आंध्र प्रदेश के पूर्व सीएम चंद्रबाबू नायडू (Chandrababu Naidu) को बड़ी राहत मिली है. आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने कौशल विकास मामले में पूर्व सीएम एन चंद्रबाबू नायडू को नियमित जमानत दे दी. नायडू 28 नवंबर तक अंतरिम जमानत पर हैं.
आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने पूर्व सीएम एन चंद्रबाबू नायडू को 29 नवंबर से सार्वजनिक रैलियां और बैठकें आयोजित करने या उनमें भाग लेने की अनुमति दी है.
बता दें कि 31 अक्टूबर को हाईकोर्ट ने आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री को मेडिकल आधार पर चार सप्ताह की अंतरिम जमानत दी थी. नायडू को अब 28 नवंबर को जेल नहीं लौटना होगा, जैसा कि पहले आदेश दिया गया था.
क्या है कौशल या स्किल डेवलपमेट घोटाला मामला?
आंध्र प्रदेश स्टेट स्किल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन का गठन आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद किया गया था.
ये एक पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप था और इसका उद्देश्य राज्य के युवाओं को कौशल देना और प्रशिक्षित करना था और युवाओं को रोजगार उपलब्ध करवाना भी इसका मकसद था.
इसके लिए कौशल विकास निगम ने टेक्नोलॉजी कंपनियों के साथ समझौते किए थे. इनमें सीमेंस और डिजाइन टेक सिस्टम्स जैसी कंपनियां भी शामिल थीं.
इसमें आंध्र प्रदेश सरकार ने कहा था कि लागत का दस प्रतिशत हिस्सा सरकार देगी और बाकी 90 प्रतिशत सीमेंस कंपनी अनुदान के रूप में देगी.
आंध्र प्रदेश सरकार ने स्किल डेवलपमेंट एक्सीलेंस सेंटरों की स्थापना के लिए सीमेंस और डिजाइन टेक के साथ 3356 करोड़ रुपये के समझौते किए थे. समझौते के मुताबिक टेक कंपनियों को इस प्रेजेक्ट में 90 फीसदी हिस्सेदारी वहन करनी थी, लेकिन ये बात आगे नहीं बढ़ी.
इस समझौते के तहत स्किल डेवलपमेंट के लिए छह क्लस्टर बनने थे और प्रत्येक क्लस्टर पर 560 करोड़ रुपये खर्च होने थे.
तत्कालीन चंद्रबाबू नायडू सरकार ने घोषणा की थी कि वह अपने हिस्से की दस प्रतिशत जिम्मेदारी यानी 371 करोड़ रुपये का भुगतान करेगी.
आंध्र प्रदेश सरकार ने अपने हिस्से का भुगतान कर दिया था. आंध्र प्रदेश में सीआईडी ने कौशल विकास के लिए जारी फंड के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए सबसे पहले दिसंबर 2021 में मामला दर्ज किया था.
CID ने आरोप लगाया था कि सीमेंस ने प्रोजेक्ट की लागत को कृत्रिम रूप से बढ़ा-चढ़ाकर 3300 करोड़ रुपये कर दिया था. इस आरोप में सीमेंस से जुड़े जीवीएस भास्कर पर मुकदमा भी दर्ज हुआ था.
आंध्र प्रदेश सरकार ने सीमेंस इंडस्ट्रियल सॉफ्टवेयल प्राइवेट लिमिटेड को 371 करोड़ रुपये का भुगतान किया था.
सीआईडी का आरोप था कि इस सॉफ्टवेयर की वास्तविक कीमत सिर्फ 58 करोड़ रुपये थी.
CID ने इस समझौते में कौशल विकास निगम की तरफ से मुख्य भूमिका निभाने वाले गंता सुब्बाराव और लक्ष्मीनारायण समेत कुल 26 लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था. बाद में इनमें से दस लोगों को गिरफ्तार भी कर लिया गया था. फिर इसी मामले में चंद्रबाबू नायडू की गिरफ्तारी हुई थी.
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