भीमा कोरेगांव मामले के दस में से नौ आरोपी फिलहाल जेल में बंद हैं. इस बीच 'द कारवां' ने शनिवार को अपने एक रिपोर्ट में कहा है कि पुणे पुलिस ने अपनी जांच और मामले से जुड़े सबूतों में "कई तकनीकी गड़बड़ियां की और साफ तौर पर प्रक्रियाओं में उल्लंघन किया."
सबूतों की जांच के आधार पर, द कारवां की रिपोर्ट का दावा है कि पुणे पुलिस ने डिजिटल सबूतों को संभालने के लिए की गई प्रक्रिया का आईटी एक्ट, 2000 के तहत "खुले तौर पर उल्लंघन" किया है, खासतौर से आरोपी सुरेंद्र गडलिंग से जुड़े सबूतों के मामले में.
पिछले साल पुणे पुलिस ने दावा किया था कि उसने सुरेंद्र गाडलिंग और बंदी अधिकार कार्यकर्ता रोना विल्सन के कंप्यूटरों की हार्ड ड्राइवों से इन लोगों के खिलाफ आरोप सिद्ध करने वाले कई खत बरामद किए हैं. इन दस्तावेजों की बारीकी से जांच करने पर पुलिस की जांच में अनियमितताओं को लेकर गंभीर सवाल खड़े होते हैं.
द कारवां की रिपोर्ट में पुलिस के कथित उल्लंघनों का जिक्र करते हुए बताया गया है कि ऐसा लगता है कि पुलिस कस्टडी में इन फाइलों को एडिट किया गया है, जबकि आरोपियों के घरों पर मारे गए छापों के दौरान प्रक्रियाओं का उल्लंघन भी किया गया.
रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकारियों द्वारा आरोपियों को उनके खिलाफ इस्तेमाल किए गए सबूतों को समय पर मुहैया नहीं करवाया गया. इसके अलावा, ‘.docx ‘या’ ‘.pdf’ फॉरमैट्स में फाइलों के बारे में भी सवाल उठ रहे हैं, जिनमें ईमेल फॉरमैट की तुलना में हेरफेर करना आसान होता है.
इस मामले के आरोपियों में सुरेंद्र गडलिंग, रोना विल्सन, शोमा सेन, महेश राउत, वरवर राव, सुधीर धवले, सुधा भारद्वाज, वर्नोन गोंसाल्विस और अरुण फरेरा शामिल हैं.
पुणे पुलिस के मुताबिक, 31 दिसंबर 2017 को शहर में आयोजित एल्गर परिषद के सम्मेलन में उनके द्वारा दिए गए भड़काऊ भाषणों ने अगले दिन (1 जनवरी 2018) को जिले के कोरेगांव-भीमा युद्ध स्मारक में जातिगत हिंसा भड़का दी.
अदालत में पेश किए जाने से पहले मीडिया में लीक हुए एक खत का हवाला देते हुए उन्होंने ये भी दावा किया है कि कार्यकर्ता प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश का हिस्सा थे. कारवां के विश्लेषण से इस खत के बारे में गंभीर सवाल उठते हैं, जिसमें गडलिंग के कंप्यूटर पर इस खत से संबंधित मेटाडेटा और इसके फॉरमैटिंग से जुड़े मुद्दे शामिल हैं.
बता दें कि भीमा कोरेगांव गांव में हुई हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और 10 पुलिसकर्मियों समेत कई लोग घायल हो गए थे. महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार ने जिक्र किया है कि वह इस केस में हिंसा के लिए गिरफ्तार लोगों के खिलाफ मामलों को खत्म करने पर विचार कर रही है, हालांकि मामले में आरोपी कार्यकर्ताओं के खिलाफ केस के बारे में अभी तक कोई बयान नहीं आया है.
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