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POCSO पर विवादित फैसला सुनाने वाली जज का एक्सटेंशन एक साल कम हुआ

बॉम्बे हाईकोर्ट की अतिरिक्त न्यायधीश पद पर मिलने वाला दो साल का एक्सटेंशन एक साल कम हुआ.

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बाल यौन शोषण मामले पर विवादास्पद फैसलों के बाद चर्चा मे आईं बॉम्बे हाईकोर्ट की जज पी. वी. गनेडीवाला को अब भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. हाल ही मे पॉक्सो ऐक्ट के तहत संदिग्ध व्यक्ति को बरी करने के फैसले की वजह से गनेडीवाला काफी आलोचना का शिकार हुई थीं. अब उन्हें बॉम्बे हाईकोर्ट की अतिरिक्त न्यायधीश पद पर मिलने वाले दो साल के एक्सटेंशन से भी हाथ धोना पड़ रहा है.

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सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने की सिफारिश को केंद्र सरकार ने खारिज करते हुए उन्हें सिर्फ एक साल के एक्सटेंशन को अनुमति दी है.

चीफ जस्टिस एस.ए. बोबड़े की अध्यक्षता में सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय कॉलेजियम ने 20 जनवरी को गनेडिवाल की बॉम्बे हाईकोर्ट की स्थायी न्यायधीश की तौर पर केंद्र सरकार को सिफारिश की थी. 13 फरवरी को गनेडीवाला का बॉम्बे हाई कोर्ट की अतिरिक्त न्यायधीश पद पर कार्यकाल समाप्त होने जा रहा है. लेकिन नाबालिगों के यौन शोषण मामलों पर एक के बाद एक विवादास्पद फैसले की वजह से कॉलेजियम को अपनी सिफारिश वापस लेने का अभूतपूर्व कदम उठाना पड़ा है.

किन फैसलों पर खड़ा हुआ था विवाद?

दरअसल, 19 जनवरी को एक मामले में जज गनेडीवाला ने फैसला दिया था की पीड़िता के साथ स्किन टू स्किन संपर्क के बिना उसे यौन शोषण नहीं कहा जा सकता. एक नाबालिग के यौन उत्पीड़न मामले मे गनेडीवाला ने पॉक्सो एक्ट के तहत 39 साल के संदिग्ध व्यक्ति को बरी कर दिया था. फैसला सुनाते हुए जज गनेडिवाल ने कहा था, “किसी नाबालिग को निर्वस्त्र किए बिना उसके स्तन को छूना यौन शोषण नहीं कहा जा सकता.”

इस आदेश के बाद देशभर से इस फैसले पर बहस छिड़ गई थी. ये मामला अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट मे रखा और इस फैसले पर उठी नाराजी के चलते इसे तत्काल रूप से स्थगित कर दिया.

28 जनवरी को एक दूसरे फैसले में गनेडीवाला ने 50 वर्षीय व्यक्ति को ये कहते हुए राहत दी थी कि “बच्ची के सामने अपनी पैंट की जिप खोलना पॉक्सो एक्ट के तहत यौन अपराध नहीं हो सकता."

इस मामले में पांच साल की बच्ची के साथ यौन उत्पीड़न का मामला था. फैसले में कहा गया कि बच्चे का हाथ पकड़ना या फिर पैंट की जिप खोलना पॉक्सो एक्ट के तहत बच्ची का हाथ पकड़ना और पेंट की जिप खोलना यौन शोषण की परिभाषा में नहीं आएगा. हालांकिं इस मामले में पॉक्सो एक्ट रद्द करते हुए धारा 354A के तहत अपराध माना गया जिसके लिए आरोपी को अधिकतम 3 साल की सजा का प्रावधान है.

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बता दें कि इन फैसलों से मचे हल्ले के बाद जस्टिस गनेडीवाला का प्रमोशन भी संकट मे आ चुका है. द टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि खुद कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने जस्टिस गनेडीवाला की एक्सटेंशन पर केंद्र के ऐतराज से कॉलेजियम को अवगत कराया. ऐसे में कानून मंत्रालय ने गनेडीवाला की फाइल पीएमओ को भेजते हुए सिर्फ एक साल के एक्सटेंशन, यानी 13 फरवरी, 2022 तक कि अनुमति की पेशकश की है.

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