"सीबीआई कांग्रेस ब्यूरो ऑफ इनवेस्टिगेशन बन गई है. राष्ट्र को इसमें भरोसा नहीं है. मैं केंद्र सरकार से कहता हूं कि हमें सीबीआई का डर न दिखाए." 24 जून 2013 को गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने ये ट्वीट किया था. अब जब नरेंद्र मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं तब बिहारी की मुख्यमंत्री रह चुकी राबड़ी देवी (Rabri Devi) ने केंद्र सरकार पर सीबीआई के जरिए परेशान करने का आरोप लगाया है.
दरअसल, सोमवार 06 मार्च 2023 की सुबह बिहार की पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल की नेता राबड़ी देवी (Rabri Devi) के घर सीबीआई (CBI) की टीम पहुंची थी. जांच एजेंसी IRCTC घोटाला यानी जमीन के बदले रेलवे में नौकरी देने के मामले में पूछताछ करने आई थी. सीबीआई के इस एक्शन पर एक बार फिर सरकारी एजेंसी की जांच की टाइमिंग सवालों के घेरे में है. एक बार फिर सवाल उठ रहा है कि क्या सरकारी एजेंसियां केंद्र सरकार के इशारे पर विपक्षी नेताओं को टार्गेट कर रही हैं? क्या सरकार बदले की कार्रवाई कर रही है? क्या इन एक्शन के पीछे कोई पैटर्न है?
राबड़ी देवी ने PM मोदी पर बोला था हमला, एक हफ्ते बाद CBI पहुंची घर
एक हफ्ते पहले ही 28 फरवरी 2023 को राबड़ी देवी ने पीएम मोदी पर हमला बोला था. उन्होंने कहा था
उन्हें (PM मोदी) बिहार में लालू जी से डर है, इसलिए वे हमें बांधाना चाहते हैं. हम न बंधने वाले हैं न भागने वाले हैं. 30 साल से हमें परेशान किया जा रहा है, हम झेल ही रहे हैं आगे भी झेलेंगे, कोई भागना नहीं हैं और न हम लोगों को डर है.
राबड़ी देवी के बयान के ठीक एक हफ्ते बाद 06 मार्च 2023 को सीबीआई उनके घर पहुंच गई. सीबीआई की इस पूछताछ पर इसलिए सवाल उठ रहा है क्योंकि रेलवे भर्ती घोटाला मामले में सीबीआई द्वारा चार्जशीट दाखिल करने के बाद दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी, मीसा भारती समेत कुल 14 लोगों को समन भेजा है. सभी को 15 मार्च तक कोर्ट में पेश होने का आदेश दिया था. फिर 6 मार्च को ही सीबीआई राबड़ी आवास क्यों पहुंच गई?
सरकारी एजेंसी पर सरकार के इशारे पर काम करने के आरोप और एक्शन के पैटर्न को समझने से पहले एक आंकड़ा देखिए.
संसद में पेश रिकॉर्ड के मुतबिक ED ने 2004 से 2014 के बीच 112 छापे मारे थे वहीं 2014 से 2022 यानी कि मोदी सरकार के दौरान 3000 रेड किए हैं.
संजय राउत और जांच एजेंसी का खेल
उद्धव ठाकरे गुट के शिवसेना नेता और राज्यसभा सासंद संजय राउत का केस भी एकदम अलग है. बीजेपी और शिवसेना 20 साल से ज्यादा एक साथ रहे. लेकिन 2019 में मुख्यमंत्री पद को लेकर दोनों के राह अलग हो गए. लेकिन इस दूरी के साथ ही संजय राउत की परेशानी बढ़ने लगी. ये परेशानी तब और बढ़ गई जब एकनाथ शिंदे उद्धव ठाकरे से बगावत कर शिवसेना को दो भाग में बांटने पर लगे थे, तब ही ईडी ने कथित मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में सांसद संजय राउत को नोटिस भेजा था.
तब संजय राउत ने कहा था कि उन्हें महाराष्ट्र की महाअघाड़ी सरकार (शिवसेना, कांग्रेस, एनसीपी गठबंधन) को छोड़कर बीजेपी में शामिल होने के लिए कहा गया था. राउत ने बताया था, “ जिस दिन मैंने इससे इनकार किया ED के छापे मेरे दोस्तों और रिश्तेदारों पर पड़ने लगे”.
शिंदे सरकार बनने के बाद संजय राउत क्यों गए जेल?
यही नहीं महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे और बीजेपी की सरकार बनने के एक महीने बाद पात्रा चॉल भूमि घोटाला मामले में संजय राउत को प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने एक अगस्त 2022 को कई घंटे की पूछताछ के बाद गिरफ्तार कर लिया था. ED ने PMLA के तहत आधी रात यानी 12 बजे संजय की गिरफ्तारी दिखाई थी. करीब तीन महीने बाद संजय राउत जेल से बाहर आए थे.
बता दें कि जिस मामले में संजय राउत जेल गए थे वो साल 2007 में, HDIL (हाउसिंग डेवलपमेंट एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड) की एक सहायक कंपनी गुरुआशीष कंस्ट्रक्शन को म्हाडा (महाराष्ट्र हाउसिंग एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी) द्वारा पात्रा चॉल के पुनर्विकास के लिए एक अनुबंध से जुड़ा था. साल 2018 में इस मामले में महाराष्ट्र हाउसिंग एंड डेवलपमेंट अथॉरिटी ने एफआईआर दर्ज किया था.
ऐसे में बीजेपी से रिश्ते खराब होने के बाद संजय राउत पर एक्शन सवालों के घेरे में है. क्यों ये सारी कार्रवाई मोदी सरकार से दूरी बनने के बाद होती है?
अमित शाह पर मानहानि का केस और फिर अभिषेक बनर्जी को CBI का नोटिस
अप्रैल 2021 में पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव होने वाला था उससे पहले फरवरी में सीबीआई की टीम ने ममता बनर्जी के भतीजे और टीएमसी नेता अभिषेक बनर्जी के घर नोटिस देने पहुंच गई. सीबीआई की टीम ने अभिषेक बनर्जी (Abhishek Banerjee) की पत्नी के खिलाफ कोयला तस्करी से जुड़े एक केस में समन जारी किया था.
दिलचस्प बात ये थी कि सीबीआई का यह समन ऐसे समय आया था जब अभिषेक बनर्जी ने केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के खिलाफ मानहानि का केस किया था और अभिषेक की अपील पर स्पेशल एमपी/एमएलए कोर्ट ने अमित शाह को 22 फरवरी को पेश होने को कहा था.
यही नहीं 29 अगस्त को अभिशेक बनर्जी ने अमित शाह के बेटे और बीसीसीआई सेक्रेटरी जय शाह को लेकर एक ट्वीट किया था. अभिषेक बनर्जी ने कहा था,
बीजेपी हर घर तिरंगा की बात करती है, लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री के बेटे दुबई में भारत-पाकिस्तान के क्रिकेट मैच के दौरान तिरंगा लेने से इनकार करते हैं.
वहीं इस ट्वीट के एक दिन बाद खबर आई कि कोयला तस्करी मामले में अभिषेक बनर्जी को दो सितंबर 2022 को ईडी के सामने पेश होना है. इसके बाद ईडी के अधिकारियों ने करीब सात घंटे तक पूछताछ की थी. ईडी की पूछताछ के बाद अभिषेक बनर्जी ने कहा था,
‘‘यदि जरूरत पड़ी, तो मैं 30 बार पूछताछ का सामना करने के लिए तैयार हूं, लेकिन मैं बीजेपी के आगे सिर नहीं झुकाऊंगा. मैंने राष्ट्रध्वज के मामले पर उनके (शाह के) बेटे पर निशाना साधा, तो इसका मतलब यह नहीं है कि मुझे डराने के लिए ईडी और सीबीआई का इस्तेमाल किया जा सकता है.''
बता दें कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने सीबीआई (CBI) की साल 2020 की उस एफआईआर (FIR) के आधार पर मामला दर्ज किया था जिसमें आसनसोल और उसके आसपास के इलाकों में ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (Eastern Coalfield Limited) की खदानों से जुड़े करोड़ों रुपयों के कोयला घोटाले (Coal Scam) का आरोप लगाया गया है. ईडी ने इस मामले को धनशोधन रोकथाम कानून (Money Laundering Act) 2002 के प्रावधानों के तहत दर्ज किया था.
कांग्रेस के संकटमोचक डीके शिवकुमार एजेंसी के रडार पर
कर्नाटक कांग्रेस के अध्यक्ष डीके शिवकुमार सरकारी एजेंसियों के निशाने पर रहते हैं. बात है साल 2017 की. अगस्त का महीना था. गुजरात में राज्यसभा का चुनाव होना था. तब गुजरात कांग्रेस ने अपने विधायकों को हॉर्स ट्रेडिंग से बचाने के लिए बेंगलुरु के रिसॉर्ट में रखा था. इसी दौरान इनकम टैक्स डिपार्टमेंट ने कर्नाटक के तत्कालीन मंत्री डीके शिवकुमार से जुड़ी कई जगहों पर छापा मारा था.
तब इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के अफसरों की टीम उस ईगल्टन गोल्फ रिजॉर्ट पर भी पहुंची थी, जहां गुजरात कांग्रेस के 44 विधायक ठहरे हुए थ. हालांकि तब राज्यसभा में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि रिजॉर्ट पर छापा नहीं डाला गया था. आईटी डिपार्टमेंट के मुताबिक, सिर्फ शिवकुमार का रूम सर्च किया गया था, विधायकों के रूम सर्च नहीं किए गए थे. तब इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की इस कार्रवाई पर भी सवाल उठा था.
यही नहीं जुलाई 2019 में जब कर्नाटक में एचडी कुमारस्वामी की अगुवाई वाली कांग्रेस-जेडीएस सरकार गिर गई तब एक महीने बाद तीन सितंबर 2019 को प्रवर्तन निदेशालय ने धन शोधन के एक मामले में डीके शिवकुमार को गिरफ्तार किया था और उन्हें तिहाड़ जेल में रखा गया था. फिर दिल्ली हाई कोर्ट से जमानत मिलने के बाद उन्हें 23 अक्टूबर को रिहा किया गया था.
वहीं एक इंटरव्यू में डी के शिवकुमार ने कहा था कि उन्होंने भारतीय जनता पार्टी का समर्थन नहीं किया और वह उसके साथ नहीं गए, इसलिए उन्हें तिहाड़ जेल में बंद किया गया था.
हेमंत सोरेन- 'सत्ता में आने के एक दिन बाद से ही सरकार गिराने की हो रही कोशिश'
वैसे तो झारखंड के मुख्यमंत्री शुरू से ही बीजेपी पर उनकी सरकार को गिराने की कोशिश का आरोप लगाते रहे हैं. लेकिन कोविड की दूसरी लहर के दौरान झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने पीएम मोदी पर निशाना साधते हुए कहा था कि उन्हें ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पॉलिटिकल टीआरपी के लिए राज्यों के मुख्यमंत्रियों से फोन पर बात करते हैं.
दरअसल, उस दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को फोन किया और कोरोना संकट को लेकर चर्चा की थी. इसी पर सोरेन ने पीएम के कॉल को लेकर कहा था,
आज आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने फोन किया, उन्होंने सिर्फ अपने मन की बात की, बेहतर होता यदि वो काम की बात करते और काम की बात सुनते.
थोड़े ही दिनों बाद खदान की लीज लेने से जुड़े ऑफिस ऑफ प्रॉफिट का मामला उठा. हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता रद्द करने की मांग को लेकर बीजेपी राज्यपाल रमेश बैस के पास पहुंची थी. मतलब इस बार ईडी, सीबीआई नहीं बल्कि राज्यपाल ने कदम बढ़ाया.
मुख्यमंत्री के ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मामले में राज्यपाल ने केंद्रीय चुनाव आयोग से मंतव्य मांगा, जिस पर चुनाव आयोग ने नोटिस जारी कर बीजेपी और मुख्यमंत्री से जवाब मांगा था. चुनाव आयोग ने बीते साल 25 अगस्त को राजभवन को एक सीलबंद लिफाफे में अपना मंतव्य भेज दिया था लेकिन वो लिफाफा आजतक नहीं खुला.
इसके अलावा अवैध खनन मामले में हेमंत सोरेन जांच एजेंसियों के निशाने पर हैं. झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन को नंवबर 2022 में ईडी ने समन भेजा था. यही नहीं सीएम के करीबियों के यहां ईडी ने छापेमारी की, कई गिरफ्तारियां भी हुई हैं. इस दौरान हेमंत सोरेन ने कहा था कि ईडी का समन मत भेजिए, सीधे गिरफ्तार करके दिखाइये. उन्होंने कहा,
बीजेपी को लगता है कि जेल में डालकर डरा देंगे. हम इस साजिश का माकूल जवाब देंगे. जनता हमारे साथ है तो कोई भी लड़ाई लड़ने को तैयार हैं. उन्होंने बीजेपी पर हमला बोलते हुए कहा कि आज CBI और ED का इस्तेमाल हथियार के तौर पर किया जा रहा है. वे हमारी सरकार का बाल भी बांका नहीं कर सकते और पांच साल पूरा करेंगे.
अजित पवार- बीजेपी के साथ बने डिप्टी सीएम तो दाग धुल गए थे?
NCP चीफ शरद पवार के भतीजे और महाराष्ट्र के पूर्व डिप्टी सीएम अजित पवार के मामले में भी सरकारी एजेंसियां और बीजेपी पर शक की सूई मंडराती है. ऐसा इसलिए क्योंकि साल 2014 में सत्ता में आने के बाद बीजेपी नेता और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने 12 सिंचाई घोटाले की जांच के लिए भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) को अपनी सहमति दी थी.
यह कथित घोटाला 2012 में तब सामने आया जब जल संसाधन विभाग के तत्कालीन मुख्य अभियंता विजय पंधारे ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और राज्यपाल को सिंचाई परियोजनाओं में अनियमितताओं और लागत भिन्नता की ओर इशारा करते हुए पत्र लिखा था. तब ये आरोप लगाया गया था कि अजीत पवार, जो 1999 और 2009 के बीच जल संसाधन मंत्री थे, ने 2009 में 20,000 करोड़ रुपये की 38 परियोजनाओं को नियमों में बदलाव किया और विदर्भ सिंचाई विकास निगम (वीआईडीसी) की गवर्निंग काउंसिल से इजाजत नहीं ली थी.
लेकिन साल 2019 के नवंबर महीने की एक सुबह अचानक देवेंद्र फडणवीस ने मुख्यमंत्री और एनसीपी अजित पवार ने उप मुख्यमंत्री की शपथ ले ली. जिस अजित पवार को बीजेपी सींचाई परियोजना घोटाले के आरोप में घेरती रही उन्हीं के साथ सरकार बना बैठी. फिर खबर आई कि इसी दौरान अजित पवार के खिलाफ सिंचाई घोटाले के 9 मामलों को बंद कर दिया गया है. हालांकि एंटी कर्पशन ब्यूरो (एसीबी) ने सफाई दी है कि जिन मामलों को बंद किया गया है वो अजित पवार से जुड़े नहीं हैं.
उस वक्त भी सवाल उठा था कि अजित पवार पर पहले से ही कई मामलों में केस चल रहे हैं, फिर बीजेपी ने किस आधार पर उनके साथ मिलकर सरकार बनाने का फैसला किया था?
बता दें कि 2019 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों से पहले ED ने महाराष्ट्र राज्य सहकारी बैंक (MSCB) में कथित तौर पर 25,000 करोड़ रुपये के घोटाले के संबंध में एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार और अजीत पवार के खिलाफ मामला दर्ज किया था.
अब फडणवीस और पवार की सरकार तो नहीं चली लेकिन अजित पवार अलग-अलग केसों में जांच एजेंसी के निशाने पर हैं. इसे ऐसा समझा जा सकता है कि बीजेपी से रास्ते अलग होने के बाद जब अजित पवार दोबारा MVA सरकार में उपमुख्यमंत्री बने तब उनसे जुड़ी कई संपत्तियों को इनकम टैक्स विभाग ने जब्त करने के आदेश दिया था.
बीबीसी पर इनकम टैक्स का सर्वे और पीएम मोदी के खिलाफ डॉक्यूमेंट्री
नेताओं से अलग जांच एजेंसी के बेजा इस्तेमाल से जुड़े एक और आरोप को देखिए. 14 फरवरी को आयकर विभाग की टीम मीडिया हाउस बीबीसी के ऑफिस सर्वे का ऑर्डर लेकर पहुंची थी. तीन दिनों तक सर्वे चलता रहा. कई जानकारों ने सर्वे को गैरजरूरी बताया था. बीबीसी पर आईटी के सर्वे की टाइमिंग को लेकर सवाल उठाया.
दरअसल, बीबीसी ने 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' नाम से दो पार्ट में डॉक्यूमेंट्री बनाई थी. ये 2002 गुजरात दंगे और पीएम मोदी से जुड़ी थी. जिसपर केंद्र सरकार ने भारत में रोक लगा दी थी. इस डॉक्यूमेंट्री को देखने को लेकर देशभर के कई संस्थानों में हंगामा भी हुआ. और इसी बीच आईटी विभाग का सर्वे. तो सवाल उठना ही था.
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