सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या मामले में जल्द सुनवाई की मांग वाली याचिका पर कहा है कि वो मध्यस्थता समिति की रिपोर्ट का इंतजार करेगा. इसके साथ ही कोर्ट ने मध्यस्थता समिति से 25 जुलाई तक विस्तृत रिपोर्ट सौंपने को कहा है. बता दें कि 9 जुलाई को एक वादकार गोपाल सिंह विशारद ने अयोध्या मामले की जल्द सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था.
विशारद के वकील ने कहा था कि मध्यस्थता समिति से मामले में कोई भी सकारात्मक नतीजा निकलता नहीं दिख रहा है, ऐसे में कोर्ट को मामले की सुनवाई के लिए तारीख देनी चाहिए.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च को शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश एफएमआई कलीफुल्ला की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति गठित की थी. इस समिति में अध्यात्मिक गुरु, आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक श्री श्री रविशंकर और जाने माने मध्यस्थता विशेषज्ञ, वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पंचू भी शामिल हैं. इस मध्यस्थता समिति को सीजेआई रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने गठित किया था.
सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता समिति का कार्यकाल मई में 15 अगस्त तक के लिए बढ़ा दिया था ताकि वह अपनी कार्यवाही पूरी कर सके. ऐसा करते हुए कोर्ट ने कहा था, ''अगर मध्यस्थता करने वाले नतीजों के बारे में आशान्वित हैं और 15 अगस्त तक का समय चाहते हैं तो समय देने में क्या नुकसान है? यह मुद्दा सालों से लंबित है. इसके लिए हमें समय क्यों नहीं देना चाहिए?''
इससे पहले शीर्ष सुप्रीम कोर्ट ने 8 मार्च के आदेश में मध्यस्थता समिति को 8 सप्ताह के अंदर अपना काम पूरा करने के लिए कहा था. इस समिति को अयोध्या से करीब सात किलोमीटर दूर फैजाबाद में अपना काम करना था. इसके लिए राज्य सरकार को पर्याप्त बंदोबस्त करने के निर्देश दिए गए थे.
अयोध्या भूमि विवाद पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2010 के अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या में विवादित स्थल की 2.77 एकड़ भूमि तीन पक्षकारों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर-बराबर बांट दी जाए. हाई कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में कुल 14 अर्जियां दायर की गई हैं.
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