"RAW या IB की सीक्रेट और संवेदनशील रिपोर्ट को सार्वजनिक करना गंभीर चिंता का विषय है." केंद्रीय कानून मंत्री के पद से गुरुवार, 18 मई को हटाए गए केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू (Kiren Rijiju) ने जनवरी में यह बात कही था. रिजिजू का यह बयान केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच कॉलेजियम के मुद्दे पर खींचतान के चरम पर आया था.
हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति को लेकर कानून मंत्रालय और न्यायपालिका के बीच लंबे समय से चले आ रहे विवाद के बीच यह टिप्पणी कई ऐसी टिप्पणियों में से सिर्फ एक थी.
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने एक अभूतपूर्व कदम उठाया था और अपने द्वारा अनुशंसित जजों के नाम पर केंद्र सरकार की आपत्तियों को सार्वजनिक कर दिया था. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और अन्य सीनियर जजों से बनी इस कॉलेजियम ने केंद्र सरकार की आपत्तियों को नकारते हुए अपनी सिफारिशों को दोहराया था.
कॉलेजियम की सिफारिश वाले वकीलों के नाम पर सरकार की आपत्तियों में उनकी सेक्सुअलिटी से लेकर प्रधानमंत्री की आलोचना करने वाले सोशल मीडिया पोस्ट जैसी वजहें दी गयीं थीं.
रिजिजू ने फरवरी में दोहराया था कि "सरकार सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा सुझाए गए नामों पर पुनर्विचार की मांग कर सकती है."
रिजिजू कॉलेजियम पर अपने बयानों से पर लगातार सुर्खियों में थे और इससे सरकार के 'न्यायपालिका के सर्वोच्च होने' के स्टैंड पर सवाल उठने लगे थे . ऐसे में केंद्र सरकार ने अर्जुन राम मेघवाल को गुरुवार को रिजिजू के रिप्लेसमेंट के रूप में घोषित किया.
अर्जुन मेघवाल को मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार दिया गया है. उन्होंने घोषणा के तुरंत बाद न्यायपालिका और केंद्र के बीच किसी भी तरह के विवाद से इनकार करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया.
मेघवाल पीएम मोदी के एक कट्टर वफादार हैं, पूर्व आईएएस अधिकारी हैं और एक परदे की पीछे काम करने वाले अनुभवी राजनेता हैं. बीजेपी के सूत्रों ने मेघवाल को चुनने के पीछे चार प्रमुख कारणों की ओर इशारा किया है.
1. अर्जुन मेघवाल: एक लो प्रोफाइल लेकिन अनुभवी मंत्री
राजस्थान के एक अनुभवी राजनेता, मेघवाल पहली बार 2009 में बीकानेर से बीजेपी सांसद के रूप में चुने गए. उन्होंने 2014 में सीट बरकरार रखी और लोकसभा में बीजेपी के मुख्य सचेतक / चीफ व्हिप नियुक्त किए गए. वह मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में संसदीय कार्य, जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण राज्य मंत्री भी थे.
2019 में सरकार के सत्ता में लौटने के बाद मेघवाल एक बार फिर संसदीय मामलों और भारी उद्योग और सार्वजनिक उद्यम राज्य मंत्री बने.
बीकानेर के डूंगर कॉलेज से एलएलबी की डिग्री पाने वाले मेघवाल एक पूर्व आईएएस अधिकारी हैं. वह 2011-2014 में राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अंदर 'न्यायपालिका में आरक्षण' पर समिति के सह-अध्यक्ष थे.
अतीत में दिए गए कुछ विवादास्पद बयानों को छोड़ दें तो, मेघवाल एक लो प्रोफाइल रखने के लिए जाने जाते हैं जो कानून मंत्रालय और न्यायपालिका के बीच सार्वजनिक तकरार के बाद फायदेमंद हो सकता है.
2. धारणा बन रही थी कि रिजिजू बिना रिजल्ट दिए सुर्खियां बटोर रहे थे
यह सही है कि सरकार न्यायपालिका के साथ हर संघर्ष के दौरान रिजिजू के साथ खड़ी रही लेकिन मीडिया के ध्यान के बावजूद कोई समाधान नहीं निकला. इसके अलावा, मोदी सरकार न्यायपालिका में विश्वास पर बार-बार दावा करती रही है. लेकिन रिजिजू के बयानों से यह धारणा बन रही थी कि सरकार देश की न्यायपालिका को खत्म करने की कोशिश कर रही है. इसने सरकार के लिए स्थिति को और जटिल बना दिया था.
3. न्यायपालिका पर सरकार के रुख में कोई बदलाव नहीं लेकिन...
सूत्रों ने दावा किया कि रिजिजू को हटाने का मतलब यह है कि न्यायपालिका और कॉलेजियम की शक्तियों को लेकर सरकार के रुख में कोई बदलाव आया है या वो इस मुद्दे पर नरम पड़ने वाली है.
हालांकि, सरकार को उम्मीद है कि न्यायिक मामलों और विवादों से निपटने के मोर्चे पर अर्जुन मेघवाल नया दृष्टिकोण लाएंगे और सुर्खियों में लाने वाले सार्वजनिक झगड़ों से बचे रहेंगे.
4. राजस्थान के एक दलित नेता
राजस्थान के एक दलित नेता मेघवाल की अपने क्षेत्र में पदक है और उन्हें अधिक प्रमुखता देना राजस्थान चुनाव से कुछ महीने पहले विभिन्न गुटों और सामाजिक समूहों को एक साथ लाने का पार्टी का तरीका है.
मेघवाल राजस्थान के सीमावर्ती जिलों में बीजेपी के सबसे प्रमुख नेताओं में से एक हैं. मेघवाल समुदाय के सबसे प्रमुख राजनेताओं में से एक, मेघवाल राज्य में बीजेपी के सबसे प्रमुख दलित चेहरों में से एक हैं.
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