावेद (अब सऊदी अरब में भारतीय राजदूत) के बारे में भी जिक्र किया है. जब शीना बोरा मामले में मारिया खार पुलिस स्टेशन में मुखर्जी से पूछताछ कर रहे थे तो मुखर्जी ने उन्हें बताया कि उन्होंने देवेन (तत्कालीन संयुक्त पुलिस आयुक्त कानून एवं व्यवस्था) को पहले से ही बता रखा है. इस जवाब ने पूरी जांच टीम को चौंका दिया.
मुखर्जी के रहस्योद्घाटन पर मारिया खुद भी हिल गए थे. जब मारिया ने इस मुद्दे पर भारती से बात करनी चाही तो अगली सुबह (आठ सितंबर 2015) को मारिया का तबादला हो चुका था.
इसके अलावा, जावेद मुखर्जी दंपति (पीटर और उस समय उनकी पूर्व पत्नी इंद्राणी) को सामाजिक रूप से जानते थे और उनकी ईद पार्टी में आमंत्रित भी थे. मारिया तब आश्चर्यचकित रह गए कि क्या नए सीओपी (जावेद) के पदभार संभालने से पहले मुख्यमंत्री और तत्कालीन अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) के.पी. बख्शी को इस बारे में पता था?
क्या मुख्यमंत्री को किया गया था गुमराह?
इसके साथ ही मारिया ने रायगढ़ जिला पुलिस की भूमिका की जांच का उल्लेख किया, क्योंकि शीना बोरा के अवशेषों को गागोड के जंगलों में पाया गया था. उन्होंने सवाल उठाए कि क्या सबूत नष्ट करने का कोई प्रयास किया गया था और साथ ही एक प्रश्न पूछा, "उस जांच का क्या हुआ?"
एक टीवी साक्षात्कार का जिक्र करते हुए जिसमें फडणवीस ने सुझाव दिया कि (मारिया) पीटर मुखर्जी को क्लीन चिट देकर गुमराह कर रहे हैं, इस पर मारिया ने यह कहते हुए खुद का बचाव किया कि उन्होंने कभी उन्हें (पूर्व मुख्यमंत्री) नहीं कहा कि पीटर मुखर्जी उनकी जांच के दायरे में नहीं हैं.
तमाम खुलासों से पता चलता है कि उन्होंने आखिरकार यह सुनिश्चित करने के लिए अपना संस्मरण लिखने का फैसला किया कि उनका नाम पुलिस आयुक्त के रूप में काले अक्षरों में न लिखा जाए, जिन्होंने पीटर मुखर्जी को ढाल देने के लिए कथित तौर पर मुख्यमंत्री तक को गुमराह किया.
मारिया से उनकी सेवानिवृत्ति के बाद मीडिया ने सवाल किया कि क्या उन्हें शीना बोरा मामले से निपटने में कोई खेद है, इस पर मारिया ने कहा कि पुलिस आयुक्त का पद एक शोपीस नहीं है, वह रिबन काटने, उद्घाटन और पेज-थ्री घटनाओं के लिए नहीं है, बल्कि यह नौकरी कानून एवं व्यवस्था को बनाए रखने व गंभीर अपराधों की जांच करने के लिए है.
(इनपुट: IANS)
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)