भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के सीनियर लीडर और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की 'राष्ट्रधर्म' पत्रिका का भविष्य खतरे में हैं. केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्रालय ने ‘राष्ट्रधर्म’ पत्रिका की डायरेक्टेट ऑफ एडवरटाइजिंग एंड विजुअल पब्लिसिटी की मान्यता रद्द कर दी है, जिसके बाद यह पत्रिका केंद्र के विज्ञापनों की सूची से बाहर हो गई है.
सूचना प्रसारण मंत्रालय की ओर से एक लिस्ट जारी की गई है. लिस्ट में कुल 804 पत्र-पत्रिकाओं की डीएवीपी मान्यता को रद्द किया गया है, इस लिस्ट में यूपी की 165 पत्र-पत्रिकाएं शामिल हैं.
राष्ट्रधर्म के संपादक रह चुके हैं वाजपेयी
‘राष्ट्रधर्म’ पत्रिका की शुरुआत साल 1947 में हुई थी. उस वक्त अटल जी कानपुर में रहकर पढ़ाई कर रहे थे. उस वक्त भी अटल की पहचान मंझे हुए साहित्यकार के तौर पर थी. इसी दौरान संघ के तत्कालीन प्रांत प्रचारक भाऊराव देवरस और सह प्रांत प्रचारक दीनदयाल उपाध्याय ने एक मासिक पत्रिका निकालने की योजना बनाई. भाऊराव और दीनदयाल उपाध्याय ने अटलजी को लखनऊ बुलाया और उन्हें ‘राष्ट्रधर्म’ पत्रिका का संपादक बना दिया. ‘राष्ट्रधर्म’ के पहले अंक में ही अटलजी की चर्चित कविता ‘ हिंदू तन-मन, हिंदू जीवन, हिंदू रग-रग मेरा परिचय’ का प्रकाशन हुआ था. इस पत्रिका का उद्देश्य संघ की विचारधारा के जरिए लोगों को राष्ट्र धर्म के प्रति जागरुक करना था.
क्यों रद्द हुई मान्यता?
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सूचना प्रसारण मंत्रालय की ओर से जारी पत्र में कहा गया है कि अक्टूबर 2016 के बाद से इन पत्रिकाओं की कॉपी पीआईबी और डीएवीपी के ऑफिस में जमा नहीं कराई गई है.
अनुचित है सरकार की कार्रवाई
राष्ट्र धर्म पत्रिका की ओर से कहा गया है कि सरकार की ओर से की गई कार्रवाई पूरी तरह से अनुचित है. राष्ट्रधर्म के प्रबंधक पवन पुत्र बादल के मुताबिक, अभी उनके पास इस बारे में कोई जानकारी नहीं है. उन्होंने कहा अगर ऐसा हुआ है तो यह गलत है.
उन्होंने बताया कि इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी सरकार ने राष्ट्र धर्म के कार्यालय को सील करवा दिया था, उस समय भी पत्रिका का प्रकाशन बंद नहीं हुआ था. उन्होंने कहा कि अगर किसी कार्यालय को कॉपी नहीं मिली है तो उन्हें नोटिस देकर पूछना चाहिए था. बिना नोटिस के कार्रवाई करना गलत है.
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