यूनाइडेट किंगडम, अमेरिका, कनाडा जैसे देशों में वैक्सीन को मंजूरी दिए जाने के तत्काल बाद वैक्सीनेशन शुरू हो गया था. लेकिन भारत में वैक्सीन को मंजूरी देने के बाद भी अभी तक वैक्सीन की कीमत को लेकर सरकार और कंपनी में सहमति नहीं बन पाई है. सीरम इंस्टीट्यूट ने करीब 7 करोड़ कोरोना वैक्सीन शॉट पहले से ही वैक्सीन बनाकर रख लिए हैं. लेकिन बावजूद इसके सरकार और कंपनी वैक्सीन के प्राइस को लेकर सहमति नहीं बना पाए हैं.
सीरम के सीईओ अदार पूनावाला का कहना है कि भारतीय अधिकारियों ने मौखिक तौर पर 200 रुपए (2.74 डॉलर) की कीमत पर 100 मिलियन (1 करोड़ खुराक) वैक्सीन खरीदने पर सहमति जताई थी, जो कि यूके को दिए गए 4 से 5 डॉलर से काफी नीचे है. हम अगले 2 से 3 महीनों में अन्य कंपनियों को निजी तौर पर 1000 रुपए मूल्य पर वैक्सीन बेचना चाहते हैं.
7 करोड़ वैक्सीन बनकर तैयार, लेकिन अभी समझौता होना बाकी
सीरम इंस्टीट्यूट, जिसका एस्ट्राजेनेका के साथ मिलकर 10 करोड़ वैक्सीन बनाने का एग्रीमेंट है उसने पहले ही दिसंबर, 2020 तक अपने लक्ष्य को वापस ले लिया है। सीरम के सीईओ पूनावाला का कहना है कि जल्द ही सरकार के साथ हमारा लिखित समझौता हो जाएगा। इसके तहत हमारी 70 मिलियन (7 करोड़) वैक्सीन डिस्ट्रीब्यूशन के लिए तैयार हैं और हम जल्द ही इन्हें अलग-अलग राज्यों को भेजेंगे।
'सीरम इंस्टीट्यूट पर दबाव बना रही सरकार'
जैफरीज के हेल्थकेयर एनालिस्ट अभिषेक शर्मा का कहना है कि भारत सरकार सीरम पर दबाव बनाने की कोशिश कर रही है, ताकि वह अपनी वैक्सीन की कीमत कम रखे और इसका सीधा फायदा एक लोकल कंपनी द्वारा बनाई जा रही वैक्सीन को मिल सके. दरअसल, दो कंपनियों की लड़ाई में देश और जनता का कीमती वक्त खर्च हो रहा है.
अमीर देशों में नहीं हुए ये विवाद
एक तरफ जहां देश में कोरोना संक्रमण 1 करोड़ को पार कर चुका है, वहीं वैक्सीन कंपनियों के निजी हित और मुनाफाखोरी बताती है कि ये जल्द से जल्द इस महामारी से मिले अवसर को भुनाना चाहते हैं. वहीं, अगर अमीर और विकसित देशों की बात करें तो उन्होंने अपने आप को मूल्य विवादों से बचाकर रखा है. कोरोना की वजह से जहां दुनियाभर में हर रोज 10 हजार से ज्यादा मौतें हो रही हैं, ऐसे में वैक्सीन कंपनियों को अपने निजी हितों को अलग रखकर काम करना होगा
भारत में करीब 130 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाने के लिए अर्थव्यवस्था पर काफी बोझ पड़ेगा. ऐसे में सरकार चाहेगी कि उसे कम से कम कीमत में वैक्सीन उपलब्ध हो जाए. कोविड-19 मैनेजमेंट के लिए मोदी की टास्कफोर्स के सदस्य और एम्स के डायरेक्टर रणदीप गुलेरिया के मुताबिक, जब आप थोक में वैक्सीन खरीद रहे हैं तो इसके लिए कीमत को लेकर हुई बातचीत का फायदा जरूर मिलना चाहिए.
ब्यूरोक्रेट्स पर होता है बेहतर डील का दबाव
सेंटर फॉर डिसीज डायनेमिक्स इकोनॉमिक्स एंड पॉलिसी के संस्थापक रामन लक्ष्मीनारायण के मुताबिक, सरकार कभी भी निजी क्षेत्र को आसानी से पैसा नहीं देती है, क्योंकि उनके पास भी बजट का प्रेशर होता है। ब्यूरोक्रेट्स अगर किसी कंपनी से बैड डील करते हैं तो उस विभाग के मंत्री उन्हें दोबारा आदेश देते हैं कि इससे बेहतर और कम कीमत पर डील फाइनल करवाओ।
'प्राइवेट यूज के लिए नहीं दी जाए मंजूरी'
वहीं, स्वास्थ्य पर नजर रखने वाली संस्था ऑल इंडिया ड्रग एक्शन नेटवर्क की सह-संयोजक मालिनी आइसोला के मुताबिक 1000 रुपए प्रति वैक्सीन की प्रस्तावित कीमत लगाकर कंपनी का मकसद अपनी स्थिति को पूरी तरह कंट्रोल में करने और लाभ उठाने का है. उनका कहना है कि 'मुझे नहीं लगता है कि ऐसे वक्त में कंपनी को उनके प्राइवेट यूज के लिए अनुमति देनी चाहिए. वहीं सीरम इंस्टीट्यूट के पूनावाला का कहना है कि भारत को सबसे पहले जरूरतमंदों के लिए पर्याप्त वैक्सीन का इंतजाम करना जरूरी है.'
वहीं लक्ष्मीनारायण का कहना है कि भारत हर साल सीरम इंस्टीट्यूट से बड़ी मात्रा में वैक्सीन खरीदता है और उन्हें मालूम है कि इनसे किस तरह डील करना है. भारत थोड़ा और इंतजार कर सकता है लेकिन सीरम के लिए ये उतना आसान नहीं होगा, क्योंकि सरकार के पास उनको झुकाने के कई तरीके हैं.
जिन 2 वैक्सीन को भारत सरकार ने मंजूरी दी है उनमें कोवीशील्ड और कोवैक्सीन शामिल हैं. कोविशील्ड को ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका ने मिलकर बनाया है. इसे भारत में पुणे के अदार पूनावाला की सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) बना रहा है. वहीं, कोवैक्सिन स्वदेशी वैक्सीन है, जिसे भारत बायोटेक ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) के साथ मिलकर बनाया है.
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