ये जो इंडिया है ना… यहां 2021 में बहुत कुछ हुआ…लोगों ने बहुत कुछ खोया, लोगों की जानें भी गईं, ऐसी घटनाएं हुईं जो चौंकाने वाली थीं और कुछ बेतुकी थीं, कुछ दिल को तसल्ली देने वाले किस्से थे, और कुछ कहानियां दिल तोड़ने वाली भी थीं.. लेकिन मेरे लिए तीन तस्वीरें हैं जो वास्तव में 2021 की पूरी कहानी बयां करती हैं… एक ऐसा साल जिस पर शायद हमें गर्व न हो, जब हम इसे पीछे मुड़कर देखते हैं
सबसे पहले वो तस्वीर जब यूपी के लखीमपुर खीरी में शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे किसानों के ऊपर SUV गाड़ी चढ़ा दी गई.
इसके बाद वो वायरल वीडियोज जिसमें हरिद्वार के 'नफरती संसद' में एक के बाद एक लगभग सारे स्पीकर खुलेआम देश में मुसलमानों की हत्या का आह्वान कर रहे हैं
और फिर.. COVID-19 की दूसरी लहर, पूर्वी दिल्ली के एक 'शमशान घाट' में एक साथ 15 से 20 शवों का अंतिम संस्कार किए जाने की तस्वीरें, और गंगा किनारे पाए गए सैकड़ों शवों की तस्वीरें
इन तस्वीरों के बीच एक ऐसी समानता है जो 2021 की पूरी कहानी बयां कर देती हैं... और वो है ... जिंदगी सस्ती है.
सबसे पहले, लखीमपुर खीरी.
कोई क्या ही सोच सकता है कि एक एसयूवी प्रदर्शनकारियों के एक समूह को कुचल देगी. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा या उनके बेटे आशीष इसमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शामिल थे.
सच तो ये है कि जिसने भी आदेश दिया, उसके लिए उन किसानों की जान की कोई कीमत नहीं थी. और अगर किसानों की जिंदगी मायने नहीं रखती, तो जाहिर है कि उनके 12 महीने के प्रदर्शन और भी कम मायने रखती हैं.
और यही हमें बताता है कि सरकार ने 12 महीने क्यों जाने दिए, 600 किसानों की जान क्यों जाने दी. और क्यों चुनावी हार के खतरे से ही उनका अहंकार टूटा, और किसानों के सामने उनकी कमर झुकी.
इसके बाद, हरिद्वार
कोई कैसे सार्वजनिक रूप से, खड़े होकर, लाखों देशवासियों की हत्या का आह्वान कर सकता है और ऐसा कहकर बच भी सकता है? हमारे सामने हरिद्वार में एक 'नफरती संसद' चला... दिल्ली में 'नफरत की शपथ' दिलाई गई ... और रायपुर में 'गांधी का अपमान' सरेआम हुआ...
सभी मामलों में पुलिस, स्थानीय प्रशासन, और न्यायपालिका को कार्रवाई करनी चाहिए थी, लेकिन इसके बजाय, क्या हुआ? कुछ नहीं! क्यों? फिर से जवाब... जिंदगी सस्ती है. इन नफरत करने वालों के लिए, और सत्ता में उनकी रक्षा करनेवालों के लिए, देश के कोने-कोने में रहने वाले भारत के करोड़ों अल्पसंख्यकों की जिंदगी की कोई कीमत है ही नहीं.
आखिर में, कोविड की घातक दूसरी लहर
अंतिम संस्कार के इंतजार में कतार में लगे शव, फुटपाथों पर शवों का अंतिम संस्कार, अस्पतालों में बेड खोजने के लिए संघर्ष करते परिवार, ऑटो-रिक्शा के अंदर अपने प्रियजनों को खोते लोग, 'ब्लैक' में रेमडेसिवीर और ऑक्सीजन सिलेंडर खरीदते लोग, दूसरी लहर के दौरान हर दिन हजारों की मौत.
लगभग सभी के पास ऑक्सीजन के लिए हताश यहां-वहां दौड़ने की स्पष्ट यादें हैं. जिन अस्पतालों में ऑक्सीजन नहीं था, अस्पताल के फर्श पर सांस के लिए हांफते मरीज, हताशा में रोते हुए परिवार के सदस्य ... और फिर भी, कुछ ही महीनों बाद, सरकार ने हम सब से कहा- कि दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन की कमी से किसी की मौत नहीं हुई.
जी हां, ये जो इंडिया है ना, यहां, 2021 में जिंदगी सस्ती थी. हम केवल ये उम्मीद कर सकते हैं, कि 2022, बेहतर हो.
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