उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में गैंगस्टर अतीक अहमद (Atique Ahmed) के बेटे असद अहमद (Asad Ahmed) की एनकाउंटर (Encounter) में मौत हो गई. गुरुवार को यूपी STF ने उमेश पाल हत्याकांड के आरोपी असद और गुलाम को झांसी में ढेर कर दिया. इस एनकाउंटर को लेकर सवाल उठ रहे हैं. अखिलेश यादव से लेकर असदुद्दीन ओवैसी ने सरकार पर निशाना साधा है. इससे पहले भी कई बार एनकाउंटर को लेकर योगी सरकार को आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था.
चलिए आपको आंकड़ों के जरिए बताते हैं कि यूपी में योगी सरकार आने के बाद से अबतक कितने एनकाउंटर हुए हैं और उनमें कितने अभियुक्तों की मौत हुई है?
योगी सरकार में हर रोज औसतन 5 एनकाउंटर
यूपी में योगी सरकार (Yogi Government) के आने के बाद औसतन 5 मुठभेड़ (Encounter) रोज हुए हैं. प्रदेश पुलिस द्वारा जारी सरकारी आंकड़ों की मानें तो 20 मार्च 2017 से लेकर 13 अप्रैल 2023 तक हुए करीब 11,000 मुठभेड़ों में अभी तक 183 अभियुक्तों की मौत हो चुकी है. उत्तर प्रदेश पुलिस (UP Police) के शीर्ष अधिकारियों की मानें तो लगातार हो रहे पुलिस मुठभेड़ राज्य की नीतिगत पुलिसिंग का हिस्सा नहीं है. अधिकारी अपनी बात रखते हुए तर्क देते हैं कि अगर पुलिस के ऊपर किसी ने गोली चलाई तो आत्मरक्षा में खाकी चूकेगी नहीं.
एनकाउंटर में मेरठ जोन सबसे आगे
अगर उत्तर प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में पुलिस द्वारा किए गए मुठभेड़ों के आंकड़ों को देखें तो मेरठ जोन सबसे आगे है. उत्तर प्रदेश का वाइल्डरवेस्ट (Wilderwest) कहे जाने वाले मेरठ जोन में 2017 से लेकर अब तक 3,205 एनकाउंटर हुए हैं, जिसमें 64 अभियुक्तों की मौत हुई है.
इसके बाद नंबर आता है वाराणसी और आगरा जोन का, जहां पिछले 6 सालों में क्रमशः 20 और 14 अभियुक्तों की मौत पुलिस मुठभेड़ में हुई है.
यूपी में 'हाफ एनकाउंटर'
पिछले 6 साल के आंकड़ों में 5,046 अभियुक्त पुलिस मुठभेड़ में घायल हुए यानी कि इनके पैर में गोली लगी और बाद में गिरफ्तार हुए. उत्तर प्रदेश में इसे "हाफ एनकाउंटर" भी कहा जाता है. कई बार अभियुक्त इसमें अपना पैर गवां बैठते हैं या उनका शरीर आंशिक या पूरी तरीके से पैरालाइज हो जाता है.
इसका एक उदाहरण मेरठ में 2019 में देखने को मिला था, जब अपनी बहन की शादी का कार्ड बांट कर लौट रहे एक युवक शिमान खान को पुलिस मुठभेड़ में तीन गोली लगी और वह आंशिक रूप से पैरालाइज हो गया.
स्थानीय पुलिस ने शिमान के ऊपर जिस बाइक की चोरी का शक जताया था उस बाइक के खरीद के कागजात शिमान के पास उपलब्ध थे. मामला मीडिया में सामने आने के बाद आला अधिकारियों ने जांच भी बिठाई थी, लेकिन अभी तक सभी आरोपी पुलिसकर्मी जांच और गिरफ्त से दूर है.
मानवाधिकार संगठनों ने उठाई आवाज
उत्तर प्रदेश में लगातार हो रहे हैं एनकाउंटर को लेकर मानवाधिकार से जुड़ी संस्थाओं ने जब भी आवाज उठाई है तो उत्तर प्रदेश पुलिस के शीर्ष अधिकारियों ने तर्क दिया कि सारे एनकाउंटर कोर्ट के मानकों के अनुरूप होते हैं और किसी भी मामले की जांच में कोर्ट द्वारा पुलिस को दोषी नहीं ठहराया गया है.
हालांकि, कुछ मामलों में उत्तर प्रदेश पुलिस पर सवाल भी उठे हैं. आगरा में पिछले साल एक युवक को खनन माफिया बताकर मुठभेड़ में मौत के घाट उतार दिया गया था.
मध्यप्रदेश के मुरैना जिले की निवासी ममता देवी ने आगरा की सीजेएम कोर्ट में प्रार्थनापत्र दिया था कि उनका बेटा आकाश 27 सितंबर 2022 को अग्निवीर भर्ती की प्रक्रिया की जानकारी करने आगरा गया था. बाद में सूचना मिली कि पुलिस मुठभेड़ में उसे गोली मार दी गई. इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई थी.
इस साल मार्च 2023 में ममता की अर्जी स्वीकार कर ली गई और कोर्ट ने आरोपी पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के आदेश दे दिए हैं.
उत्तर प्रदेश पुलिस महकमा एनकाउंटर को राज्य की पुलिसिंग का नीतिगत हिस्सा भले ही न माने, लेकिन सरकार लगातार अपनी पीठ थपथपाती नजर आ रही है. अपराध नियंत्रण के नाम पर लगातार हो रहे एनकाउंटर को प्रदेश के मुखिया योगी आदित्यनाथ समेत सभी शीर्ष नेताओं ने सिर्फ सराहा ही नहीं बल्कि इसे मॉडल के तौर पर चुनावी रैलियों में उपलब्धि के रूप में पेश किया है. कई बार सरकार मुठभेड़ का सहारा लेकर अपने आलोचकों का मुंह बंद करने की कोशिश करते हुए नजर आई है.
24 फरवरी 2023 को प्रयागराज में उमेश पाल हत्याकांड के बाद जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सदन में विपक्ष ने घेरा तो उन्होंने ललकारते हुए हुए अपनी बात रखी और कहा कि वह अतीक अहमद को मिट्टी में मिला देंगे. उसी दिन से अंदाजा लगाया जा रहा था कि इस मामले में यूपी पुलिस अपने चिर परिचित एनकाउंटर शैली में ही नजर आएगी और हुआ भी ऐसा ही. इस मामले से जुड़े चार आरोपियों की पुलिस मुठभेड़ में मौत हो चुकी है. इसमें माफिया अतीक अहमद के बेटे असद अहमद का भी नाम शामिल है, जिसका यूपी एसटीएफ की टीम से झांसी में एक मुठभेड़ के दौरान मौत हो गई.
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