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डॉ. गेल ओमवेट: कैसे अमेरिका से आई एक महिला भारत में दलितों को मां सी लगने लगीं

Gail Omvedt के जाने के बाद भारत के वंचित, दलित और शोषित समाज में शोक की लहर है

Published
भारत
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25 अगस्त को अमेरिकी मूल की एक ऐसी शख्सियत ने इस संसार को अलविदा कहा है, जिनके जाने के बाद भारत के वंचित, दलित और शोषित समाज में शोक की लहर है.
हम बात कर रहे हैं करुणा, संवेदना से भरी करिश्माई शख्सियत की धनी डॉ. गेल ओमवेट (Dr. Gail Omvedt) की. जिनका जन्म तो अमेरिका में हुआ लेकिन 1978 में एक शोध के सिलसिले में भारत आने के बाद से वे भारत की ही होकर रह गईं.

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ओमवेट भारत में दलित और जाति विरोधी आंदोलनों, पर्यावरण, किसानों और महिला आंदोलनों में सक्रिय रूप से शामिल थीं और उन्होंने इन विषयों पर कई किताबें भी लिखी थीं.

जन्मभूमि अमेरिका लेकिन कर्मभूमि भारत

रिसर्चर, लेखिका और दलित चिंतक डॉ. गेल ओमवेट का जन्म 2 अगस्त 1941 को अमेरिका के मिनीपोलिस-मिनेसोटा शहर में हुआ था. गेल ओमवेट ने कैलिफोर्निया स्थिति बर्कले विश्वविद्यालय से 1973 में समाजशास्त्र में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की.

वह 1970 के दशक में अमेरिका से एक पीएचडी छात्र के रूप में महाराष्ट्र में जाति और महात्मा फुले के आंदोलन का अध्ययन करने के लिए आई थीं, लेकिन भारत में जिस तरह की जाति और अस्पृश्यता व्यवस्था को उन्होंने देखा, उससे वो परेशान हो गईं और उत्पीड़ित जातियों की मुक्ति के लिए काम करने के लिए भारत मे ही रहने का निश्चय कर लिया.

यहां पर सामाजिक-सांस्कृतिक आंदोलनों में अपने शोध के दौरान, ओमवेट की मुलाकात स्वतंत्रता सेनानी और सामाजिक कार्यकर्ता इंदुमती पाटनकर से हुई और बाद में उनके बेटे वामपंथी नेता और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. भरत पाटनकर से शादी कर ली और सतारा जिले (महाराष्ट्र) के कासेगांव में रहने लगीं.
उन्होंने 1983 में अमेरिकी नागरिकता छोड़कर भारतीय नागरिक ग्रहण कर लिया था.
इस समय उनकी एक बेटी (प्राची) और एक पोती (निया) है, जो उनके दामाद (तेजस्वी) के साथ अमेरिका में रहते हैं.

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एक रिसर्चर और लेखिका जिन्होंने, वंचितों और शोषितों की आवाज दुनियाभर में पहुंचाई

ओमवेट, ज्योतिबा फुले द्वारा शुरू किए गए 'सत्यशोधक समाज' के सियासी मायनों का अध्ययन करने वाली पहली शोधकर्ता थी. उनकी पीएचडी थीसिस ने महात्मा फुले के सत्यशोधक आंदोलन को दुनिया के सामने पेश किया. उनके शोध के बाद से ही लोग इस विषय पर अधिक शोध करने के लिए प्रेरित हुए. डॉ. ओमवेट द्वारा ज्योतिबा फुले के आंदोलन का राजनीतिक मतलब बताने से वामपंथी आंदोलन को काफी मदद मिली.

वह महाराष्ट्र में जमीनी स्तर पर जाति-विरोधी और महिला मुक्ति आंदोलनों में शामिल थीं. उन्होंने जीवनभर ग्रामीणों के साथ मिलकर काम किया. उन्होंने SMD, स्त्री मुक्ति संघर्ष चलवल और शेतकारी महिला अघाड़ी जैसे संगठनों के साथ काम किया.

सच कहूं तो मैं कई दलितों के लिए एक तरह की 'मां की आकृति' हूं.
डॉ. ओमवेट
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एक अमेरिकी मूल की भारतीय विद्वान, समाजशास्त्री और मानवाधिकार कार्यकर्ता के रूप में, वह दलितों पर अपने लेखन के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध हैं.

उनकी प्रमुख पुस्तक, 'दलित और लोकतांत्रिक क्रांति' छपते ही भारत के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों समेत दुनिया के दक्षिण एशियाई अध्ययन केंद्रों में हर युवा छात्र के हाथ में एक पुस्तिका बन गई थी. जाति और छुआछूत से जुड़े सवालों को समझने के लिए और जाति व्यवस्था को बदलने के लिए विद्वान उनकी पुस्तकों का अध्ययन करते हैं.

उन्होंने इतिहास को पढ़ने के एक विषय से निकालकर वर्तमान समाजशास्त्र में घोल दिया. इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने डॉ. ओमवेट की मृत्यु पर शोक प्रकट करते हुए ट्वीट किया,
"डॉ ओमवेट के महान योगदानों में से एक समाजशास्त्र और इतिहास के बीच की सीमा को तोड़ना था. वो लिखने और जमीन पर काम करने दोनों में एक सी जुटी रहीं."

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समाजसेवी, विचारक और सलाहकार

उन्होंने अपने पति के साथ श्रमिक मुक्ति दल की स्थापना की. जो दलित समुदायों, ग्रामीण परियोजनाओं, जाति, वर्ग, लिंग-पीड़ित और आदिवासियों लोगों के मौलिक अधिकारों के लिए समर्पित संगठन है. ओमवेट ने सांगली और सतारा में त्याग दी गईं महिलाओं की बेहतरी के लिए काम किया. उन्होंने अपना पूरा जीवन इन्हीं कार्यों में खपा दिया.

वह सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय, नॉर्डिक इंस्टीट्यूट ऑफ एशियन स्टडीज और इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी जैसे संस्थानों के बोर्ड में भी रहीं.

हाल के वर्षों में, वह संयुक्त राष्ट्र के कार्यक्रमों, गैर सरकारी संगठनों (NGOs), ऑक्सफैम नोविब (Oxfam Novib) और विभिन्न स्कूलों के लिए लिंग और जाति के मुद्दों पर विशेष सलाहकार के रूप में काम कर रही थीं.

डॉ. ओमवेट ब्राह्मणवाद, पितृसत्ता और जाति उत्पीड़न के कट्टर आलोचक थीं. उनका पूरा जीवन मार्क्स-फुले-अंबेडकरवाद के त्रिपक्षीय सिद्धांत के इर्द-गिर्द चला और उन्होंने अपनी इस विचारधारा को अपने गंभीर लेखन से दुनियाभर में पहुंचाया.

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पूरे भारत में दलित, आदिवासी, वंचित और शोषित लोग उनके आंदोलनकारी कार्यों से अपने आप को ऋणी समझते हैं.

डॉ. गेल की 25 से अधिक किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं.

जातिविरोधी बहुजन आंदोलन को समाज के हर हिस्से में पहुंचाने के लिए उनकी कई पुस्तकें काफी चर्चित रहीं. जिनमें कल्चरल रीवोल्ट इन कोलोनियल सोसायटी- द नॉन ब्राम्हीण मूवमेंट इन वेस्टर्न इंडिया, दलित एन्ड डेमोक्रेटिक रिवोल्यूशन, अंडरस्टैन्डिग कास्ट: फ्राम बुद्ध टू अम्बेडकर एन्ड बियान्ड, न्यू सोशल मूवमेंट इन इंडिया आदि शामिल हैं.

मृत्यु पर देश के लोगों ने जताया शोक

राज्यसभा में विपक्ष नेता मल्लिकार्जुन खड़गे, माकपा नेता सीताराम येचुरी, राकांपा अध्यक्ष शरद पवार और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है.

ठाकरे ने कहा कि विभिन्न सामाजिक आंदोलनों, लोक परंपराओं और महिलाओं के अधिकारों पर काम के लिए ओमवेट के योगदान को याद किया जाएगा.

अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष डॉ. अशोक धवले ने उन्हें "एक प्रगतिशील उत्कृष्ट बौद्धिक-सह-कार्यकर्ता" बताया और शोक संतप्त परिवार के प्रति संवेदना व्यक्त की.

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