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छोटा राजन की गिरफ्तारी नहीं है बहुत बड़ी सफलता

छोटा राजन की गिरफ्तारी बड़ी बात नहीं है लेकिन जरूरी है कि उसे उसके किए की सजा दी जाए. पढ़ें आर के राघवन के विचार

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इंडोनेशिया की राजधानी बाली में छोटा राजन की गिरफ्तारी के बाद शुरू हुआ खुशी मनाए जाने का सिलसिला अब ठंडा पड़ चुका है. देखा जाए तो छोटा राजन की गिरफ्तारी किसी तरह से आश्चर्यजनक नहीं थी.

वह सिर्फ एक आम अपराधी है. उसकी गिरफ्तारी को इतनी बड़ी बात इसलिए बनाया गया क्योंकि लोग समझते थे कि वह दाउद इब्राहिम को पकड़वाने में भारत की मदद कर सकता है. दाउद 1993 के मुंबई धमाकों का मुख्य अपराधी है और फिलहाल पाकिस्तान में रह रहा है. हालांकि, इस मिथक को भी कुछ समय पहले ही खारिज कर दिया गया था.

इंडोनेशिया की पुलिस ने 30 अक्टूबर को छोटा राजन को आस्ट्रेलिया से इंडोनेशिया आते वक्त गिरफ्तार कर लिया था. इसके बाद राष्ट्रीय मीडिया ने भी इस मुद्दे को अच्छी तरह कवर किया.

अब किसी काम का नहीं राजन

छोटा राजन उन सभी एजेंसियों के लिए अपनी उपयोगिता खो चुका है जिन्होंने दाउद को भारत वापस लाने की कसम खाई थी. यह सच है कि दाउद और राजन एक-दूसरे के जानी दुश्मन थे. हमनें पहले सोचा था कि दाउद को पकड़ने के लिए हम राजन की दुश्मनी का इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन अब राजन हमारे लिए किसी काम का नहीं रह गया है.

मुझे नहीं पता कि शुरुआत में जब राजन बैंकॉक में (जहां दाउद ने उसे मरवाने की कोशिश की थी) और बाद में ऑस्ट्रेलिया में था तो उसने दाउद के संबंध में कितनी जानकारी जुटाई. यह भी संभव है कि उसने बड़े-बड़े दावे करके सरकार में शामिल अपने किसी मित्र को भ्रमित किया हो.

अंडरवर्ल्ड में जो चालाक लोग होते हैं वे अपने बारे में तमाम झूठी कहानियां प्रचारित करते रहते हैं. मुझे मुंबई के ऐसे तमाम डॉन याद हैं, जिनमें वरदराजन मुदलियार भी शामिल है. उसके ऊपर तो कुछ साल पहले एक तमिल फिल्म भी बनी थी. राजन भी उन्हीं डॉनों में से एक है जिन्हें मीडिया ने बनाया है.

उसके खिलाफ मुंबई में 70 से भी ज्यादा मामले दर्ज हैं. इनमें से ज्यादातर हत्या और जबरन वसूली के हैं. इस तरह वह कानून से भागा हुआ अपराधी है. ऐसे मेें उसे सिर्फ इसलिए देशभक्त नहीं मान लेना चाहिए क्योंकि वह अपने से कहीं ज्यादा खतरनाक अपराधी दाउद इब्राहिम के खून का प्यासा है.

मेरे ख्याल से देशभक्ति और अपराध साथ-साथ नहीं चल सकते. इसीलिए मैंने उसके खिलाफ किसी भी तरह की दया न दिखाने की अपील की है. उसके साथ ऐसे किसी भी अन्य अपराधी की तरह बर्ताव किया जाना चाहिए जिसकी करतूतों की वजह से एक आम आदमी के मन में खौफ पैदा होता है. कानून को उसके खिलाफ अपना काम करना ही होगा तभी उसके जुर्म से पीड़ित हुए लोगों को इंसाफ मिलेगा.

सीबीआई को है जांच का अधिकार

राजन के खिलाफ दायर किए गए सभी मामले सीबीआई को ट्रांसफर किए जा चुके हैं. इस फैसले पर कुछ लोगों ने सवाल भी उठाए थे, क्योंकि कई लोगों का यह भी मानना है कि भारत में छोटा राजन के ऐसे कई दोस्त हैं, जो उसके साथ नर्मी से पेश आ सकते हैं.

यहां यह ध्यान देने वाली बात है कि सीबीआई ने खुद राजन के खिलाफ ऑस्ट्रेलिया में घुसने के लिए जाली पासपोर्ट इस्तेमाल करने का मामला दर्ज किया है. इस तरह से सीबीआई को राजन की जांच के लिए सीधा अधिकार मिल जाता है. सीबीआई को उन लोगों का भी ध्यान रखना पड़ा है जो राजन की जमानत की कोशिश कर रहे हैं.

इसके अलावा राजन के खिलाफ चल रहे मामले भी दो दशक से भी ज्यादा पुराने हैं, जिसकी वजह से सबूतों को जुटाने में काफी दिक्कत का सामना करना पड़ सकता है. हालांकि, अच्छी बात ये है कि पीड़ित व्यक्ति और परिवार राजन के खिलाफ अब ज्यादा खुलकर अपनी बात रख सकते हैं, क्योंकि देश से इतने साल बाहर रहने के बाद अब अंडरवर्ल्ड में राजन का कोई संरक्षक भी नहीं बचा है.

मैं समझ सकता हूं कि मुंबई पुलिस इस बात से व्यथित है कि उसके द्वारा दर्ज किए गए मामले उससे छीन लिए गए. यह एक वाजिब शिकायत है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. अब यह एक आंतरिक बहस का रूप ले चुकी है कि कौन बेहतर है: देश की पुलिस या राज्य की पुलिस?

जांच पूरी होने में लगेगा लंबा वक्त

हम सबको मालूम है कि कैसे अमेरिका में एफबीआई अक्सर छोटे पुलिस डिपार्टमेंट्स पर अपना रौब झाड़ती रहती है. जब भी अदालत के किसी आदेश का पालन करते हुए सीबीआई ने किसी राज्य के मुख्यमंत्री की इच्छा के बिना किसी केस की जांच का काम अपने हाथ में लिया है, मुख्यमंत्रियों ने अपनी नाराजगी दिखाई है. वे कहते रहे हैं कि सीबीआई ऑफिसर कहीं आसमान से टपके हुए कोई ऐसे शूरमा नहीं हैं जिन्हें राज्य की पुलिस के ऊपर वरीयता दी जाए.

इन सब बातों के बावजूद एक चीज है जो सीबीआई के पक्ष में जाती है. सीबाआई स्थानीय अपराधियों और गैंगों के प्रभाव में नहीं आती है. इसीलिए दिल्ली पुलिस का महाराष्ट्र सरकार की सहमति के बाद राजन के सभी मामलों को सीबीआई को ट्रांसफर करने का फैसला कोई अपवाद नहीं है.

लेकिन फिर भी मैं यह नहीं मानता कि निकट भविष्य में यह जांच सफल हो पाएगी. इसका मतलब यह है कि राजन एक लंबे समय तक ‘कानून का मेहमान’ रहेगा. उसके इस डर को देखते हुए कि दाउद के आदमी उसे मार डालेंगे, राजन के लिए यह अच्छा ही है. क्या आपको खुशी नहीं हुई?

(लेखक सीबीआई के डायरेक्टर रह चुके हैं)

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