छत्तीसगढ़ (Chattisgargh) के रायपुर में कांग्रेस के कुछ नेताओं और कुछ अधिकारियों के यहां ईडी ने सोमवार 20 फरवरी 2023 को छापेमारी की. ये छापेमारी छत्तीसगढ़ में होने वाले कांग्रेस के अधिवेशन से कुछ दिन पहले हई है. राज्य में कोयले के ट्रांसपोर्ट पर "अवैध लेवी" के संबंध में केंद्रीय एजेंसी मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में तलाशी किया था.
क्या है कोयला लेवी घोटाला और मनी लॉन्ड्रिंग का पूरा मामला?
ईडी का आरोप है कि प्रमुख राजनेताओं और नौकरशाहों की मिलीभगत से कुछ बिचौलियों द्वारा कोयला खपत करने वाली कंपनियों से राज्य में 25 रुपये प्रति टन कोयले की अवैध वसूली की जा रही थी. एजेंसी ने आरोप लगाया है कि पिछले कुछ सालों में इस तरह से 540 करोड़ रुपये से अधिक एकत्र किए गए, जिसका कुछ हिस्सा कांग्रेस नेताओं के खाते में जा रहा है.
एजेंसी ने आयकर विभाग की एक प्राथमिकी के आधार पर पिछले साल अक्टूबर में मामले की जांच शुरू की थी. इसके बाद से इसने कई तलाशी अभियान चलाए, नौ लोगों को गिरफ्तार किया और 170 करोड़ रुपये की संपत्ति कुर्क की.
क्यों अहम है ये मामला?
ये मामला इसलिए और ज्यादा सुर्खियों में है, क्योंकि जांच राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के दरवाजे तक पहुंच गई है, जब पिछले साल दिसंबर में एजेंसी ने उनकी उप सचिव सौम्या चौरसिया (deputy secretary Saumya Chaurasia) को गिरफ्तार कर लिया था. कहा जाता है कि राज्य सेवा की अधिकारी चौरसिया का बघेल के कार्यालय में काफी दबदबा था.
अपनी जांच के दौरान, ईडी ने न केवल राज्य के शीर्ष नौकरशाहों के यहां छापेमारी की, बल्कि कुछ को गिरफ्तार भी किया है और चार्जशीट भी दायर किया है.
चौरसिया के अलावा, एजेंसी ने 2004 बैच के आईएएस अधिकारी पी अंबलगन के परिसरों पर भी छापा मारा है, जो वर्तमान में जल संसाधन विभाग, पर्यटन और संस्कृति के सचिव हैं; और आईएएस अधिकारी समीर विश्नोई को गिरफ्तार कर लिया है. एजेंसी ने पिछले साल अक्टूबर में रायगढ़ कलेक्टर रानू साहू के घर पर भी छापा मारा और घोषणा की कि वह "लापता" हैं.
इस महीने की शुरुआत में एजेंसी ने अभियोजन पक्ष की शिकायत जोकि ED द्वारा दायर की गई चार्जशीट के बराबर है, उसमें भी तीन आईपीएस अधिकारियों का नाम लिया गया है.
अब तक जांच में क्या मिला है?
एजेंसी ने पिछले साल एक लक्ष्मीकांत तिवारी, इंद्रमणि ग्रुप के व्यवसायी सुनील कुमार अग्रवाल और आईएएस अधिकारी विश्नोई को गिरफ्तार करते हुए दावा किया था कि कोयला घोटाले से जुड़े लोग हर दिन दो से तीन करोड़ रुपए की कमाई अवैध तरीके से कर रहे थे.
ईडी ने तब एक बयान में कहा था,
“श्री सूर्यकांत तिवारी के नेतृत्व में कार्टेल ने बहुत वरिष्ठ अधिकारियों की सहायता से जबरन वसूली का एक नेटवर्क बनाया, जिसके द्वारा कोयले के प्रत्येक खरीदार/ट्रांसपोर्टर को डीएम के कार्यालय से एनओसी प्राप्त करने से पहले 25 रुपये प्रति टन का भुगतान करना पड़ता था. उन्होंने ऐसे आदमियों को रखा जो पैसा इकट्ठा करते और ले जाते और किंगपिन, कार्यकर्ताओं, वरिष्ठ आईएएस-आईपीएस अधिकारियों और राजनेताओं के बीच शेयर करते. अनुमान है कि हर दिन लगभग 2-3 करोड़ रुपये वसूले गए थे.“
पी अंबलगन पर, ईडी ने दावा किया कि खनन सचिव के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान कोयला ट्रांसपोर्ट के सिस्टम को ऑनलाइन से मैन्युअल में बदल दिया गया था, जिससे अवैध लेवी वसूल की जा सके.
लेवी कैसे वसूल की गई?
ईडी के मुताबिक, 15 जुलाई, 2020 को राज्य के भूविज्ञान और खनन विभाग ने छत्तीसगढ़ की खदानों से कोयले के ट्रांसपोर्ट के लिए ई-परमिट की ऑनलाइन प्रक्रिया को संशोधित किया, जिससे एक मैनुअल नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (एनओसी) जारी करना आवश्यक हो गया. ईडी ने दावा किया है कि इस संबंध में कोई एसओपी या प्रक्रिया प्रसारित नहीं की गई थी.
एक माइनिंग यानी खनन कंपनी खरीदार के पक्ष में एक कोयला वितरण आदेश (सीडीओ) जारी करती है, जिसे तब कंपनी के पास 500 रुपये प्रति मीट्रिक टन की ईएमडी (बयाना राशि जमा) जमा करनी होती है और 45 दिनों के भीतर कोयले को उठाना होता है.
नए नोटिफिकेशन ने कथित तौर पर खनन कंपनियों को ट्रांसपोर्ट परमिट जारी करने के लिए एनओसी के लिए सरकार के पास आवेदन करने के लिए मजबूर किया. एनओसी के बिना परमिट जारी नहीं किया जाएगा और कोयला वितरण आदेश (सीडीओ) एग्जीक्यूटेड नहीं किया जाएगा. ईडी ने दावा किया कि 45 दिनों के बाद, सीडीओ समाप्त हो जाएगा, खरीदार (आमतौर पर स्टील प्लांट, या बिजली संयंत्र के मालिक) की ईएमडी जब्त कर ली जाएगी और उनकी कोयले की आपूर्ति बाधित हो जाएगी.
ED ने अपने बयान में कहा,
“ईडी के सर्वेक्षण से पता चला कि कोई सही डॉक्यूमेंटेशन प्रोसेस नहीं थी. कई जगह हस्ताक्षर गायब थे. नोट शीट गायब हैं. कलेक्टर/डीएमओ की मनमर्जी पर नाममात्र की जांच कराई जाती है और एनओसी जारी की जाती है. बिना किसी एसओपी के 15.7.22 से 30,000 से अधिक एनओसी जारी किए गए हैं. इनवार्ड और आउटवार्ड रेजिस्टर को सही से मेनटेन नहीं किया गया था. अधिकारियों की भूमिका पर कोई स्पष्टता नहीं है. ट्रांसपोर्टर का नाम, कंपनी का नाम आदि जैसे कई विवरण खाली छोड़े गए हैं.
अपनी अभियोजन शिकायत में, ईडी ने दावा किया कि अवैध कोयला लेवी के जरिए से अर्जित 540 करोड़ रुपये में से 277 करोड़ रुपये राजनेताओं और नौकरशाहों के खजाने में गए या बेनामी संपत्ति की खरीद पर खर्च किए गए. संपत्ति की खरीद पर कथित रूप से 170 करोड़ रुपये खर्च किए गए, 36 करोड़ रुपये सीधे चौरसिया को हस्तांतरित किए गए, 52 करोड़ रुपये राज्य में सत्तारूढ़ दल के एक वरिष्ठ राजनेता को दिए गए, 4 करोड़ रुपये छत्तीसगढ़ के विधायकों को दिए गए, करोड़ रुपये पूर्व विधायकों या अन्य राजनेताओं को, जबकि 5 करोड़ रुपये झारखंड और 4 करोड़ रुपये बेंगलुरु भेजे गए.
(हैलो दोस्तों! हमारे Telegram चैनल से जुड़े रहिए यहां)