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न बाबर अयोध्या आया, न मंदिर गिराकर मस्जिद बनाई गईः SC में पक्षकार

‘अखिल भारतीय श्रीराम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति’ की ओर से वकील ने रखा पक्ष 

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मुगल बादशाह बाबर ना कभी अयोध्या आया और ना ही उसने विवादित रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद स्थल पर 1528 में मस्जिद बनाने के लिए मंदिर को ध्वस्त करने का आदेश दिया. ये बात हिंदू पक्षकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के सामने कही.

मुस्लिम पक्षकार की ओर से दायर किए गए मुकदमे में ‘अखिल भारतीय श्रीराम जन्मभूमि पुनरुद्धार समिति’ ने सुप्रीम कोर्ट में ‘बाबरनामा’, ‘हुमायूंनामा’, ‘अकबरनामा’ और ‘तुजुक-ए-जहांगीरी’ किताबों के हवाले से ये बात कही. समिति ने चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ से कहा कि इन किताबों में से किसी में भी बाबरी मस्जिद के अस्तित्व पर बात नहीं की गई है.

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दशकों पुराने मामले में सुनवाई के 14 वें दिन हिंदू पक्षकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पीएन मिश्रा ने पैरवी की. मिश्रा ने कहा कि इन किताबों, खास तौर पर प्रथम मुगल सम्राट के सेनापति मीर बकी द्वारा लिखित 'बाबरनामा', ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद के निर्माण या मंदिर तोड़े जाने के बारे में कोई बात नहीं की है.

मिश्रा ने जस्टिस एसए बोबडे, डी वाई चंद्रचूड़, अशोक भूषण और एसए नाजेर की पीठ को बताया-

“बाबर ने अयोध्या में प्रवेश नहीं किया था और इसलिए, उसके पास 1528 ईस्वी में मंदिर तोड़ने और मस्जिद बनाने का कोई मौका ही नहीं था. इसके अलावा, उसके कमांडर मीर बाकी के साथ कोई व्यक्ति नहीं था.”   

हिंदू पक्षकार के वकील की दलील

मिश्रा ने कहा कि मीर बकी अयोध्या पर आक्रमण का नेतृत्व करने वाले सेनापति नहीं थे. उन्होंने पीठ से कहा कि वह दूसरे पक्ष से पूछें कि वह इन ऐतिहासिक पुस्तकों का उल्लेख करके क्या साबित करने की कोशिश कर रहे थे.

मिश्रा ने कहा कि इस मामले में ‘बाबरनामा’ पहली ऐतिहासिक पुस्तक है जिसका मुसलमानों ने हवाला दिया. मिश्रा ने कहा,“प्रतिवादी के तौर पर मैं उनकी (मुस्लिम पक्षकार) इस मांग को खारिज करना चाहता हूं कि हमारे मंदिर को मस्जिद घोषित किया जाना चाहिए.”

मिश्रा ने कहा कि ‘बाबरनामा’ सम्राट के जीवन के 18 वर्षों से संबंधित है. लेकिन इसमें कहीं भी अयोध्या में मस्जिद निर्माण की बात नहीं है. जब तथाकथित मस्जिद का निर्माण करने का आदेश दिया गया था, तब राजा आगरा में था. मिश्रा ने कहा, “अगर किसी इमारत को मस्जिद घोषित किया जाना है तो उन्हें यह साबित करना होगा कि बाबर वहां से ‘वाकिफ’ था.”

वकील मिश्रा ने कहा, "आदमी झूठ बोल सकता है, लेकिन हालात झूठ नहीं बोल सकते."

उन्होंने कहा कि बाबर ने अवध के मुस्लिम शासक इब्राहिम लोदी को हराने के बाद मार दिया था. इसके बाद बाबर ने अपने भाई को क्षेत्र का कमांडर बना दिया. उन्होंने कहा कि मुसलमानों का कहना है कि मीर बाकी बाबर के सेनापति थे, जोकि गलत है.

उन्होंने कहा कि जिन तथाकथित शिलालेखों में मस्जिद के अस्तित्व का जिक्र है, उन्हें सबसे पहले 1946 में देखा गया था, जब एक मजिस्ट्रेट ने वहां का दौरा किया था और उसका कहना था कि शिलालेख फर्जी थे.

मिश्रा ने इसके बाद अबुल फजल की आइन-ए-अकबरी का हवाला देते हुए कहा कि 1576 में उन्होंने अयोध्या में ‘रामकोट’ के बारे में लिखा था, जिसे हिंदुओं द्वारा भगवान राम के जन्म स्थान के रूप में पूजा जाता था. मिश्रा ने कहा, ‘लेकिन आइन-ए-अकबरी में कहीं भी नहीं लिखा है कि अयोध्या में कोई मस्जिद थी.’ हालांकि, इस किताब में आस-पास के इलाकों में तीन कब्रों के बारे में बताया गया है.  

पीठ ने पूछा, "क्या आइन-ए-अकबरी में किसी भी अन्य मस्जिद का उल्लेख है?" इस पर, वकील ने कहा कि वह विवरण के साथ वापस आएंगे.

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इसके बाद वकील ने बाबर की बेटी गुलबदन बेगम द्वारा लिखित ‘हुमायूंनामा’ और बाबर के परपोते की 'तुजुक-ए-जहांगीरी' का हवाला दिया और इस बात पर जोर दिया कि इन दोनों किताबों में अयोध्या में मस्जिद के निर्माण के बारे में कुछ भी उल्लेख नहीं किया गया है.

मिश्रा ने कहा कि यह बात स्थापित है कि मस्जिद का निर्माण बाबर ने नहीं बल्कि औरंगजेब ने कराया था और उसने मथुरा और काशी में मंदिरों को गिरवा दिया था. उन्होंने कहा कि दीवानी मामले में यह प्रतिवादी का कर्तव्य है कि वह वादी की याचिका को असत्य प्रमाणित करे.

वकील ने कहा कि गलत दलीलों को लेकर वह मुकदमा खारिज करने की मांग कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि रामचरित मानस लिखने वाले तुलसी दास समकालीन थे लेकिन उन्होंने बाबरी मस्जिद के बारे में कुछ भी नहीं लिखा है.

(इनपुट्सः पीटीआई)

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