अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने 6 जून को कहा कि 'हर सिख खलिस्तान चाहता है.' इस बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं. ये बयान उन्होंने एक दिन पहले लगे खालिस्तान-समर्थक नारों पर पूछे गए सवाल पर दिया था. ये नारे उस वक्त लगे, जब दल खालसा और शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के काडर ऑपरेशन ब्लूस्टार की 36वीं सालगिरह पर अकाल तख्त में घुसने की कोशिश कर रहे थे.
ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा, "अगर नारे लगाए गए तो उसमें कुछ गलत नहीं है. अगर सरकार हमें खलिस्तान ऑफर करती है, तो हमें और क्या चाहिए? हम उसे ले लेंगे. इस दुनिया में कौनसा सिख है को ये नहीं चाहता?"
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष गोबिंद सिंह लोंगोवाल ने भी ज्ञानी हरप्रीत सिंह की बात पर सहमति जताई.
अकाल तख्त के जत्थेदार ने कहा कि केंद्र की सरकार 'सिख-विरोधी' है.
अब जत्थेदार के इस बयान को किस तरह देखा जाना चाहिए? क्या ये अलग खालिस्तान देश की मांग है? क्या ये सिख समुदाय की भावनाओं की स्वीकृति है?
संदर्भ क्या है?
जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह के बयान को सिर्फ 'अलगाववादी' बयान या खलिस्तान की मांग को दोबारा उठाने की मांग कह देना मामले को बहुत आसान बना देना होगा
इस बयान का समय महत्वपूर्ण है. ये बयान ऑपरेशन ब्लूस्टार की 36वीं सालगिरह के मौके पर आया है. 1 से 8 जून 1984 के बीच स्वर्ण मंदिर में भारतीय सेना का ये ऑपरेशन चला था. सिख इसे एक दुखद घटना मानते हैं.
ये ऑपरेशन जरनैल सिंह भिंडरांवाले और उसके समर्थकों को दरबार साहिब से निकालने के लिए चलाया गया था. इस दौरान भिंडरांवाले की मौत हो गई थी. कुछ सिख इसे तीसरा होलोकॉस्ट बताते हैं, जिसमें अकाल तख्त को काफी नुकसान हुआ था. इसके कुछ महीनों बाद इंदिरा गांधी की हत्या हुई थी, जिसके बाद दंगे हुए जिसमें सिखों का नरसंहार हुआ.
कुछ सिखों का कहना है कि तीसरे होलोकॉस्ट के घांव अभी भरे नहीं हैं और 1984 के दंगों के पीड़ितों को न्याय नहीं मिला है.
लेखक अमनदीप संधू ने क्विंट से एक इंटरव्यू में कहा था, "खलिस्तान एक रास्ता है जिससे भारत से पूछा जा सके- वो न्यायिक व्यवस्था क्या है जो न्याय नहीं दे सकती?"
अगर कोई इस संदर्भ से देखेगा तो ज्ञानी हरप्रीत सिंह का बयान भारत सरकार से एक अपील लग सकती है.
समुदाय के अंदर की दरारों को भरने की कोशिश
ज्ञानी हरप्रीत सिंह जब 2018 में अकाल तख्त के एक्टिंग जत्थेदार बने थे, तो स्थिति ठीक नहीं थी. ऐसा माना जा रहा था कि तख्त शिरोमणि अकाली दल के करीब हो रहा है. अकाली दल उस समय 2015 के बरगाड़ी में हुई अपवित्रीकरण घटनाओं की वजह से विरोध झेल रहा था. इन घटनाओं के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले लोगों की बहबल कलां में मौत का भी पार्टी को विरोध झेलना पड़ा था.
2015 में करीब उसी समय अकाल तख्त ने डेरा सच्चा सौदा चीफ गुरमीत राम रहीम सिंह को माफ करने का फैसला किया था. ये फैसला बाद में वापस लिया गया.
जत्थेदार बनने के बाद से ज्ञानी हरप्रीत सिंह राजनीतिक तौर पर ज्यादा उग्र दिखे हैं. उन्होंने अकाली दल के बारे में कुछ नहीं कहा है, लेकिन उन्होंने बीजेपी और आरएसएस के खिलाफ बोलने का कोई मौका नहीं छोड़ा है.
वो मोदी सरकार में अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार को लेकर भी मुखर रहे हैं. कश्मीर और आरएसएस के खिलाफ भी वो बोलते रहे हैं. अकाल तख्त और प्रबंधक कमेटी के खिलाफ बोलने वाले लोग भी ज्ञानी हरप्रीत सिंग के बयानों पर चुप्पी साध लेते हैं.
शायद इस बार भी यही हुआ.
जब ज्ञानी हरप्रीत सिंह की खालिस्तान पर टिप्पणी के बारे में पूछा गया तो दल खालसा के सदस्यों ने विरोध में कुछ नहीं कहा. उन्होंने कहा कि जत्थेदार को इस पर और काम करना चाहिए.
नारों को गलत न बताकर और केंद्र सरकार को 'सिख-विरोधी' कहकर, अकाल तख्त जत्थेदार शायद समुदाय के अंदर की दरारों को भरने की कोशिश कर रहे हैं.
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