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दिल्ली यूनिवर्सिटी के B.El.Ed कोर्स में होगा बदलाव, क्या कहते हैं प्रोफेसर?

Delhi University News: प्रोफेसरों ने पुराने पाठ्यक्रम को खत्म करने की जरूरत पर सवाल उठाया है.

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दिल्ली यूनिवर्सिटी (Delhi University) में अगल अकैडमिक ईयर से बैचलर ऑफ एलीमेंट्री एजुकेशन यानी B.El.Ed को इंटीग्रेटेड टीचर एजुकेशन प्रोग्राम यानी ITEP से बदला जा सकता है. चार साल का कार्यक्रम राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अनुरूप है.

दिल्ली यूनिवर्सिटी के B.El.Ed कोर्स में होगा बदलाव, क्या कहते हैं प्रोफेसर?

  1. 1. यूनिवर्सिटी दोनों पाठ्यक्रमों को लेकर क्यों बंटा हुआ है?

    B.El.Ed, जो तीन दशकों से चल रहा है, भारत में किसी भी विश्वविद्यालय में प्राथमिक शिक्षा के लिए दिया जाने वाला पहला शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम है. 1994 में इसकी शुरुआत हुई थी और यह इंटरडिसिप्लिनरी प्रोग्राम था.

    डीयू के रजिस्ट्रार विकास गुप्ता ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि इस साल दोनों कार्यक्रम एक साथ चलाए जाएंगे.

    "दोनों कोर्स एक साथ नहीं चल सकते क्योंकि शिक्षक सीमित हैं. हमें सरकार से नए शिक्षक नहीं मिल रहे हैं. हम जुलाई से ITEP शुरू करने पर विचार कर रहे हैं, और अगर हमें सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलती है, तो B.El.Ed स्वतः ही समाप्त हो जाएगा."

    हालांकि, डीयू के फैकल्टी मेंबर्स ने यूनिवर्सिटी और गवर्निंग बॉडी से प्रारंभिक शिक्षा विभाग द्वारा आयोजित बैठक में B.El.Ed को खत्म करने की योजना पर फिर से विचार करने की अपील की है.

    लेकिन वे ऐसा क्यों कह रहे हैं कि पुराने पाठ्यक्रम को नहीं हटाया जाना चाहिए?

    पुराने पाठ्यक्रम को क्यों नहीं बदला जाना चाहिए, इसके कुछ कारणों की ओर इशारा करते हुए, प्रोफेसर माया जॉन, जो डीयू की अकादमिक परिषद की सदस्य हैं, ने कहा-

    "पाठ्यक्रम का स्ट्रक्चर 3+1 है, जिसका मतलब है कि छात्र स्नातक पाठ्यक्रम चुन सकते हैं, और चौथे वर्ष में उन्हें शिक्षक प्रशिक्षण दिया जाएगा. इसका साफ मतलब है कि B.El.Ed के तहत चार साल के शिक्षक प्रशिक्षण को घटाकर एक साल कर दिया जाएगा."

    डीयू की रिटायर्ड प्रोफेसर और B.El.Ed कोर्स की सह-निर्मिता पूनम बत्रा ने द क्विंट को बताया, "B.El.Ed प्रोग्राम अपने इंटरडिसिप्लिनरी अप्रोच और सामान्य और व्यावसायिक शिक्षा के इंटीग्रेशन के साथ 8,000 से अधिक शिक्षकों को सफलतापूर्वक प्रशिक्षित कर चुका है. यह प्रोग्राम संवैधानिक रूप से अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अनुरूप है."

    "इसके विपरीत, ITEP कार्यक्रम तीन साल की सामान्य शिक्षा (बीए/बीएससी) के बाद केवल एक साल का पेशेवर प्रशिक्षण प्रदान करता है, जो शिक्षकों को विविध स्तरों और कक्षाओं को पढ़ाने के लिए आवश्यक ज्ञान और क्षमताओं से लैस करने के लिए अपर्याप्त है."
    पूनम बत्रा

    हालांकि, इस दावे का खंडन करते हुए शिक्षा विभाग के डीन पंकज अरोड़ा ने कहा, "नया पाठ्यक्रम एक दोहरी डिग्री पाठ्यक्रम है. यह वर्टिकल मोबिलिटी की अनुमति देगा क्योंकि इसमें कई प्रवेश और निकास बिंदु हैं. इसका मतलब यह है कि अगर कोई छात्र तीन साल के बाद पढ़ाई छोड़ देता है तब भी उसे डिग्री मिलेगी. उदाहरण के लिए, अगर किसी ने भौतिक विज्ञान में पढ़ाई की है और तीन साल बाद छोड़ देता है, तो उसे बीएससी की डिग्री मिल जाएगी. इसके अलावा, वो आगे पोस्ट ग्रेजुएशन कर सकता है और नए PhD नियमों के तहत PhD भी कर सकता है.

    उन्होंने आगे कहा, "पाठ्यक्रम अब पुराना हो चुका है. नया पाठ्यक्रम NEP द्वारा परिकल्पित नए स्कूल ढांचे की जरूरतों को पूरा करता है."
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  2. 2. प्रोफेसर इसे लागू करने के तरीके के खिलाफ क्यों हैं?

    हालांकि, प्रोफेसर बत्रा ने कहा कि "ITEP को लागू करना दिल्ली विश्वविद्यालय के संघीय ढांचे के खिलाफ है, जो अपने पाठ्यक्रमों को डिजाइन करने के लिए वैधानिक अधिकार रखता है."

    उन्होंने आगे कहा, "B.El.Ed अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है, जो ऐसे ग्रेजुएट तैयार करता है जो केंद्रीय विद्यालयों सहित प्रतिष्ठित निजी और सरकारी स्कूलों में शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं. इसके साथ ही हाई कोर्ट ने प्रशिक्षित ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षक पदों के लिए उनकी पात्रता की पुष्टि की है."

    मिरांडा हाउस की प्रोफेसर आभा देव हबीब ने कहा:

    "इस कोर्स की आवश्यकता नहीं थी, यह एक टॉप-डाउन अप्रोच है, जो काम नहीं करेगा. विभाग इसे सामने लाता और नए कोर्स की मांग करता तो एक अलग बात होती. यह काफी लोकप्रिय कोर्स है."

    प्रोफेसर माया जॉन ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि पाठ्यक्रम के लिए कोई अतिरिक्त धनराशि स्वीकृत नहीं की गई है. उन्होंने कहा, "अगर कोई धनराशि स्वीकृत नहीं की जाती है, तो इसका मतलब है कि पाठ्यक्रम स्व-वित्तपोषित मोड में चलेगा. इसका मतलब है कि मौजूदा कर्मचारियों पर अत्यधिक बोझ पड़ेगा, और बहुत सारे गेस्ट टीचर्स को शामिल किया जाएगा."

    इसके साथ ही उन्होंने कहा, "एक प्रक्रिया के तहत B.El.Ed कोर्स को डिजाइन किया गया था. लेकिन ITEP डिजाइन करने के संबंध में परामर्श प्रक्रिया को नहीं अपनाया गया... हमारे पास ऐसे फैकल्टी हैं, जिन्हें विशेष रूप से पाठ्यक्रम पढ़ाने के लिए भर्ती किया गया था. पाठ्यक्रम कौन डिजाइन कर रहा है और कौन इसे पढ़ाएगा, इस पर अधिक स्पष्टता नहीं है."

    (हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)

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ITEP पाठ्यक्रम समिति के सदस्य पंकज अरोड़ा ने द क्विंट को बताया कि नए पाठ्यक्रम का उद्देश्य NEP में निर्धारित नई स्कूल संरचना के अनुसार शिक्षकों को तैयार करना है - फाउंडेशनल, प्रिपरेटरी, मिडिल और सेकेंडरी.

हालांकि, कुछ प्रोफेसरों ने पिछले सेलेबस को खत्म करने की आवश्यकता पर सवाल उठाया है, जब यह "उच्च प्लेसमेंट रिकॉर्ड वाला लोकप्रिय पाठ्यक्रम" है.

दोनों पाठ्यक्रमों के बीच क्या अंतर है - और जूरी चार साल के कार्यक्रम को अपनाने पर क्यों विभाजित है?

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यूनिवर्सिटी दोनों पाठ्यक्रमों को लेकर क्यों बंटा हुआ है?

B.El.Ed, जो तीन दशकों से चल रहा है, भारत में किसी भी विश्वविद्यालय में प्राथमिक शिक्षा के लिए दिया जाने वाला पहला शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रम है. 1994 में इसकी शुरुआत हुई थी और यह इंटरडिसिप्लिनरी प्रोग्राम था.

डीयू के रजिस्ट्रार विकास गुप्ता ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि इस साल दोनों कार्यक्रम एक साथ चलाए जाएंगे.

"दोनों कोर्स एक साथ नहीं चल सकते क्योंकि शिक्षक सीमित हैं. हमें सरकार से नए शिक्षक नहीं मिल रहे हैं. हम जुलाई से ITEP शुरू करने पर विचार कर रहे हैं, और अगर हमें सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलती है, तो B.El.Ed स्वतः ही समाप्त हो जाएगा."

हालांकि, डीयू के फैकल्टी मेंबर्स ने यूनिवर्सिटी और गवर्निंग बॉडी से प्रारंभिक शिक्षा विभाग द्वारा आयोजित बैठक में B.El.Ed को खत्म करने की योजना पर फिर से विचार करने की अपील की है.

लेकिन वे ऐसा क्यों कह रहे हैं कि पुराने पाठ्यक्रम को नहीं हटाया जाना चाहिए?

पुराने पाठ्यक्रम को क्यों नहीं बदला जाना चाहिए, इसके कुछ कारणों की ओर इशारा करते हुए, प्रोफेसर माया जॉन, जो डीयू की अकादमिक परिषद की सदस्य हैं, ने कहा-

"पाठ्यक्रम का स्ट्रक्चर 3+1 है, जिसका मतलब है कि छात्र स्नातक पाठ्यक्रम चुन सकते हैं, और चौथे वर्ष में उन्हें शिक्षक प्रशिक्षण दिया जाएगा. इसका साफ मतलब है कि B.El.Ed के तहत चार साल के शिक्षक प्रशिक्षण को घटाकर एक साल कर दिया जाएगा."

डीयू की रिटायर्ड प्रोफेसर और B.El.Ed कोर्स की सह-निर्मिता पूनम बत्रा ने द क्विंट को बताया, "B.El.Ed प्रोग्राम अपने इंटरडिसिप्लिनरी अप्रोच और सामान्य और व्यावसायिक शिक्षा के इंटीग्रेशन के साथ 8,000 से अधिक शिक्षकों को सफलतापूर्वक प्रशिक्षित कर चुका है. यह प्रोग्राम संवैधानिक रूप से अनिवार्य शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अनुरूप है."

"इसके विपरीत, ITEP कार्यक्रम तीन साल की सामान्य शिक्षा (बीए/बीएससी) के बाद केवल एक साल का पेशेवर प्रशिक्षण प्रदान करता है, जो शिक्षकों को विविध स्तरों और कक्षाओं को पढ़ाने के लिए आवश्यक ज्ञान और क्षमताओं से लैस करने के लिए अपर्याप्त है."
पूनम बत्रा

हालांकि, इस दावे का खंडन करते हुए शिक्षा विभाग के डीन पंकज अरोड़ा ने कहा, "नया पाठ्यक्रम एक दोहरी डिग्री पाठ्यक्रम है. यह वर्टिकल मोबिलिटी की अनुमति देगा क्योंकि इसमें कई प्रवेश और निकास बिंदु हैं. इसका मतलब यह है कि अगर कोई छात्र तीन साल के बाद पढ़ाई छोड़ देता है तब भी उसे डिग्री मिलेगी. उदाहरण के लिए, अगर किसी ने भौतिक विज्ञान में पढ़ाई की है और तीन साल बाद छोड़ देता है, तो उसे बीएससी की डिग्री मिल जाएगी. इसके अलावा, वो आगे पोस्ट ग्रेजुएशन कर सकता है और नए PhD नियमों के तहत PhD भी कर सकता है.

उन्होंने आगे कहा, "पाठ्यक्रम अब पुराना हो चुका है. नया पाठ्यक्रम NEP द्वारा परिकल्पित नए स्कूल ढांचे की जरूरतों को पूरा करता है."
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प्रोफेसर इसे लागू करने के तरीके के खिलाफ क्यों हैं?

हालांकि, प्रोफेसर बत्रा ने कहा कि "ITEP को लागू करना दिल्ली विश्वविद्यालय के संघीय ढांचे के खिलाफ है, जो अपने पाठ्यक्रमों को डिजाइन करने के लिए वैधानिक अधिकार रखता है."

उन्होंने आगे कहा, "B.El.Ed अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है, जो ऐसे ग्रेजुएट तैयार करता है जो केंद्रीय विद्यालयों सहित प्रतिष्ठित निजी और सरकारी स्कूलों में शानदार प्रदर्शन कर रहे हैं. इसके साथ ही हाई कोर्ट ने प्रशिक्षित ग्रेजुएट और पोस्ट ग्रेजुएट शिक्षक पदों के लिए उनकी पात्रता की पुष्टि की है."

मिरांडा हाउस की प्रोफेसर आभा देव हबीब ने कहा:

"इस कोर्स की आवश्यकता नहीं थी, यह एक टॉप-डाउन अप्रोच है, जो काम नहीं करेगा. विभाग इसे सामने लाता और नए कोर्स की मांग करता तो एक अलग बात होती. यह काफी लोकप्रिय कोर्स है."

प्रोफेसर माया जॉन ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि पाठ्यक्रम के लिए कोई अतिरिक्त धनराशि स्वीकृत नहीं की गई है. उन्होंने कहा, "अगर कोई धनराशि स्वीकृत नहीं की जाती है, तो इसका मतलब है कि पाठ्यक्रम स्व-वित्तपोषित मोड में चलेगा. इसका मतलब है कि मौजूदा कर्मचारियों पर अत्यधिक बोझ पड़ेगा, और बहुत सारे गेस्ट टीचर्स को शामिल किया जाएगा."

इसके साथ ही उन्होंने कहा, "एक प्रक्रिया के तहत B.El.Ed कोर्स को डिजाइन किया गया था. लेकिन ITEP डिजाइन करने के संबंध में परामर्श प्रक्रिया को नहीं अपनाया गया... हमारे पास ऐसे फैकल्टी हैं, जिन्हें विशेष रूप से पाठ्यक्रम पढ़ाने के लिए भर्ती किया गया था. पाठ्यक्रम कौन डिजाइन कर रहा है और कौन इसे पढ़ाएगा, इस पर अधिक स्पष्टता नहीं है."

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