पिछले कुछ दिनों से आपको सोशल मीडिया और तमाम दूसरे प्लेटफॉर्म पर '13 प्वाइंट रोस्टर' शब्द सुनाई दे रहा होगा. जाहिर है कि साथ ही में SC-ST-OBC शिक्षकों के विरोध प्रदर्शन के बारे में भी आप सुन रहे होंगे या पढ़ रहे होंगे. ऐसे में आपके जेहन में कुछ ऐसे सवाल होंगे:
- 13 प्वाइंट रोस्टर है क्या? इस रोस्टर पर बवाल क्यों मच रहा है?
- सरकार की इस नए रोस्टर में क्या भूमिका है?
- यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में इस रोस्टर के लागू हो जाने से SC-ST-OBC आरक्षण पर क्या असर होगा?
दरअसल, 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम यूनिवर्सिटी में आरक्षण लागू करने का नया तरीका है. इस रोस्टर सिस्टम को एससी-एसटी-ओबीसी आरक्षण सिस्टम के साथ 'खिलवाड़' बताया जा रहा है. अभी बवाल इसलिए मचा हुआ है, क्योंकि 200 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम पर यूजीसी और मानव संसाधन मंत्रालय ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ याचिका दायर की थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 22 जनवरी, 2019 को खारिज कर दिया.
इसी के साथ ही ये तय हो गया कि यूनिवर्सिटी में खाली पदों को 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम के जरिए ही भरा जाएगा.
इससे पहले साल 2017 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि यूनिवर्सिटी में टीचरों का रिक्रूटमेंट डिपार्टमेंट/सब्जेक्ट के हिसाब से होगा न कि यूनिवर्सिटी के हिसाब से.
बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के बीएचयू के प्रोफेसर एमपी अहिरवार इस पूरे मामले को समझाते हुए कहते हैं:
13 प्वाइंट रोस्टर मुद्दे को बीएचयू के प्रोफेसर एमपी अहिरवार से समझिए
पहले वैकेंसी भरते वक्त यूनिवर्सिटी को एक यूनिट माना जाता था, उसके हिसाब से आरक्षण दिया जाता था. इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के बाद वैकेंसी भरने के लिए डिपार्टमेंट/सब्जेक्ट को यूनिट माना जाने लगा. साथ ही 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम लागू हुआ.एमपी अहिरवार, प्रोफेसर, बीएचयू
प्रोफेसर अहिरवार सिस्टम को समझाते हैं कि अगर किसी यूनिवर्सिटी के किसी डिपार्टमेंट में वेकेंसी आती है, तो:
- चौथा, आठवां और बारहवां कैंडिडेट OBC होगा, मतलब कि एक ओबीसी कैंडिडेट डिपार्टमेंट में आने के लिए कम से कम 4 वैकेंसी होनी चाहिए.
- 7वां कैंडिडेट एससी कैटेगरी का होगा, मतलब कि एक एससी कैंडिडेट डिपार्टमेंट में आने के लिए कम से कम 7 वैकेंसी होनी ही चाहिए
- 14वां कैंडिडेट ST होगा, मतलब कि एक एसटी कैंडिडेट को कम से कम 14 वेकेंसी इंतजार करना ही होगा
- बाकी 1,2,3,5,69,10,11,13 पोजिशन अनारक्षित पद होंगे.
साफ है कि यूनिवर्सिटी में आरक्षण की पूरी प्रणाली ही खत्म कर देने के लिए ये सिस्टम बनाया गया है. एक यूनिवर्सिटी के डिपार्टमेंट को शुरू करने के लिए 2 असिस्टेंट प्रोफेसर, एक असोसिएट प्रोफेसर और एक प्रोफेसर होना चाहिए. मतलब कुल संख्या 4-5. SC-ST-OBC को आरक्षण देने के लिए इतनी वैकेंसी कहां से लाई जाएगी? देश में शायद ही कोई ऐसी यूनिवर्सिटी हो, जहां एक डिपार्टमेंट में एक साथ 14 या उससे ज्यादा वेकेंसी निकाली जाती हो. मतलब ओबीसी-एससी का हक मारा जा रहा है, एसटी समुदाय के रिजर्वेशन को तो बिलकुल खत्म कर देगी ये प्रक्रिया.एमपी अहिरवार, प्रोफेसर, बीएचयू
क्या सरकार ने ईमानदारी से कोशिश नहीं की?
दिल्ली यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर रतन लाल इस नए नियम को लागू करने में सरकार की भूमिका को संदिग्ध बताते हैं. उनका कहना है कि कोर्ट में सही तरीके से दलीलें नहीं रखी गईं, 13 प्वाइंट रोस्टर सिस्टम को समझाया नहीं गया कि किस तरह से संवैधानिक अधिकारों का हनन हो सकता है. वो इसे 'आरक्षण व्यवस्था की हत्या’ बताते हैं.
प्रोफेसर अहिरवार, प्रोफेसर रतन लाल की बात से इत्तेफाक रहते हैं. उनका कहना है कि साल 2017 में नए नियम के खिलाफ आवाज उठी, तो ये मुद्दा पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमेटी और ओबीसी वेलफेयर कमेटी तक पहुंचा. संसद में भी सवाल उठे, ऐसे में सरकार ने देशभर से आंकड़े मंगा लिए.
इन आंकड़ों से ये साफ हो गया था कि विभागवार आरक्षण के माध्यम से एससी-एसटी-ओबीसी का प्रतिनिधत्व बिलकुल खत्म हो जाएगा. ये जानने के बाद भी सरकार ने सुनियोजित तरीके से सुप्रीम कोर्ट में आंकड़े नहीं रखे और ये आरक्षण को खत्म करने वाला फैसला आ गया.एमपी अहिरवार, प्रोफेसर, बीएचयू
आरोप ये भी लग रहे हैं कि इस फैसले लागू होने के बाद धड़ाधड़ यूनिवर्सिटी की पुरानी वेकेंसी को भरे जाने का सिलसिला शुरू हो गया है, जिसमें कई में तो एक भी पद एससी-एसटी-ओबीसी के लिए नहीं है. लालू प्रसाद यादव, तेजस्वी यादव, उपेंद्र कुशवाहा समेत कई नेताओं ने भी इस नए नियम-कानून को गलत बताया है.
अब एक और आंकड़ा देखकर आपको हैरानी हो सकती है. यूं तो देश के 40 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में आरक्षण लागू होता है. लेकिन इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश की इन यूनिवर्सिटी में 95.2% प्रोफेसर, 92.9% असोसिएट प्रोफेसर, 66.27% असिस्टेंट प्रोफेसर जनरल कैटेगरी से आते हैं. इनमें SC, ST और OBC के वो उम्मीदवार भी हैं, जिन्हें आरक्षण का फायदा नहीं मिला है.
साफ है कि यूनिवर्सिटी में अब तक भी आरक्षण को सही तरीके से लागू नहीं किया जा सका है. अब डर है कि SC, ST और OBC के आरक्षण के हक को नए नियम-कानून से और भी मारा जा सकता है.
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