देश की सर्वोच्च अदालत ने सबरीमाला मंदिर विवाद मामले में महिलाओं के हक में अहम टिप्पणी की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि केरल के ऐतिहासिक सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर बैन को सही ठहाराना लैंगिक न्याय को खतरे में डालता है.
खतरे में है लैंगिक न्याय
सुप्रीम कोर्ट ने कल सोमवार को कहा कि वह वर्तमान प्रचलित परंपराओं से नहीं बल्कि संवैधानिक सिद्धातों के आधार पर सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के अधिकार पर फैसला करेगा.
लैंगिक न्याय खतरे में है. हम अब संविधान के तहत तर्काधारों के अनुसार ही चलेंगे. इस याचिका की गंभीरता यह है कि लैंगिक न्याय खतरे में है. क्या आप किसी महिला को माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने के उसके अधिकार से इंकार कर सकते हैं? किसी पर प्रतिबंध लगाने के कारण सभी के लिए समान और संविधान के मूल सिद्धातों के अनुरूप होने चाहिए.’’जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ
इस पीठ में जस्टिस दीपक मिश्रा के साथ-साथ जस्टिस वी गोपाल गौडा और जस्टिस कुरियन जोसेफ भी शामिल थे. पीठ ने प्रतिबंध का समर्थन कर रहे वकील से मंदिर बोर्ड के रोक के आदेश का समर्थन करने वाले संवैधानिक सिद्धांतों के बारे में भी पूछा.
संविधान के ऊपर नहीं हैं प्रचलित मान्यताएं
‘इंडियन यंग लायर्स एसोसिएशन’ की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने प्रतिबंध का समर्थन कर रहे वकील से कहा कि प्रचलित परंपराएं संवैधानिक मूल्यों के ऊपर नहीं हो सकतीं.
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