ADVERTISEMENTREMOVE AD

शाहीनबाग प्रदर्शन के 50 दिन, क्या डरे हुए हैं यहां मौजूद बच्चे? 

8 साल का सोहेल, अब चोर सिपाही का खेल नहीं खेलता है, क्योंकि अब उसे डर लगता है

Published
story-hero-img
i
छोटा
मध्यम
बड़ा

8 साल का सोहेल, अब चोर सिपाही का खेल नहीं खेलता है, क्योंकि अब उसे डर लगता है पुलिस से, वो रातों को घबराकर उठ जाता है, चिल्लाने लगता है ...मम्मा गेट बंद करो पुलिस अंदर आ जायेगी.

मगर ये सिर्फ सोहेल की कहानी नहीं है, सोहेल जैसे कई और बच्चे हैं, जो पिछले 50 दिन से शाहीन बाग में CAA और NRC के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन में शामिल होते है. वे यहां अपने माता-पिता अपने दोस्त या परिवारवालों के साथ आते है.

ADVERTISEMENTREMOVE AD

ज्यादातर बच्चे डरे हुए है

आजादी के नारों और उत्साह के बीच एक चीज है जो सामान्य है और वो कि बच्चे डरे हुए हैं. प्रदर्शन में शामिल जिन बच्चों के माता पिता से क्विंट ने बात की उनमें से ज्यादातर लोगों ने कहा कि उनके बच्चे डरे हुए हैं.

प्रोटेस्ट साइट पर कॉलेज स्टूडेंट का एक ग्रुप है, जो इन बच्चों को पेंटिंग और ड्राइंग की मदद से इन्हें उस भीड़ से बाहर निकलने का काम कर रहे हैं.

12 साल का फरहान रोज यहां आता है, वो ड्राइंग बनाता है, जब हमने उनसे पूछा की उन्हें इस प्रोटेस्ट में आना कैसा लगता है, तब फरहान ने बताया कि,

“यहां आना मुझे अच्छा लगता है, मेरे सपने में भी मैं यहां आकर ड्राइंग बनाता हूं और स्टेज पर जा कर नारे भी लगता हूं “

आजादी के नारे, बस एक खेल जैसा

वसुंधरा गौतम बताती हैं-’’बच्चों को आजादी के नारे लगाना पसंद है, मुझे याद है कि जब कन्हैया कुमार यहां आये थे, तब उन्होंने आजादी के नारे लगाए थे, तब से ये काफी फेमस हो गया, ज्यादातर बच्चों को इसका मतलब नही पता, उनके लिए ये बस एक खेल है’’

9 साल की कोमल , जन्म से ही बोल और सुन नहीं सकती. मगर शाहीन बाग के इस आंदोलन ने उनके जीवन को बदल कर रख दिया .

कॉलेज स्टूडेंट ओसामा कहते हैं- “पहले जब कोमल हमारे पास आई को काफी घबराई हुई थी वो किसी को जानती नहीं थी, वो बोल नहीं सकती थी, तो उसे समझना भी मुश्किल था, मगर फिर हमने उसे ड्राइंग शीट दी और इशारों से कहा कुछ बनाओ’’

उन्होंने आगे बताया, कोमल एक अलग तरह की पेंटिंग बनाती है, एक बंद मुट्ठी जो कि एकजुटता और संघर्ष को दर्शाता है. ये हमारे लिए हैरान कर देने वाली बात थी कि आखिर इसके दिमाग में कैसे आया की इसे कुछ ऐसा बनाना है.

दूसरे बच्चों की तरह 7 साल का रूमान भी अपनी मां के साथ इस प्रोटेस्ट में रोज आता है, रूमान की मां ने कहा,

“बच्चों को अब डर लगने लगा है, अगर कहीं भी शोर होता है, तो वो अचानक से डर जाते है. उन्हें हमारे साथ यहां आना अच्छा लगता है, लेकिन रात में वो अकेले दूसरे कमरे में जाने से भी डरते है, जबकि पहले ऐसा नही था.”
ADVERTISEMENTREMOVE AD

बच्चों को काउंसलिंग की सख्त जरूरत: NCPCR

हाल ही में शाहीनबाग के कुछ वीडियो वायरल हो गए थे, जिसमें कुछ बच्चे CAA और NRC का विरोध करते दिखे थे.

वायरल वीडियो के हवाले से नेशनल कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट(NCPCR) ने डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट, साउथ ईस्ट दिल्ली को एक लेटर लिखा है. जिसमें इस बात पर जोर दिया गया कि शाहीनबाग के बच्चों को काउंसलिंग की सख्त जरूरत है.

“हमने DM, साउथ ईस्ट दिल्ली को इस बारे में लिखा है कि, “बच्चों की पहचान की जानी चाहिए और उन्हें जरूरी काउसलिंग दी जानी चाहिए. जिस प्रकार के वो नारे लगा रहे है, वो बिल्कुल सही नही है उन्हें गलत जानकारी दी गयी है, अगर हो सके तो बच्चों के साथ साथ उनके माता पिता के लिए भी काउंसलिंगग सेशन शुरू किया जाना चाहिए.”
प्रियंक कनूनगो , चेयरपर्सन, NCPCR.
ADVERTISEMENTREMOVE AD

बच्चों पर इसका जो असर है उसका दायरा बड़ा है : एक्सपर्ट

हालांकि जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी की साइकोलॉजी डिपार्टमेंट की प्रोफेसर सीमा अलीम इसका व्यापक असर देखती है, प्रोफेसर सीमा बताती है कि, “ ये केवल शाहीनबाग या जामिया की बात नहीं है. बच्चों के दिमाग पर इसका जो असर है उसका दायरा काफी बड़ा है. एक लंबे समय से बच्चे प्रोटेस्ट, पुलिस की करवाई या हिंसा के बारे में देख या सुन रहे रहे है. इनसब का असर उनके दिमाग पर पड़ रहा है.”

(सभी बच्चों के नाम बदले हुए हैं)

(क्विंट हिन्दी, हर मुद्दे पर बनता आपकी आवाज, करता है सवाल. आज ही मेंबर बनें और हमारी पत्रकारिता को आकार देने में सक्रिय भूमिका निभाएं.)

सत्ता से सच बोलने के लिए आप जैसे सहयोगियों की जरूरत होती है
मेंबर बनें
×
×