ADVERTISEMENTREMOVE AD

बिहार के मुजफ्फरपुर में इंसेफेलाइटिस का कहर, 84 बच्चों की मौत

3 दशक में 50 हजार से ज्यादा जाने गईं

story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

रोती माएं, अस्पताल के बेड पर निढाल पड़े बच्चे, डॉक्टर की तरफ उम्मीद से देखते हुए पिता की आंखें. बिहार के मुजफ्फरपुर में पिछले कुछ दिनों से यह नजारा आम हो गया है. यहां इंसेफेलाइटिस (चमकी बुखार) का ऐसा कहर टूटा है कि करीब 1 महीने में 84 मौतें हो गई हैं.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

इस बीच केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन 16 जून को स्थिति का जायजा लेने के लिए मुजफ्फरपुर पहुंचे.

राज्य सरकार की एडवाइजरी में लीची से बचने की सलाह

राज्‍य सरकार ने इंसेफेलाइटिस को देखते हुए एक एडवाइजरी जारी की है. जिसमें लीची से सावधानी बरतने के साथ-साथ कई सारी हिदायत भी दी है. एडवाइजरी के मुताबिक बच्‍चों को खाली पेट लीची न खाने की सलाह दी गई है, इसके साथ ही कच्‍ची लीची से भी परहेज करने को कहा गया है.

बच्चों की मौत के कारण पर अलग-अलग तर्क?

डॉक्टर और सरकारी अधिकारी बच्चों की मौत का कारण सीधे तौर पर इंसेफेलाइटिस कहने से बच रहे हैं. मौत की वजह पहले हाइपोग्लाइसीमिया ( ब्लड में अचानक शुगर की कमी ) या सोडियम की कमी बताई गई.

क्विंट फिट से बातचीत में मुजफ्फरपुर के सिविल सर्जन डॉ शैलेश सिंह ने बताया कि बीमार बच्चों में लो ब्लड शुगर (हाइपोग्लाइसीमिया) या सोडियम और पोटेशियम की कमी देखी जा रही है. ज्यादातर मामलों में यही देखा गया कि दिन भर धूप में रहने के बाद और रात में ठीक से खाना न खाने या भूखे सोने के बाद बच्चे चमकी बुखार की चपेट में आ गए.

3 दशक में 50 हजार से ज्यादा जाने गईं

बिहार के मुजफ्फरपुर और आसपास के इलाकों में चमकी बुखार की दहशत है. एक्यूट इंसेफलाइटिस सिंड्रोम (AES)/जापानी इंसेफेलाइटिस (JE)/दिमागी बुखार को बिहार में 'चमकी' बुखार के नाम से जाना जाता है. ये बिमारी मॉनसून और पोस्ट मॉनसून यानी जुलाई से अक्टूबर के दौरान अपने चरम पर होती है. सरकारी आंकड़ों से इतर कई दूसरी रिपोर्ट्स के मुताबिक पिछले 3 दशक में करीब 50 हजार बच्चे इस बीमारी के शिकार हुए हैं.

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

Published: 
सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×