अयोध्या के राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद मामले पर सुनवाई 16 अक्टूबर को खत्म होने की संभावना है. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने सुनवाई के आखिरी दिन शुरुआती 45 मिनट हिंदू पक्ष को, इसके बाद एक घंटा मुस्लिम पक्ष को के लिए दिया है. इसके बाद 45 मिनट के चार स्लॉट मामले में शामिल अलग-अलग पक्षों के लिए तय किए गए हैं.
आखिरी सुनवाई से पहले मंगलवार को 39वें दिन सुप्रीम कोर्ट में हिंदू पक्ष ने अपनी दलीलें पेश की. यहां हम आपको बताते हैं, आखिरी दिन की सुनवाई से एक दिन पहले कोर्ट में क्या-क्या हुआ.
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- हिंदू पक्ष की ओर से पेश पूर्व अटॉर्नी जनरल और सीनियर एडवोकेट के परासरन ने कहा कि मुगल शासक बाबर ने खुद को कानून से ऊपर रखते हुए अयोध्या में राम की जन्मभूमि पर मस्जिद बनाकर ऐतिहासिक गलती की थी.
- चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ के सामने परासरन ने कहा, 'अयोध्या में बहुत सी मस्जिदों में मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज अदा कर सकते हैं, लेकिन हिंदू भगवान राम के जन्मस्थान को नहीं बदल सकते.'
- मामले की सुनवाई कर रही संविधान पीठ ने परासरन से कई सवाल पूछे. पीठ ने पूछा कि क्या मुस्लिम अयोध्या में कथित मस्जिद छह दिसंबर, 1992 को ढहाए जाने के बाद भी विवादित संपत्ति की मांग कर सकते हैं? पीठ ने पूछा, 'मुस्लिम पक्ष कहते हैं, एक बार मस्जिद है तो हमेशा ही मस्जिद है, क्या आप इसका समर्थन करते हैं?'
- एडवोकेट परासरन ने कहा, 'नहीं. मैं इसका समर्थन नहीं करता. मैं कहूंगा कि एक बार मंदिर है तो हमेशा मंदिर ही रहेगा.' तमाम सवाल पूछने के बाद जस्टिस रंजन गोगोई ने मुस्लिम पक्षकारों के वकील राजीव धवन से पूछा, 'क्या हम हिंदू पक्ष से सही सवाल पूछ रहे हैं?'
- परासरण ने कहा, मुस्लिमों को साबित करना होगा कि जमीन पर उनका हक है. इसपर कोर्ट ने उनसे पूछा कि क्या बिना एडवर्स पजेशन को साबित किए मालिकाना हक साबित किया जा सकता है? इस पर वकील ने कहा, एडवर्स पजेशन में भी किसी की जमीन पर कोई जबरन इमारत बना ले, तो जमीन का मालिकाना हक जमीन वाले का ही रहता है.
- परासरण के बाद हिंदू पक्षकारों की ओर से सीएस वैद्यनाथन ने दलीले दी. उन्होंने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड 1949 से लेकर 1992 तक कब्जा खो चुके थे. जमीन पर अधिकार हमारा ही है. इस मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने चीखते हुए कहा 'जस्ट स्टॉप इट'.
- वैद्यनाथन ने कहा कि हाईकोर्ट ने भी माना है कि दस्तावेजों में मस्जिद को वित्तीय मदद (ग्रांट) का कोई सबूत नहीं है, लेकिन 1860 के बताए जा रहे दस्तावेजों में ग्रांट की बात कही जा रही है. इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ग्रांट की दलील से उनका कोई अधिकार साबित नहीं होता, लेकिन वो मस्जिद का वजूद बता रहे हैं.
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