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अशोक स्तंभ के 'बदले' शेर पर जंग? क्यों है विवाद और क्या सरकार इसे बदल सकती है?

26 जनवरी 1950 को अशोक स्तंभ देश का राष्ट्रीय प्रतीक बना.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने 11 जुलाई को नए संसद भवन की छत पर अशोक स्तंभ (Ashok Stambh) का अनावरण किया, लेकिन अब इसे लेकर सवाल उठ रहे हैं. पीतल का बना विशाल अशोक स्तंभ साढ़े 6 मीटर ऊंचा है और इसका वजन साढ़े 9 हजार किलो है. लेकिन अब अशोक स्तंभ के रूप को लेकर विवाद शुरू हो गया है. कहा जा रहा है कि राष्ट्रीय चिन्ह (अशोक स्तंभ) को बदलाव किया गया है. कई विपक्षी नेताओं ने अशोक संत्भ में बने शेर की दहाड़ती मुद्रा को लेकर सरकार की आलोचना की है.

ऐसे में आइए जानते हैं अशोक स्तंभ क्या है, कानून क्या कहता है, इतिहास में इसका महत्व है, सरकार का तर्क क्या है और क्या हैं इसके मायने.

सरकार ने क्या किया है?

दरअसल, नए संसद भवन के छत पर अशोक स्तंभ लगाए जाने को लेकर तीन तरह के विवाद हुए. एक तो पीएम नरेंद्र मोदी की मौजूदगी, दूसरा जब राष्ट्रीय प्रतीक है तो फिर एक धर्म की पूजा के आधार पर अनावरण क्यों और तीसरा अशोक स्तंभ का डिजाइन. विपक्ष का कहना है कि नए अशोक स्तंभ में शेर आक्रामक मुद्रा में नजर आते हैं, जबकि असली स्तंभ के शेर शांत मुद्रा में हैं. आइए विवाद से पहले इसके डिजाइन को समझते हैं.

कैसा है अशोक स्तंभ

भारत का राष्ट्रीय प्रतीक उत्तर प्रदेश के सारनाथ में मौजूद अशोक के सिंह स्तंभ की अनुकृति है, जो मौर्य साम्राज्य के शासनकाल के दौरान 280 ईसा पूर्व की एक प्राचीन मूर्ति है. मूल स्‍तंभ के शीर्ष पर चार भारतीय शेर एक-दूसरे से पीठ सटाए खड़े हैं, जिसे सिंहचतुर्मुख कहते हैं. सिंहचतुर्मुख के आधार के बीच में अशोक चक्र है जो राष्‍ट्रीय ध्‍वज के बीच में भी दिखाई देता है.

26 जनवरी 1950 को अशोक स्तंभ देश का राष्ट्रीय प्रतीक बन गया इसी दिन संविधान लागू होने के बाद भारत एक गणतंत्र बना था.

अशोक स्तंभ पर मौजूद चार शेर के अलावा इसके नीचे घंटे के आकार के पदम के ऊपर एक चित्र वल्लरी में एक हाथी, एक घोड़ा, एक सांड और एक शेर की उभरी हुई मूर्तियां हैं. इसके बीच-बीच में चक्र बने हुए हैं. एक ही पत्थर को काट कर बनाए गए इस सिंह स्तंभ के ऊपर 'धर्मचक्र' रखा हुआ है.

वहीं अगर 2D तस्वीर की बात करें तो इसमें तीन शेर ही दिखाई पड़ते हैं, चौथा दिखाई नहीं देता. हालांकि 3D में चारों शेर दिखते हैं.

वहीं सबसे नीचे मुण्डकोपनिषद का सूत्र 'सत्यमेव जयते' देवनागरी लिपि में लिखा है, जिसका अर्थ है- 'सत्य की ही विजय होती है'.

अशोक स्तंभ सरकारी लेटरहेड से लेकर करेंसी नोट और भारत द्वारा जारी किए गए पासपोर्ट तक, सभी आधिकारिक सरकारी दस्तावेजों पर राष्ट्रीय प्रतीक की उपस्थिति पाई जाती है. यह सभी राष्ट्रीय और राज्य सरकार के कार्यालयों के लिए आधिकारिक मुहर के रूप में काम करता है.
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इतिहास में महत्व क्या है?

दरअसल, भारत के महत्वपूर्ण सरकारी दस्तावेजों, मुद्राओं पर अशोक स्तंभ दिखायी देता है. यह प्रतीक सम्राट अशोक की युद्ध और शांति की नीति को दर्शाता है. सम्राट अशोक मौर्य वंश के तीसरे शासक थे. ऐसे कई स्‍तंभ अशोक ने भारतीय उपमहाद्वीप में फैले अपने साम्राज्‍य में कई जगह लगवाए थे, जिनमें से सांची का स्‍तंभ प्रमुख है.

सम्राट अशोक को शक्तिशाली शासकों में गिना जाता है. इतिहास के पन्नों से पता चलता है कि बौद्ध धर्म अपनाने से पहले उनका साम्राज्य तक्षशिला से लेकर मैसूर तक फैला हुआ था.वहीं दूसरी ओर पूर्व में बांग्लादेश से पश्चिम में ईरान तक उनका राज्य था. इसी दौरान उन्होंने कई जगहों पर स्तंभ स्थापित करवाया था. लेकिन सारनाथ में मौजूद स्तंभ को ही भारत के राष्ट्रीय प्रतीक के रूप में अपनाया गया. भारत का राज्य प्रतीक अशोक के सारनाथ lion capital of Ashok का एक रूपांतर है, जिसे सारनाथ संग्रहालय में संरक्षित किया गया है.

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कानून क्या कहता है?

राष्ट्रीय चिह्नों का दुरुपयोग रोकने के लिए भारतीय राष्ट्रीय चिह्न (दुरुपयोग रोकथाम) कानून 2000 बनाया गया. इसे 2007 में संशोधित किया गया. ऐसे में अब सवाल ये है कि इस पूरे विवाद पर कानून क्या कहता है. क्या भारत सरकार राष्ट्रीय प्रतीकों में बदलाव कर सकती है? भारतीय राष्ट्रीय चिन्ह (दुरुपयोग की रोकथाम) एक्ट के सेक्शन 6 में 'प्रतीक के उपयोग को विनियमित करने के लिए केंद्र सरकार की सामान्य शक्तियों' का जिक्र है.

एक्ट में ये बताया गया है कि भारत का जो राष्ट्रीय प्रतीक है वो सारनाथ के Lion Capital of Asoka से प्रेरणा लेता है. एक्ट के सेक्शन 6(2)(f) में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि सरकार राष्ट्रीय प्रतीकों की डिजाइन में बदलाव कर सकती है.

हालांकि इस एक्ट के तहत सिर्फ डिजाइन में बदलाव किया जा सकता है, पूरे राष्ट्रीय प्रतीक को नहीं बदला जा सकता. लेकिन अगर सरकार चाहे तो कानून में बदलाव कर प्रतीक को भी बदल सकती है.

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विपक्ष के आरोप क्या हैं?

आम आदमी पार्टी से राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने एक ट्वीट को शेयर करते हुए पूछा है कि मैं 130 करोड़ भारतवासियों से पूछना चाहता हूं राष्ट्रीय चिन्ह बदलने वालों को “राष्ट्र विरोधी”बोलना चाहिए की नही बोलना चाहिए.

वहीं राज्यसभा सांसद और एआईसीसी के प्रवक्ता जयराम रमेश ने ट्वीट किया- सारनाथ के अशोक स्तंभ में बने सिंहों के कैरेक्टर यानी चरित्र और प्रकृति दोनों को पूरी तरह से बदल दिया गया है. उन्होंने कहा कि ये साफ तौर पर राष्ट्रीय चिह्न का अपमान है!

सरकारी पक्ष के लोग क्या कह रहे हैं?

सरकार की तरफ से केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने एक ट्वीट कर विपक्ष पर कटाक्ष किया है. उन्होंने लिखा है कि अगर कोई व्यक्ति नीचे से सारनाथ प्रतीक को देखता है, तो वह उतना ही शांत या क्रोधित दिखाई देगा, जितना बताया जा रहा है.

उन्होंने कहा कि 'विशेषज्ञों' को यह भी पता होना चाहिए कि सारनाथ में रखा गया मूल प्रतीक जमीन पर है जबकि नया प्रतीक जमीन से 33 मीटर की ऊंचाई पर है.

केंद्रीय मंत्री ने एक अन्य ट्वीट में कहा, 'अगर सारनाथ में स्थित प्रतीक चिन्ह के आकार को बढ़ाया जाए या नए संसद भवन पर लगे प्रतीक के आकार को छोटा कर दिया जाए तो दोनों में कोई फर्क नहीं दिखेगा.''

सरकार की तरफ से केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने इस विवाद पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि जिन लोगों ने संविधान तोड़ा, वे अशोक स्तंभ का क्या कहेंगे. जो मां काली का सम्मान नहीं कर सकते, वे अशोक स्तंभ का क्या करेंगे. मूर्तिकार ने अपनी तरफ से कुछ भी नहीं बदला है.

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