देश में कोरोना के मामले बेहताशा बढ़ते जा रहे हैं. इसके बीच कोविड वैक्सीनेशन भी जारी है. अब तक देश में 11 करोड़ से ज्यादा लोगों को वैक्सीन दी जा चुकी है. हालांकि, अधिकार समूहों और एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत वैक्सीनेशन केंद्रों पर आधार और फेशियल रिकॉग्निशन तकनीक का इस्तेमाल कर रहा है, जिसकी वजह से लाखों लोगों को वैक्सीन नहीं मिलने की आशंका है.
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, झारखंड में ऑथेंटिकेशन के लिए एक आधार-आधारित फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम को टेस्ट किया जा रहा है. रिपोर्ट में एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से कहा गया कि ये सिस्टम पूरे देश में लागू होगा.
क्या अनिवार्य होगा सिस्टम?
रिपोर्ट कहती है कि नेशनल हेल्थ अथॉरिटी के आरएस शर्मा ने एक ऑनलाइन पब्लिकेशन से कहा, "आधार-आधारित फेशियल रिकॉग्निशन सिस्टम जल्दी ही पूरे देश में कोविड वैक्सीन केंद्रों पर बायोमेट्रिक फिंगरप्रिंट या आईरिस स्कैन मशीनों की जगह ले सकता है."
शर्मा ने कहा कि सिस्टम अनिवार्य नहीं होगा, लेकिन नई गाइडलाइन संकेत देती है कि आधार आइडेंटिटी वेरिफिकेशन और वैक्सीनेशन सर्टिफिकेट के लिए पहले से ही ‘पसंदीदा’ माध्यम है.
लाखों लोगों के लिए होगी मुश्किल
दिल्ली स्थित इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन की एसोसिएट काउंसल अनुष्का जैन कहती हैं कि आधार के इस्तेमाल से मोबाइल ऐप पर वैक्सीन के लिए अपॉइंटमेंट बुक करने की प्रक्रिया से वो लाखों लोग छूट जाएंगे, जिनके पास आधार आईडी नहीं है.
रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, जैन ने कहा, "वैक्सीनेशन केंद्रों पर फेशियल रिकॉग्निशन के इस्तेमाल से ऐसे लोगों को वैक्सीन मिलने में दिक्कत हो सकती है और सभी केंद्रों पर इस विवादित तकनीक का इस्तेमाल नियम बनने का खतरा है."
“आधार के लिए मजबूर करना बहुत दिक्कत भरा है और आधार-आधारित फेशियल रिकॉग्निशन इस परेशानी को और बढ़ाता है.”अनुष्का जैन, इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन की एसोसिएट काउंसल
अनुष्का जैन ने रॉयटर्स से कहा, "सरकार को वैक्सीन तक पहुंच बिना किसी आईडी और नए बैरियर के आसान बनानी चाहिए." रॉयटर्स ने कहा कि स्वास्थ्य मंत्रालय ने उनके निवेदन पर अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है.
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