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बिहार शपथग्रहण: नीतीश की कैबिनेट पर साफ है लालू का असर

गठबंधन के दो बड़े खिलाड़ियों के बीच एक मुश्किल रिश्ते की शुरूआत हो चुकी है.

Published
भारत
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चार महीने पहले जब लालू ने नीतीश को मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर स्वीकार किया था तो अपने निर्णय की तुलना जहर से करते हुए कहा था कि, “जहर भी पी सकते हैं”.

पर आज जहर पीने की बारी नीतीश की थी. लालू के दसवीं फेल बेटे को अपनी 28 सदस्यीय कैबिनेट में नंबर दो पर बिठा कर जहर पीने जैसा ही तो महसूस कर रहे होंगे नीतीश.

राजनीति पर नजर रखने वालों की मानें तो पहली बार एमएलए बने अपने बेटों को सीधे मंत्री पद की शपथ दिला कर लालू ने अपने तरीके से सारा मुआवजा वसूल लिया है.

रोघोपुर सीट पर बीजेपी के सतीश यादव को हरा कर एमएलए बने तेजस्वी ने नीतीश के तुरंत बाद शपथ ली तो लोगों ने आसानी से अनुमान लगा लिया कि लालू ने उन्हें उप मुख्यमंत्री बनाने की तैयारीकर ली है.

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लालू की उत्तराधिकार योजना

उप मुख्यमंत्री की नियुक्ति को ले कर संविधान में कोई नियम नहीं हैं. पारंपरिक रुप से मुख्यमंत्री जिसे चाहें उसे अपना नंबर दो मंत्री बना देता है.

बड़े भाई तेज और अब्दुल बरी सिद्दकी व बिजेन्द्र यादव जैसे नेताओं से पहले शपथ ले कर तेजस्वी ने बिहार को लालू की उत्तराधिकार योजना के बारे में पूरे संकेत दे दिये थे.

समझने वाले आसानी से समझ सकते हैं कि नीतीश जैसा नो-नॉनसेंस नेता जो आसानी से किसी के दबाव में नहीं आता, उसके लिए लालू के बेटे को उप मुख्यमंत्री बनाना कितना मुश्किल रहा होगा, वो भी तब जब उसे पता हो कि अपनी नई पारी में उस पर लालू के दबाव में आ जाने का आरोप लगाया जा सकता है.



गठबंधन के  दो बड़े खिलाड़ियों के बीच एक मुश्किल रिश्ते की शुरूआत हो चुकी है.
लालू का छोटा बेटा, तेजस्वी, शपथ ग्रहण करते हुए.  (फोटो: एएनआई)

कोई शक नहीं कि अकेले सबसे ज्यादा 80 सीटें जीतने वाली लालू की आरजेडी, महागठबंधन के मंत्रिमंडल में अपना मनचाहा हिस्सा मांगने से नहीं चूकेगी.

नीतीश के जानने वालों को अच्छी तरह पता है कि अपने तीन दशक लंबे राजनीतिक करियर में नीतीश पांचवी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ले तो रहे हैं पर इस बार शुरूआत उनके लिए शुभ नहीं रही. तेज प्रताप के शपथग्रहण के दौरान यह साफ भी हो गया.

उपेक्षित शब्द को गलत पढ़ने की वजह से लालू के बड़े बेटे को दोबारा शपथ लेनी पड़ी. गलती करने पर राज्यपाल रामनाथ कोविंद ने पहली बार शपथ ले रहे तेज को एक शिक्षक की तरह उपेक्षित और अपेक्षित शब्द का अंतर समझाया.



गठबंधन के  दो बड़े खिलाड़ियों के बीच एक मुश्किल रिश्ते की शुरूआत हो चुकी है.
नीतीश के मंत्रिमंडल पर लालू के असर को देखते हुए सवाल ये उठता है कि कहीं ये एक मुश्किल रिश्ते की आसान शुरूआत तो नहीं? (फोटो: पीटीआई)

तेज प्रताप के किस्से को ‘उपेक्षित’ छोड़ दिया जाए तो जब नीतीश के विश्वस्त सहयोगी और सीनियर एमएलए श्याम रजक को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली तो नीतीश के मंत्रिमंडल पर लालू का असर साफ नजर आया.

सूत्र कहते हैं कि एक समय लालू का दायां हाथ समझे जाने वाले रजक अपने गुरू लालू को छोड़ 2009 में नीतीश के मंत्री बन गए थे. और अब मौका मिलने पर लालू ने अपना गुस्सा निकाल लिया.

पर बीजेपी से दूरी बनाए रखने के लिए नीतीश को कुछ तो कीमत चुकानी थी. नीतीश अपने करीबी दोस्त पीके साही को भी कैबिनेट में शायद इसीलिए जगह नहीं दे सके क्योंकि साही ने एक वकील के तौर पर लालू का चारा घोटाले का केस लड़ा था, जिसके चलते उन्हें जेल जाना पड़ा था.

कई राजनीतिक पंडित इसे जल्दबाजी कह सकते हैं, पर गठबंधन के इन दो बड़े खिलाड़ियों के बीच एक मुश्किल रिश्ते की शुरूआत हो चुकी है जिससे आने वाले वक्त में बिहार को नए तूफानों का सामना करना पड़ सकता है.

(लेखिका बिहार में पत्रकार हैं)

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