द क्विंट ने रिपोर्ट की थी. कर्नाटक में बन रहे ‘ब्राह्मण ओनली टाउनशिप’ पर. सोशल मीडिया पर लोगों ने दमभर गालियां दीं. बहस की. हमें हिंदू विरोधी तक करार दिया.
लोकतंत्र में बहस मुबाहिसा की आजादी है. इसलिए हमनें हमें एंटी-हिंदू करार देने वालों के साथ बातचीत की. उनकी बातें सुनीं, अपनी सुनाईं. उनके आरोपों का तर्कों के साथ जवाब दिया.
(इस बातचीत के कुछ अंश यहां मौजूद हैं)
सवाल - मैंने जैनों के लिए, मुस्लिमों के लिए और ईसाइयों के लिए किराए पर घर खाली जैसे विज्ञापन देखे हैं. सिर्फ ब्राह्मणों के लिए टाउनशिप देखकर प्रतिक्रिया क्यों?
जवाब: किरायेदारों को धर्म और जाति के आधार पर विज्ञापन भी घिनौने हैं. लेकिन एक गलत चीज दूसरी गलत चीज को ठीन नहीं ठहरा सकती.
किसी शहर में कोई अल्पसंख्यकों की कॉलोनियां सामाजिक, संरचनात्मक और तकनीकी रूप से एक हाउसिंग प्रोजेक्ट से अलग है. भारत का संविधान जाति और पंथ के आधार पर भेदभाव करने वाले हाउसिंग प्रोजेक्ट की अनुमति नहीं देता है.
शंकर अग्रहरम टाउनशिप पर किसी खास फिलॉसिफी को चुनने की वजह से सवाल नहीं उठ रहा है. इसमें समस्या ये है कि ये टाउनशिप गैर-ब्राह्मणों को इस टाउनशिप में घर बेचने को तैयार नहीं हैं.
इसके साथ ही राष्ट्रीय संपदा को किसी ऐसी कॉलोनी को नहीं दिया जा सकता है जो जातिगत भेदभाव फैलाने की कोशिश में हो.
सवाल: अगर एससी, एसटी और ओबीसी को रिजर्वेशन मिल सकता है जिसकी वजह से सामान्य जातिवालों ने बहुत बर्दाश्त किया है. तो इसमें क्या गलत है?
जवाब: जिन लोगों को ये लगता है कि जातिगत मुहल्ले जाति आधारित आरक्षण का जवाब हो सकता है, उनसे सिर्फ ये कहा जा सकता है कि ऐसे तर्कों की वजह से ही सोशल मीडिया पर रिजर्वेशन को लेकर काम की बात होने की जगह बकवास ही हो रही है.
ऐतिहासिक और संवैधानिक आधार पर आरक्षण ही एक ऐसा तरीका है जिससे उन वर्गों की मदद की जा सकती है जो सदियों से सामाजिक भेदभाव झेलते जा रहे हैं. इतिहास में कहीं भी ब्राह्मणों द्वारा भेदभाव झेलने की बात दर्ज नहीं है. इसलिए ‘ब्राह्मण ओनली टाउनशिप’ किसी भी तरह खत्म होते ब्राह्मण कल्चर को नहीं बचाता है. बल्कि ये अन्य लोगों को इसका हिस्सा बनने से रोकता है.
सवाल: जब आप सैपरेट कश्मीर और केरल की मांग कर सकते हैं तो हम अलग कॉलोनी क्यों नहीं बना सकते हैं. हमें ब्राह्मण होने पर गर्व है.
जवाब: कश्मीर और सेपरेट नॉर्थ ईस्ट या खालिस्तान के मुद्दों ने अब तक यही बताया है संप्रभु राष्ट्रों से विखंडन से हिंसा और सामुहिक नुकसान ही होता है.
भारत जैसे विविधताओं से भरे हुए देश में हमें अपनी संस्कृतियों को बचाने के लिए एक्सक्लुसिव और भेदभाव करने वाली टाउनशिप्स की जरूरत नहीं है. हमें जरूरत है तो बस एक-दूसरे को पसंद करके एकसाथ प्यार से रहने की.
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