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भारी बस्‍तों और होमवर्क से छोटे बच्चों को मिल गई आजादी!

बस्तों का वजन बच्चे के वजन का ज्यादा से ज्यादा 10 फीसदी होना चाहिए.

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सीबीएसई ने अपने सभी स्कूलों को बच्चों के भारी बस्तों का बोझ हल्का करने के आदेश जारी कर दिए है. साथ ही बोर्ड ने स्कूलों को आदेश दिया है कि क्लास फर्स्ट और सेकेंड के बच्चों को होमवर्क न दिया जाए.

सीबीएसई के सर्कुलर में लिखा है कि बच्चों की रीढ़ की हड्डी के विकास का यही महत्वपूर्ण समय होता है. अगर ये बच्चे इस उम्र में कंधों पर भारी वजन झेलेंगे, तो पीठ दर्द, मांसपेशियों में दर्द, कंधे में दर्द, थकान और रीढ़ की हड्डी में दर्द जैसी भयानक बीमारी के शिकार हो सकते हैं.

ज्‍यादा किताब लाने की जरूरत नहीं

बोर्ड ने सुझाव दिया है कि क्लास 1 से लेकर 8 तक के बच्चों की किताबों का वजन हल्का होना चाहिए. स्कूलों को ऐसी किताबें कोर्स में नहीं रखना चाहिए, जो ज्यादा डिजाइनदार, मोटी या महंगी हों.

स्कूल प्रशासन अब बच्चों के बस्तों के उचित वजन की जांच कभी भी कर सकता है. कानून के मुताबिक, बस्तों का वजन बच्चे के वजन का ज्यादा से ज्यादा 10 फीसदी होना चाहिए.

बच्चों को अपने बस्ते रोजाना पैक करने के लिए उत्साहित रहना चाहिए और जिन किताब, कॉपी या प्रोजेक्ट की जरूरत न हो, उन्हें नहीं ले जाना चाहिए.

कई स्कूलों में बच्चों की जरूरी किताबें स्कूल में ही छोड़ दिए जाने की सुविधा है, उन्हें घर ले जाने की जरूरत नहीं पड़ती है. लेकिन अभिभावकों की भी यह जिम्मेदारी है कि वह बच्चों के बस्ते रोजाना चेक करें और उपयोग में न आने वाली चीजों को बस्ते से निकाल दें.
एटी मिश्रा, प्रिंसिपल, केन्द्रीय विद्यालय-1

बोर्ड ने शिक्षकों को सुझाव दिया है कि सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के आधार पर कुछ ऐसे तरीकों का इस्तेमाल करना चाहिए कि किताबों का कम से कम उपयोग हो और बच्चों की भी किताबों पर निर्भरता कम हो जाए.

इसके अलावा स्कूलों में अगर शुद्ध पीने का पानी भी उपलब्ध कराया जाए, तो बच्चों को अलग से पानी पीने की बोतल साथ ले जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

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