उत्तर प्रदेश में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन के दौरान कथित रूप से हिंसा फैलाने वालों के पोस्टर लखनऊ में लगाए जाने के मामले पर आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को रोकने से इनकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के बाद इस मामले को बड़ी बेंच के हवाले कर दिया. 3 जजों की बेंच अब इस मामले पर सुनवाई करेगी. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार से ये भी पूछा है कि उन्होंने किस कानून के तहत लोगों के पोस्टर लगाए थे.
दरअसल, इसस पहले ये मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंचा था. जहां हाई कोर्ट ने सीएए प्रदर्शन के दौरान कथित हिंसा के आरोपियों का पोस्टर हटाने का आदेश दिया था. इसी आदेश को उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.
सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा, “यह बहुत महत्वपूर्ण है, यूपी सरकार के पास इस तरह के पोस्टर लगाने की क्या शक्ति है. अब तक, ऐसा कोई कानून नहीं है जो आपकी कार्रवाई को सही कह सके.”
यूपी सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने रखी दलील
उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से कोर्ट में पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने 57 लोगों के खिलाफ जो आरोप लगे हैं उनमें सबूत हैं. लेकिन आरोपियों ने अब निजता के अधिकार का हवाला देते हुए हाई कोर्ट में होर्डिंग को चुनौती दी. तुषार मेहता ने कहा, “विरोध प्रदर्शन के दौरान बंदूक चलाने वाला और हिंसा में कथित रूप से शामिल होने वाला, निजता के अधिकार का दावा नहीं कर सकता.”
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने पूछा कि "वह शक्ति कहां है, जिन शक्तियों का इस्तेमाल कर लखनऊ में सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में कथित आगजनी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई की गई.”
सुनवाई कर रहे दूसके जज जस्टिस ललित ने सरकार से पूछा कि क्या प्रदर्शनकारियों को हर्जाना जमा करने की समय सीमा बीत गई है? इसके जवाब में तुषार मेहता ने कहा, “अभी नहीं, उन्होंने हाईकोर्ट में चुनौती दिया है.” तुषार मेहता के जवाब पर जस्टिस ललित ने कहा कि अगर समय सीमा बीत गई होती तो भी बैनर लगाने वाली बात समझ में आती.
सुनवाई के दौरान जस्टिस ललित ने पूरे मामले को तीन जजों की बेंच को भेजने के संकेत दिए हैं.
लखनऊ में हुए थे प्रदर्शन
बता दें लखनऊ में दिसंबर में नागरिकता कानून के खिलाफ प्रदर्शन हुए थे. इस दौरान कुछ उपद्रवियों द्वारा कुछ जगहों पर तोड़-फोड़ की गई थी. इसके बाद जिला प्रशासन ने इनकी पहचान करने का दावा किया था. बड़ी संख्या में लोगों को हिरासत में भी लिया गया था.
इनमें सामाजिक कार्यकर्ता सदफ जफर जैसे लोग भी शामिल थे. जफर को उस वक्त गिरफ्तार किया गया था, जब वे कुछ पत्थरबाजों का फेसबुक लाइव करते हुए पुलिस वालों से उनपर एक्शन लेने की बात कह रही थीं.
आरोपियों के वकील ने रखी अपनी बात
हिंसे के आरोपी और पूर्व आईपीएस अधिकारी दारापुरी की ओर से सीनियर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने बहस की. सिंघवी ने कहा कि यूपी सरकार ने कुछ बुनियादी नियम की अनदेखी की. अभिषेक मनु सिंघवी ने बाल बलात्कारियों और हत्यारों के मामलों का उदाहरण देते हुए कहा- “हम कब से और कैसे इस देश में किसी के नाम से उसे शर्मिंदा करने की नीति रखने लगे हैं? अगर ऐसा होता तो रेप और हत्या के मामलों में आरोपियों की तस्वीरें इसी तरह सार्वजनिक रूप से लगा दी जाएं, तो आरोपी की लिंचिंग हो जाएगी.
क्या फैसला दिया था इलाहाबाद हाई कोर्ट ने?
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सीएए प्रदर्शन के दौरान कथित हिंसा के आरोपियों का पोस्टर हटाने का आदेश दिया तथा. लखनऊ के अलग-अलग चौराहों पर वसूली के लिए 57 कथित प्रदर्शनकारियों के 100 पोस्टर लगाए गए हैं.
चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और जस्टिस रमेश सिन्हा की बेंच ने अपने आदेश में कहा था कि लखनऊ के जिलाधिकारी और पुलिस कमिश्नर 16 मार्च तक होर्डिस हटवाएं. साथ ही इसकी जानकारी रजिस्ट्रार को दें. हाईकोर्ट ने दोनों अधिकारियों को हलफनामा भी दाखिल करने का आदेश दिया है.
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