सुनवाई गुरुवार तक के लिए स्थगित
सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा की याचिका पर बुधवार को जारी सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार तक के लिए स्थगित कर दिया है. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सरकार की तरफ से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि सरकार इस पूरे मामले पर लगातार निगरानी रखे हुए है. इससे पहले उन्होंने कहा था कि अालोक वर्मा को सिर्फ छुट्टी पर भेजा गया है, अभी भी वही सीबीआई डायरेक्टर हैं.
सुप्रीम कोर्ट में अटॉर्नी जनरल का बयान
सुप्रीम कोर्ट में केके वेणुगोपाल ने जवाब देते हुए कहा, अलोक वर्मा और राकेश अस्थाना के बीच का विवाद काफी तूल पकड़ रहा था और यह एक पब्लिक डिबेट का मुद्दा बन चुका था. भारत सरकार इस बात से हैरान थी कि सीबीआई के ये दो बड़े अधिकारी क्या कर रहे हैं. दोनों बिल्लियों की तरह झगड़ रहे थे.
सरकार के वकील की दलील
केन्द्र की ओर से अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने वर्मा और अन्य की इस दलील का विरोध किया कि सीबीआई के डायरेक्टर को अधिकारों से वंचित कर उन्हें छुट्टी पर भेजने के लिये सरकार को चयन समिति के पास जाना चाहिए था.
वेणुगोपाल ने पीठ से कहा कि वर्मा दिल्ली में ही उसी घर में रह रहे हैं और इसलिए यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि उनका तबादला हुआ है. अटॉर्नी जनरल ने कहा, ‘‘वर्मा अभी भी डायरेक्टर के पद पर हैं और उन्हें आज भी इस पद के सभी लाभ और विशेषाधिकार प्राप्त हैं. शीर्ष अदालत ने सीबीआई को वर्मा को उनके अधिकारों से वंचित करने के बाद किये गये सारे तबादलों का रिकार्ड रखने का निर्देश दिया है.
आलोक वर्मा के वकील की दलील
सरकार के फैसले को चुनौती देते हुये आलोक वर्मा की ओर से वरिष्ठ वकील फली नरीमन ने कहा कि उनकी नियुक्ति एक फरवरी, 2017 को हुयी थी और ‘‘कानून के अनुसार दो साल का निश्चित कार्यकाल होगा. ऐसे में वर्मा का तबादला तक नहीं किया जा सकता.''
उन्होंने कहा कि केन्द्रीय सतर्कता आयोग के पास आलोक वर्मा को छुट्टी पर भेजने की सिफारिश करने का आदेश देने का कोई आधार नहीं था.
नरीमन ने कहा, ‘‘विनीत नारायण फैसले की सख्ती से व्याख्या करनी होगी. यह तबादला नहीं है और वर्मा को उनके अधिकारों तथा कर्तव्यों से वंचित किया गया है.''
सुप्रीम कोर्ट ने देश में उच्च स्तरीय लोक सेवकों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच से संबंधित मामले में 1997 में यह फैसला सुनाया था. यह फैसला आने से पहले सीबीआई के डायरेक्टर का कार्यकाल निर्धारित नहीं था और उन्हें सरकार किसी भी तरह से पद से हटा सकती थी. लेकिन विनीत नारायण प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने जांच एजेन्सी के डायरेक्टर का न्यूनतम कार्यकाल दो साल निर्धारित किया ताकि वह स्वतंत्र रूप से काम कर सकें.
नरीमन ने सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति और पद से हटाने की सेवा शर्तों और दिल्ली विशेष पुलिस प्रतिष्ठान कानून 1946 के संबंधित प्रावधानों का जिक्र किया.
29 नवंबर को हुई पिछली सुनवाई के दौरान क्या हुआ?
सुप्रीम कोर्ट ने 29 नवंबर को हुई पिछली सुनवाई के दौरान कहा कि वह पहले इस बात पर गौर करेगी कि क्या सरकार के पास किसी भी परिस्थिति में सीबीआई डायरेक्टर से उसके दायित्व वापस लेने का अधिकार है? या फिर क्या आलोक वर्मा के खिलाफ ऐसा कोई भी कदम उठाते समय प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली चयन समिति से संपर्क किया जाना चाहिए था?
CBI डायरेक्टर आलोक वर्मा को उनके दायित्वों से वंचित कर छुट्टी पर भेज दिया गया है. कोर्ट ने यह रुख अपनाने से पहले स्पष्ट किया कि वह वर्मा और सीबीआई में वरिष्ठता क्रम में दूसरे नंबर के अधिकारी स्पेशल डायरेक्टर आर. के. अस्थाना के बीच चल रहे आरोपों-प्रत्यारोपों पर गौर नहीं करेगी.
वर्मा का दो साल का कार्यकाल अगले साल 31 जनवरी को पूरा हो रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वर्मा के खिलाफ केन्द्रीय सतर्कता आयोग के जांच निष्कर्षों पर सीबीआई डायरेक्टर के बंद लिफाफे में अदालत को सौंपे गये जवाब का उसने न्यायिक संज्ञान नहीं लिया है.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस केएम जोसफ की पीठ ने कहा कि केन्द्र के अधिकारों के मुद्दे पर सुनवाई पांच दिसंबर को जारी रहेगी. उसने सीवीसी जांच की रिपोर्ट पर सुनवाई को बाद के लिए टाल दिया. रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्मा के खिलाफ कुछ आरोपों पर और जांच किए जाने की जरूरत है.