भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में पुणे की एक अदालत ने तीन सामाजिक कार्यकर्ता सुधा भारद्वाज, वर्नोन गोनजाल्विस और अरुण फरेरा की जमानत याचिका खारिज कर दी है. पुलिस ने माओवादियों से संबंध रखने के आरोप में इन्हें गिरफ्तार किया था.
पुणे पुलिस ने इन तीनों को कवि पी वरवर राव और गौतम नवलखा के साथ 31 दिसंबर को हुए यलगार काउंसिल कॉन्फ्रेंस से कथित संबंध के मामले में 28 अगस्त को गिरफ्तार किया था. इस कॉन्फ्रेंस के बाद ही भीमा-कोरेगांव हिंसा भड़की थी.
पुलिस ने आरोप लगाया है कि इस सम्मेलन के कुछ समर्थकों के माओवादी से संबंध हैं. डिस्ट्रिक्ट और सेशन जज (स्पेशल जज) केडी वडाणे ने भारद्वाज, गोनजाल्विस और फरेरा की जमानत याचिका खारिज कर दी.
अभियोजन पक्ष ने जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि आरोपियों के खिलाफ 'सबूत' उनकी माओवादी गतिविधियों में शामिल होने की पुष्टि करते हैं. इसमें बताया गया कि ये बड़े संस्थानों से छात्रों की भर्ती करने और उन्हें 'पेशेवर क्रांतिकारी' बनने, पैसा जुटाने और हथियार खरीदने के लिए सुदूर इलाकों में भेजने जैसे काम में शामिल हैं.
भीमा कोरेगांव गिरफ्तारी केसः क्या है मामला
भीमा कोरेगांव हिंसा की साजिश रचने और नक्सलवादियों से संबंध रखने के आरोप में पुणे पुलिस ने बीती 28 अगस्त को देश के अलग-अलग हिस्सों से वामपंथी विचारक गौतम नवलखा, वारवर राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा और वरनोन गोंजालविस को गिरफ्तार किया था.
इसके बाद 29 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने इन गिरफ्तारियों पर रोक लगा दी और अगली सुनवाई तक हिरासत में लिए गए सभी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को अपने ही घर में नजरबंद रखने के लिए कहा था.
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