देश में इंजीनियरिंग कॉलेजों में हर साल औसतन 50 फीसदी से अधिक सीटें खाली रह जा रही हैं. इस हालत को देखते हुए अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (AICTE) ने कम दाखिले वाले तकनीकी संस्थाओं को खुद ब खुद बंद करने की पहल को बढ़ावा देने का फैसला किया है. AICTE के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, देश के 32 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 380 सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज हैं जिनमें शैक्षणिक सत्र 2016-17 में मंजूर सीटों की संख्या 1,42,328 थी. इनमें से 1,07,134 सीटों पर ही दाखिला हो सका और 35,195 सीटें खाली रह गई.
प्राइवेट कॉलेजों का बदतर है हाल
देशभर में 2977 निजी इंजीनियरिंग कालेज हैं जिसमें मंजूर सीटों की संख्या 15,97,696 है. शैक्षणिक सत्र 2016-17 में इनमें से 7,33,245 सीटों पर दाखिला हो सका जबकि 8,64,451 सीटें खाली रह गईं. ऐसे में निजी इंजीनियरिंग कालेजों में 54 फीसदी सीटें खाली रह गई.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, देश में 3,357 इंजीनियरिंग कालेजों में शैक्षणिक सत्र 2016-17 में कुल मंजूर 17,40,024 सीटों में से 8,40,379 सीटों पर दाखिला हो सका और 8,99,646 सीटें खाली रह गई. इस प्रकार से पूरे देश में इंजीनियरिंग कालेजों में कुल मिलाकर औसतन 52 फीसदी सीटें खाली रह गई.
कारण क्या है?
AICTE के एक अधिकारी कहते हैं ‘‘ पिछले कुछ सालों से हम खराब गुणवत्ता और कम मांग की वजह से इंजीनियरिंग संस्थानों की संख्या घटाने के लिए काम कर रहे हैं. हमने ऐसे कम दाखिले वाले तकनीकी संस्थाओं को स्वैच्छिक रूप से बंद करने की पहल को प्रोत्साहित करने का फैसला किया है.'' AICTE की वेबसाइट के मुताबिक, 2014-15 से 2017-18 तक पूरे भारत में 410 से अधिक कॉलेजों को बंद करने को मंजूरी दी जा चुकी है.
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक,
- आंध्रप्रदेश में इंजीनियरिंगग कालेजों में 51% सीटें
- असम में 34%
- बिहार में 46%,
- छत्तीसगढ़ में 63%
- दिल्ली में 24%
- गुजरात में 47%
- हरियाणा में 70%
- हिमाचल प्रदेश में 76%
- झारखंड में 44%
- कर्नाटक में 28%
- केरल में 43%
- महाराष्ट्र में 47%
- ओडिशा में 60%
- पंजाब में 61%
- राजस्थान में 66%
- तमिलनाडु में 50%
- तेलंगाना में 52%
- उत्तरप्रदेश में 65%
- पश्चिम बंगाल में 44%
खाली रह गईं.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)