मध्य प्रदेश की धार्मिक नगरी उज्जैन में गुरुवार को कुंभ मेले में बारिश के कारण पंडाल गिरने से 7 लोगों की जान चली गई और 60 से ज्यादा लोग घायल हो गए. चक्रवाती हवाओं और बारिश से मंगलनाथ और चिंतामन क्षेत्र में कई पंडाल धराशायी हो गए थे. इससे अफरा-तफरी मच गई.
प्रदेश सरकार ने एक महीने तक चलने वाले सिंहस्थ मेले के इंतजाम और विकास कार्यों पर लगभग 3,500 करोड़ रुपये खर्च किए थे. इसके बावजूद जानलेवा हादसा होना कई सवाल खड़े करता है.
यह पहली दफा नहीं है, जब धार्मिक आयोजन के दौरान हादसे में लोगों की जान गई हो. कई बार आयोजन के दौरान बदइंतजामी की वजह से लोगों की मौत हुई, तो कभी कुदरत ने उन पर अपना कहर बरपाया.
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर भारी-भरकम रकम खर्च करने के बावजूद देश में बार-बार ऐसे हादसे होते क्यों हैं? आखिर चूक कहां रह जाती है. ऐसे मामलों पर डालिए एक नजर...
साल 2013: इलाहाबाद में रेलवे स्टेशन पर जानलेवा भगदड़
10 फरवरी, 2013 को विश्व प्रसिद्ध कुम्भ मेले के दौरान इलाहाबाद में रेलवे स्टेशन पर मची भगदड़ में 36 लोग मारे गए थे. हादसा उस वक्त हुआ था, जब हजारों की संख्या में कुंभ में अमावस्या के मौके पर स्नान करके लौट रहे श्रद्धालु स्टेशन पर जमा हो गए थे.
इस हादसे की असल वजह यह थी कि स्टेशन पर बड़ी तादाद में जमा होने वाली भीड़ को कंट्रोल करने के लिए कोई कारगर सिस्टम मौजूद नहीं था. रेल प्रशासन ने पहले ऐसा सोचा ही नहीं कि जब एकसाथ इतने सारे श्रद्धालु स्टेशन पर जमा होंगे, तो इस भीड़ को मैनेज कैसे किया जाएगा.
साल 2013: रतनगढ़ मंदिर हादसा
13 अक्टूबर, 2013 को मध्य प्रदेश के दतिया के रतनगढ़ मंदिर में पुल टूटने की अफवाह से मची भगदड़ में 115 लोगों की मौत हो गई थी. नवरात्र के अंतिम दिन बड़ी संख्या में श्रद्धालु माता के मंदिर में दर्शन करने पहुंचे थे. मंदिर से पहले सिंध नदी पुल पर भारी भीड़ थी. पुल के संकरा होने और उस पर बड़ी संख्या में ट्रैक्टरों के पहुंचने से जाम की स्थिति बन गई.
जाम के कारण भीड़ बेकाबू हो गई. साथ ही पुलिस ने वहां हल्का बल प्रयोग भी कर दिया, जिससे भगदड़ मच गई. एक तरफ श्रद्धालु जहां एक-दूसरे को कुचलते हुए भागने की कोशिश में लगे थे, तो कई लोग जान बचाने के लिए नदी में कूद गए.
यहां भी प्रशासन की लापरवाही सामने आई. पुल पर लोगों के आने-जाने के इंतजाम नाकाफी थे. साथ ही लाठीचार्ज से मामला और बिगड़ गया. थोड़ी-सी सूझबूझ से ऐसे हादसों से बचा जा सकता था.
साल 2014: चित्रकूट के कामदगिरी मंदिर में भगदड़
25 अगस्त, 2014 को एमपी के सतना जिले में स्थित चित्रकूट के कामदगिरी मंदिर में परिक्रमा के दौरान मची भगदड़ में 10 लोगों की मौत हो गई थी. 60 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. परिक्रमा स्थल से करीब 3 किलोमीटर पहले से बैरीकेड्स लगाकर भीड़ को नियंत्रित किया जाना था. लेकिन वहां तैनात पुलिसकर्मियों ने लापरवाही बरती और एकसाथ लाखों की संख्या में श्रद्धालु परिक्रमा के लिए निकल पड़े, जिससे स्थिति बेकाबू हो गई.
प्रशासन ने अगर सामान्य सूझ-बूझ से काम लिया होता, तो ऐसे हादसे से बचा जा सकता था. भीड़ को नियंंत्रित करने में प्रशासन की नाकामी उजागर हो गई.
साल 2016: केरल के पुत्तिंगल मंदिर में आग
हाल ही में 10 अप्रैल, 2016 केरल के कोल्लम स्थित पुत्तिंगल मंदिर में आग लगने से एक बड़ा हादसा सामने आया था. यह हादसा सात दिवसीय ‘मीना भरणी’ उत्सव के अंतिम दिन आतिशबाजी के दौरान हुआ था. मीनम के अवसर पर हर साल पुत्तिंगल मंदिर में आतिशबाजी प्रतियोगिता होती थी, लेकिन इस बार प्रशासन की अनुमति नहीं होने के बावजूद यह प्रतियोगिता करवाई गई.
प्रतियोगियों ने एक-दूसरे को पछाड़ने के लिए आतिशबाजी शुरू कर दी. एक रॉकेटनुमा पटाखा ऊपर न जाकर बीच में फट गया और पटाखों से भरे गोदाम पर गिर गया, जिससे भीषण आग लग गई. हादसे में 108 लोगों की मौत हो गई, जबकि 400 के करीब लोग घायल हो गए थे.
हादसे की वजह साफ है. प्रशासन की इजाजत के बिना इतने बड़े पैमाने पर आतिशबाजी की गई. प्रशासन ने वक्त रहते इस पर ध्यान नहीं दिया. साथ ही आतिशबाजी के दौरान इस बात का खयाल नहीं रखा गया कि थोड़ी-सी चूक से कितना बड़ा हादसा हो सकता है.
साल 2012: पटना में अदालत घाट पर भगदड़
19 नवंबर, 2012 को पटना में छठ पूजा के दौरान शाम को सूर्य को पहला अर्ध्य देने के बाद लोगों का हुजूम वापस घाट की तरफ लौटने लगा. इसी बीच चचरी पुल धंसने लगा. वहां अफरातफरी मच गई. लोग पास के ही अदालत घाट में बने पीपा पुल की तरफ भागे. वहां रास्ता संकरा होने के कारण सारी व्यवस्था ध्वस्त हो गई. लोगों को आने-जाने का रास्ता नहीं मिल पाया.
इसी बीच पीपा पुल में करंट आने की बात फैली, जिसके बाद वहां भगदड़ मच गई. जिसको जहां जगह मिली, वहीं भागने लगा. इस भगदड़ में लोग एक-दूसरे पर गिरने लगे और देखते ही देखते कोहराम मच गया. हादसे में 21 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी.
छठ के दौरान कामचलाऊ पुल भारी भीड़ के लिए नाकाफी साबित हुआ. ऊपर से अफवाह ने लोगों में बेचैनी पैदा कर दी. छठ में घाटों पर भीड़ जुटना आम बात है, पर इसको लेकर प्रशासन ने दूरदर्शिता नहीं दिखाई. यहां तक कि घायलों को अस्पतालों में भर्ती कराने में भी प्रशासन ने चुस्ती नहीं दिखाई.
साल 2011: सबरीमाला अयप्पा मंदिर में भगदड़
14 जनवरी, 2011 मकर संक्रांति पर्व के मौके पर केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला अयप्पा मंदिर के पास भगदड़ में 109 श्रद्धालुओं की मौत हो गई थी. इडुक्की जिले के पुलिमेडु के जंगल में ये हादसा उस वक्त हुआ था, जब यात्रियों से भरी एक जीप श्रद्धालुओं की भीड़ पर चढ़ गई. इससे वहां भगदड़ मच गई.
श्रद्धालु आराम कर रहे थे और रास्ता भी काफी संकरा था, इसलिए लोगों को जहां जगह मिली, वहीं भागने लगे. लेकिन अपनी जान बचाने के दौरान कई ऐसे भी थे, जो भीड़ के कदमों तले कुचले गए. भगदड़ उनके लिए मौत की वजह बन गई. लाखों की संख्या में श्रद्धालु मकरज्योति के दर्शनों के लिए सबरीमाला मंदिर में पहुंचे थे.
सवाल उठता है कि जब पहले से ही भीड़ जुटनी तय थी, तो वक्त रहते इंतजाम क्यों नहीं किए गए?
निश्चित तौर पर धर्म हमारी आस्था से जुड़ा है. धार्मिक स्थलों पर हुई दुर्घटनाओं पर नजर डालें, तो कहीं प्रशासन का ढीला-ढाला रवैया सामने आता है, तो कहीं व्यवस्था में भारी चूक. कई बार लोगों की अंधभक्ति से जिंदगी दांव पर लगाती दिखती हैं, तो कई बार अफवाहें जानलेवा साबित होती हैं. इसलिए जरूरत है एक बेहतर प्रबंधन नीति बनाने की.
अगर धार्मिक आयोजनों पर हम बेहतर प्रबंधन नीति नहीं बनाते हैं, तो हादसों में बेगुनाह लोग मरते रहेंगे और हम हाथ पर हाथ रख मौत का तांडव देखते रहेंगे.
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