राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (Consumer Court) ने एक फैसले में मुंबई के अस्पताल और डॉक्टर को 12 लाख रुपये से ज्यादा का मुआवजा एक मरीज के परिवार को देने के लिए कहा है. मरीज की 15 साल पहले सर्जरी के बाद मौत हो गई थी. मामले में डॉक्टर और अस्पताल लापरवाह पाए गए.
ऐसे में ये जानना जरूरी है कि अगर अस्पताल या डॉक्टर से लापरवाही हो तो आम आदमी शिकायत के लिए कहां जा सकता है? साथ ही एक मरीज के अधिकार क्या है?
अस्पताल या डॉक्टर द्वारा की गई लापरवाही की खबरें आती रहती है. कई बार फर्जी डॉक्टर के इलाज से गंभीर समस्या खड़ी हो जाती है या मरीज की मौत का मामला सामने आता है, कई बार ऑपरेशन के दौरान डॉक्टर से मेडिकल उपकरण शरीर में छूट जाता है तो कभी कोई और लापरवाही की वजह से मरीज जान गंवा बैठता है. हालांकि कई बार डॉक्टर मरीज को ना बचा पाए, उस केस में भी लोग डॉक्टर पर लापरवाही का आरोप लगा देते हैं. ऐसे में मेडिकल लापरवाही क्या है? ये समझते हैं.
नेशनल कंज्यूमर हेल्पलाइन के अनुसार, लापरवाही मतलब उचित देखभाल (इलाज) करने में विफलता को बताया गया है. यह तब होता है जब एक डॉक्टर अपने पेशे के मानकों (स्टैंडर्ड) को पूरा करने में फेल हो जाए.
मेडिकल लापरवाही की शिकायत कहां कहां दर्ज करवा सकते हैं?
1. अगर किसी डॉक्टर या अस्पताल की तरफ से लापरवाही होती है और आप इसकी शिकायत करना चाहते हैं तो कंज्यूमर कोर्ट यानी उपभोक्ता फोरम में शिकायत दर्ज कर सकते हैं. सबसे पहले इसकी शिकायत जिला उपभोक्ता फोरम में हो सकती है, इससे संतुष्टी न मिलने पर राज्य स्तर के फोरम और राष्ट्रीय स्तर पर भी शिकायत दर्ज की जा सकती है. अगर आपका क्लेम:
50 लाख रुपये तक है तो जिला आयोग
50 लाख रुपये से 2 करोड़ के बीच- तो राज्य आयोग
2 करोड़ रुपये से ज्यादा तो राष्ट्रीय आयोग
ध्यान रहे यहां शिकायत दर्ज करवाने के लिए अस्पताल का बिल होना जरूरी है. इसके अलावा शिकायत अदालतों में भी दर्ज की जाती है.
2. इसके अलावा अस्पताल या डॉक्टर के खिलाफ आप आपराधिक मामला एफआईआर के जरिए भी दर्ज कर सकते हैं. अगर डॉक्टर/अस्पताल की लापरवाही की वजह से किसी मरीज की मौत हो जाती है तो आईपीसी की धारा 304A के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है. इसके तहत दोषी को 2 साल की सजा और जुर्माना लगाया जाता है.
3. राज्य मेडिकल काउंसिल और इंडियन मेडिकल काउंसिल (IMC) में भी शिकायत दर्ज की जा सकती है. ये दोनों गवर्निंग बॉडी हैं और दोषी डॉक्टरों, अस्पतालों या नर्सिंग होम के खिलाफ आचार संहिता के हिसाब से कार्रवाई कर सकती हैं.
4. वहीं सरकारी या प्राइवेट अस्पताल में धोखाधड़ी या लापरवाही का केस अस्पताल के मेडिकल सुपरिटेंडेंट को भी लिख कर दें सकते हैं और मामले की जांच का अनुरोध कर सकते हैं. साथ ही नुकसान के भरपाई की मांग भी जरूर करें.
5. कई बार अस्पताल/डॉक्टर के अलावा बीमा कंपनी या उसके एजेंट की तरफ से भी धोखा मिल जाता है. ऐसी स्थिति में बीमा कंपनी के शिकायत निवारण अधिकारी को लिखित शिकायत करें. अगर दिए गए समय पर समस्या का निदान नहीं मिलता है तो IRDA (इंशॉरेंस रेगुलेटर) से शिकायत करें. इसके लिए टोल फ्री नंबर 155255 पर संपर्क करें.
क्या होते हैं मरीज के अधिकार?
नेशनल कंज्यूमर हेल्पलाइन के अनुसार:
मरीजों को अपनी बीमारी के बारे में जानने का पूरा अधिकार है
मरीजों को जो भी इलाज/दवाएं दी गई हैं, उनके बारे में समझाया जाना चाहिए
यदि कोई जोखिम है तो उन्हें जोखिमों और साइड इफेक्ट के बारे में बाताया जाना चाहिए
मरीजों को डॉक्टर की योग्यता जानने का अधिकार है
मरीजों को अपनी बीमारी के बारे में गोपनीयता बनाए रखने का अधिकार है और वे डॉक्टरों से भी यही उम्मीद कर सकते हैं
यदि मरीजों को दी गई दवाओं या इलाज के बारे में संदेह है तो उन्हें दूसरी राय (किसी अन्य डॉक्टर से) लेने का अधिकार है
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