नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और NRC पर मचे घमासान के बीच केंद्र सरकार राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (NPR) को एक बार फिर से धरातल पर उतारने में जुटी है. अगले हफ्ते होने वाली कैबिनेट की बैठक में एनपीआर के नवीनीकरण को हरी झंडी मिलने की संभावना है. बता दें कि पश्चिम बंगाल और केरल सरकार ने एनपीआर का भी विरोध किया है. हालांकि यह NRC से पूरी तरह अलग है.
नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) के तहत 1 अप्रैल, 2020 से 30 सितंबर, 2020 तक नागरिकों का डेटाबेस तैयार करने के लिए देशभर में घर-घर जाकर जनगणना की तैयारी है.
NPR का मुख्य लक्ष्य
एनपीआर का पूरा नाम नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर है. देश के सामान्य निवासियों की व्यापक पहचान का डेटाबेस बनाना इसका मुख्य लक्ष्य है. इस डेटा में जनसांख्यिकी के साथ बायोमैट्रिक जानकारी भी होगी.
2010 में शुरू हुई थी पहल
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार में 2010 में एनपीआर बनाने की पहल शुरू हुई थी. तब 2011 में जनगणना के पहले इस पर काम शुरू हुआ था. अब फिर 2021 में जनगणना होनी है. ऐसे में एनपीआर पर भी काम शुरू हो रहा है. एनपीआर और एनआरसी में अंतर है.
NPR में रजिस्ट्रेशन आवश्यक
एनआरसी के पीछे जहां देश में अवैध नागरिकों की पहचान का मकसद छिपा है, वहीं इसमें छह महीने या उससे अधिक समय से स्थानीय क्षेत्र में रहने वाले किसी भी निवासी को एनपीआर में आवश्यक रूप से रजिस्ट्रेशन करना होता है.
बाहरी व्यक्ति भी अगर देश के किसी हिस्से में छह महीने से रह रहा है तो उसे भी एनपीआर में दर्ज होना है. एनपीआर के जरिए लोगों का बायोमेट्रिक डेटा तैयार कर सरकारी योजनाओं की पहुंच असली लाभार्थियों तक पहुंचाने का भी मकसद है.
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