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क्या हुआ था गुलबर्ग सोसायटी में और 14 साल के बाद क्यों आया फैसला?

अब 6 जून को सजा का होगा ऐलान

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गुलबर्ग सोसायटी मामले में गुरुवार को फैसला आ गया, जिसमें 36 लोगों को बरी कर दिया गया है और 24 लोगों को दोषी करारर दिया गया है. आइए नजर डालते हैं कि क्या था पूरा मामला और अब तक इस केस में क्या क्या हुआ?

दरअसल अहमदाबाद के मेघाणीनगर थाना क्षेत्र की गुलबर्ग सोसाइटी में 28 फरवरी 2002 को दंगाइयों ने हमला कर दिया था. जिसमें कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी समेत 69 लोगों की हत्या कर दी गई थी.

घटना के बाद 39 लोगों के शव बरामद किए गए थे जबकि सात साल बाद बाकी 30 लापता लोगों को मृत मान लिया गया था.

गुलबर्ग सोसायटी में सभी मुस्लिम रहते थे, सिर्फ एक पारसी परिवार रहता था
गोधरा कांड के एक दिन बाद यानी 28 फरवरी, 2002 को 29 बंगलों और 10 फ्लैट वाली गुलबर्ग सोसायटी पर हमला हुआ.

क्या हुआ था उस दिन गुलबर्ग सोसायटी में?

20,000 से ज्यादा लोगों की हिंसक भीड़ ने अहमदाबाद के गुलबर्ग सोसायटी जहां सिर्फ एक पारसी और बाकी मुसलमान परिवार रहते थे उसपर हमला कर दिया. ज्यादातर लोगों को जिंदा जला दिया गया. 39 लोगों के शव बरामद हुए और अन्य को गुमशुदा बताया गया, अब कुल मौतों का आंकडा 69 है.

4 साल बाद 2006 में क्या हुआ?

8 जून, 2006: एहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी ने पुलिस को एक फरियाद दी, जिसमें इस हत्याकांड के लिए मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और कई मंत्रियों समेत पुलिस अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया गया. पुलिस ने ये फरियाद लेने से मना कर दिया.

7 नवंबर, 2007: गुजरात हाईकोर्ट ने भी इस फरियाद को एफआईआर मानकर जांच करवाने से इनकार कर दिया.

26 मार्च, 2008: सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात दंगों के 10 बड़े केसों की जांच के लिए आर के राघवन की अध्यक्षता में एक SIT बनाई जिसमें गुलबर्ग का मामला भी शामिल हुआ.

मामले की सुनवाई साल 2009 में शुरू हुई, जिसमें कुल 66 आरोपी थे. इनमें से चार की पहले ही मौत हो चुकी है. मामले की सुनवाई के दौरान 338 लोगों की गवाही हुई.

2012 में नरेंद्र मोदी को मिली क्लीन चिट

गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस नरसंहार के मामले में आरोपी थी, हालांकि 2010 में उनसे पूछताछ के बाद एसआईटी रिपोर्ट में उन्हें क्लीन चिट दे दी गई थी. बाद में 10 अप्रैल 2012 को मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट ने एसआईटी की रिपोर्ट को माना कि मोदी और अन्य 62 लोगों के खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं.

स्नैपशॉट

फैसला सुनाने में क्यों लग गए 14 साल?

  • गुलबर्ग सोसाइटी केस की जांच अहमदाबाद पुलिस ने शुरू की थी.
  • 2002 से 2004 के बीच 6 चार्जशीट दाखिल की गई.
  • मानवाधिकार आयोग की अर्जी पर 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने गुलबर्ग सोसाइटी समेत दंगों के 9 बड़े मामलों पर स्टे लगाया.
  • लंबी सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 2008 में सभी 9 मामलों की जांच SIT को सौंप दी.
  • 26 अक्टूबर 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने गुलबर्ग सोसाइटी को छोड़कर बाकी मामलों में फैसला सुनाने का आदेश दे दिया. गुलबर्ग सोसाइटी दंगों में जान गंवाने वाले कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दी.
  • जाकिया ने गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई लोगों पर आरोप लगाया.
  • SIT ने 27-28 मार्च 2010 को नरेंद्र मोदी ने लंबी पूछताछ की, मोदी ने आरोपों को गलत बताया.
  • मोदी ने SIT को कहा था कि 28 फरवरी को एहसान जाफरी ने उन्हें मदद के लिए फोन नहीं किया.
  • 2009 से 2014 तक सुनवाई के दौरान 3 जजों का तबादला और रिटायरमेंट की वजह से केस रुका.
  • 17 अक्टूबर 2014 को गुलबर्ग सोसाइटी केस की सुनवाई के लिए जज पी बी देसाई की नियुक्ति हुई.
  • 22 फरवरी 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने विशेष अदालत को 3 महीने में फैसला सुनाने को कहा.
  • इसके बाद विशेष अदालत के जज ने फैसले के लिए 2 जून तारीख तय कर दी थी.

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