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मेघवाल Vs मेघवाल: राजस्थान BJP के दलित नेता क्यों भिड़े, इसके पीछे की वजह क्या है?

कैलाश मेघवाल भीलवाड़ा की शाहपुरा सीट से विधायक हैं. वसुंधरा राजे के करीबी माने जाते हैं. उनकी उम्र 89 साल हो चुकी है. ऐसे में इस बार उनके टिकट पर संकट है.

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भारत
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राजस्थान (Rajasthan) में विधानसभा चुनाव से पहले सियासी सरगर्मी बढ़ गई है. एक तरफ जहां बीजेपी जनता से आशीर्वाद लेने के लिए 'यात्राएं' निकाल रही है, तो दूसरी तरफ पार्टी के दो नेताओं की आपसी भिड़ंत सुर्खियां बटोर रही हैं. बीजेपी के दिग्गज नेता और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल (Kailash Meghwal) ने केंद्रीय कानून मंत्री एवं न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को "भ्रष्ट नंबर एक" करार दिया है. उन्होंने कहा है कि अर्जुन मेघवाल को पद से हटाने के लिए पीएम मोदी को पत्र लिखेंगे. वहीं, अर्जुन राम मेघवाल ने भी पलटवार किया और कहा कि उनका टिकट कट गया है, इसलिए वो ऐसी बातें कर रहे हैं. अब राजस्थान में पूरी लड़ाई मेघवाल Vs मेघवाल हो गई है.

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चलिए जानते हैं कि ऐसा क्या हुआ, जिससे एक ही पार्टी के दो नेता एक म्यान में दो तलवार की तरह हो गए हैं. इससे पहले जान लेते हैं कि आखिर कैलाश मेघवाल हैं कौन और राजस्थान की राजनीति में कितनी हैसियत रखते हैं?

कौन हैं कैलाश मेघवाल?

कैलाश चंद्र मेघवाल का नाम राजस्थान के सबसे बड़े दलित नेता के लिस्ट में शुमार है. भारतीय जनसंघ और फिर जनता पार्टी में शामिल होने से पहले वे 1960 के दशक की शुरुआत में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से जुड़े थे. छह दशकों के राजनीतिक करियर में वे केंद्रीय राज्य मंत्री, राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष, बीजेपी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, तीन बार लोकसभा सांसद और छह बार विधायक रह चुके हैं.

साल 2018 के चुनाव में कैलाश मेघवाल ने शाहपुरा सीट से सबसे बड़ी जीत हासिल की थी. उन्होंने करीब 53 हजार वोंटों से जीत हासिल की थी. मेघवाल आपातकाल के दौरान मीसा कानून के तहत 1975 और 1977 के बीच लगभग 19 महीने तक जेल में भी बंद रहे थे.

अब समझते हैं कि आखिर राजस्थान बीजेपी में मेघवाल Vs मेघवाल क्यों हैं?

दरअसल, ये पहली बार नहीं जब कैलाश मेघवाल ने पार्टी लाइन का उल्लंघन किया हो. इससे पहले भी वो कई बार पार्टी लाइन का उल्लंघन कर चुके हैं. कैलाश मेघवाल की नाराजगी मुख्य रूप से साल 2018 विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद से शुरू होती है. बीजेपी राज्य की सत्ता से बाहर होती है और कांग्रेस की वापसी होती है. उस समय कैलाश मेघवाल तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष होते हैं. कांग्रेस शॉर्ट टर्म नोटिस देकर विधानसभा सत्र को आहूत करती है. इसका विरोध तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल खुले तौर पर करते हैं कि बिना विधानसभा अध्यक्ष से सलाह-मशवरा लिए पार्टी ने विधानसभा सत्र को आहूत कर लिया है, लेकिन पार्टी का कोई नेता उनके समर्थन में नहीं उतरता है.

कैलाश मेघवाल की नाराजगी पार्टी में लगातार कम होती पूछ से भी है. कैलाश मेघवाल राजस्थान के बड़े दलित कद्दावर नेता हैं. वे पार्टी की विचारधारा के साथ तब से जुड़े हैं, जब जनसंघ हुआ करता था. राजस्थान के कद्दावर नेता भैरोसिंह शेखावत और कैलाश मेघवाल की अटल सरकार में शाख थी. अटल सरकार में कैलाश मेघवाल केंद्रीय मंत्री भी रह चुके हैं.

उनके ही समाज से आने वाले अर्जुनराम मेघवाल पार्टी में हर दिन एक नई सीढ़ियां चढ़ रहे हैं. लेकिन, पार्टी आलाकमान, कैलाश मेघवाल की बढ़ती उम्र का हवाला देकर उनकी अनदेखी कर रहा है.

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जब साल 2018 में नेता प्रतिपक्ष बनाने की बात आई तो चर्चा जोरों पर थी कि पार्टी के सबसे कद्दावर नेता कैलाश मेघवाल को इस पद के लिए पार्टी नामित करेगी. लेकिन, पार्टी ने गुलाबचंद कटारिया को नेता प्रतिपक्ष की भूमिका से नवाजा. इस बात को लेकर भी कैलाश मेघवाल में टीस है.

राजस्थान के वरिष्ठ पत्रकार प्रेम मीणा कहते हैं,

कैलाश मेघवाल भीलवाड़ा की शाहपुरा सीट से विधायक हैं. वसुंधरा राजे के करीबी माने जाते हैं. उनकी उम्र 89 साल हो चुकी है. ऐसे में इस बार उनके टिकट पर संकट है.

जानकारों का मानना है कि अर्जुनराम मेघवाल पिछले कुछ समय में 5 बार भीलवाड़ा का दौरा कर चुके हैं. भीलवाड़ा बीजेपी के जिला उपाध्यक्ष रोशन मेघवंशी उनके करीबी हैं. रोशन ने 2018 में भी कैलाश मेघवाल के सामने शाहपुरा से टिकट मांगा था, लेकिन पार्टी ने टिकट नहीं दिया था. ऐसे में कैलाश मेघवाल को इस बात का डर है कि अर्जुनराम मेघवाल इस बार उनका टिकट कटवा सकते हैं. टिकट रोशन मेघवंशी के हिस्से जा सकता है. लिहाजा, वो अर्जुनराम मेघवाल पर आक्रामक हो गए है.

वरिष्ठ पत्रकार प्रेम मीणा कहते हैं,

"कैलाश मेघवाल ने अर्जुनराम मेघवाल पर जो आरोप लगाए हैं, उनमें कुछ सच्चाई भी है. अर्जुनराम मेघवाल RAS अधिकारी थे. वसुंधरा सरकार में उन्हें प्रमोट कर IAS अधिकारी बनाया गया. उस समय खबरें भी आईं थी कि तत्कालीन IAS अर्जुनराम मेघवाल के कामों में अनियमितता पाई गई हैं लेकिन, उस वक्त वसुंधरा सरकार ने उसे दबा दिया था."
"अब जब कैलाश मेघवाल के अस्तित्व पर सवाल खड़ा हुआ है, तो उन्होंने अपने ही समाज (दलित) के तेजी से सीढ़ियां चढ़ते नेता को निशाने पर लिया है. इसमें कोई दो राय नहीं है कि कैलाश मेघवाल की पार्टी आलाकमान अनदेखी कर रहा है और अर्जुनराम मेघवाल को तवज्जो दे रहा है और उन्हें पार्टी दलित नेता के तौर पर आगे बढ़ा रहा है. लेकिन, कैलाश मेघवाल को भी समय की नजाकत को परखना चाहिए."

दरअसल, बीजेपी 75 साल से ऊपर के नेताओं को टिकट देने से परहेज कर रही है. युवा नेतृत्व को बढ़ावा दे रही है. इसके कई उदाहरण लोकसभा चुनाव के दौरान देखे जा चुके हैं. माना जा रहा है कि इसी रणनीति के तहत इस बार कैलाश मेघवाल का टिकट पार्टी काट सकती है, जिससे कैलाश मेघवाल नाराज चल रहे हैं.

"कैलाश मेघवाल को पार्टी टिकट दे या नहीं, पर कैलाश मेघवाल निर्दलीय चुनाव लड़ने का दम रखते हैं. अपने क्षेत्र में उनकी बड़ी पैठ है. पिछले 2018 चुनाव में कैलाश मेघवाल ने शाहपुरा सीट से सबसे बड़ी जीत हासिल की थी. उन्होंने करीब 53 हजार वोंटों से जीत हासिल की थी."
प्रेम मीणा, वरिष्ठ पत्रकार
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राजे समर्थकों को किया जा रहा साइडलाइन

प्रेम मीणा आगे कहते हैं कि "पार्टी आलाकमान, वसुंधरा राजे के समर्थकों को निशाने पर ले रहा है. कैलाश मेघवाल, रोहिताश्व शर्मा, देवी सिंह भाटी को पार्टी ने निशाने पर ले रखा है. वे पार्टी में शामिल होना चाहते हैं, लेकिन अर्जुनराम मेघवाल उन्हें शामिल नहीं कराना चाहते हैं, वे अनुशासन समिति में अध्यक्ष हैं. अनुशासन समिति जो सिफारिश करेगी, उन्हीं को पार्टी में शामिल किया जाता है."

"कभी अर्जुनराम मेघवाल भी वसुंधरा के करीबी हुआ करते थे, लेकिन जैसे ही उनका कद बढ़ा वो भी वसुंधरा राजे विरोधी नेताओं की कतार में खड़े हो गए हैं. अर्जुनराम मेघवाल के केंद्र से अच्छे संबंध हैं, जबकि वसुंधरा राजे और केंद्र के बीच सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है."
प्रेम मीणा, वरिष्ठ पत्रकार

प्रेम मीणा कहते हैं चूंकि, कैलाश मेघवाल वसुंधरा के करीबियों में से एक हैं, इसलिए भी पार्टी आलाकमान के निशाने पर हैं. यही वजह है कि पार्टी आलाकमान उनके समक्ष अर्जुनराम मेघवाल को दलित नेता के तौर खड़ा कर रहा है और ये बात कैलाश मेघवाल को अच्छी नहीं लग रही है. यानी कुल मिलाकर देखा जाए तो राज्य में दलित नेता की कुर्सी की लड़ाई है.

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