बिहार में बीजेपी और जेडीयू के बीच लोकसभा सीटों के बंटवारे को लेकर अब भी पेच फंसा हुआ है. 12 जुलाई को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात के बाद सोमवार को नीतीश कुमार ने कहा है कि बीजेपी की तरफ से प्रपोजल 3-4 हफ्ते में आ जाएगा.
बिहार के सीएम ने कहा है कि राज्य में गठबंधन की सरकार होने के कारण विधानसभा को लेकर अलग से बैठक भी हुई है. दरअसल, जेडीयू-बीजेपी गठबंधन के बाद से ही सीटों के बंटवारे को लेकर लगातार कई तरह की अटकलें लगाई जा रही हैं. दोनों ही पार्टियों की तरफ से कुछ नेता भी बीच-बीच में बयान देकर मामले को और उलझा देते हैं.
बिहार में 'बड़ा भाई' बनने की जेडीयू की कोशिश
आरजेडी, कांग्रेस के साथ महागठबंधन से अलग होकर नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ सरकार बनाई थी. विधानसभा में सीटों की संख्या के आधार पर नीतीश की पार्टी जेडीयू खुद को बड़े भाई के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रही है. दूसरी तरफ, एनडीए के दूसरे सहयोगी एलजेपी और आरएलएसपी भी सीटों को लेकर अपने रुख पर अड़े हुए हैं. ऐसे में कुल मिलाकर बीजेपी और जेडीयू, दोनों के लिए असमंजस के हालात हैं.
2009 के हिसाब से सोच रही है जेडीयू?
बिहार में एनडीए की पहली पारी में जेडीयू बड़े भाई की भूमिका में रही थी. साल 2009 में जेडीयू और बीजेपी ने साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा. उस दौरान बिहार की कुल 40 लोकसभा सीटों में से जेडीयू ने 25, तो बीजेपी ने 15 सीटों पर चुनाव लड़ा था. लेकिन साल 2014 में दोनों पार्टियों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा, जिसमें नीतीश की पार्टी को महज दो सीटें मिलीं थी. वहीं बीजेपी ने सबसे ज्यादा 22 सीटें हासिल की थीं.
अब 2009 और 2014 के चक्कर में बीजेपी और जेडीयू के बीच सीटों को लेकर 'अनबन' चल रही है. हालांकि दोनों पार्टियों के अध्यक्ष का दावा है कि सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा है और ये गठबंधन बरकरार रहेगा.
(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)