असंतोष, प्रतिरोध की आवाजें सरकारों को अच्छी नहीं लगती, चाहे वो कितनी भी धीमी हों. ऐसी ही एक बेहद धीमी आवाज दिल्ली से गूंजी. यहां कुछ इलाकों में एक ब्लैक एंड व्हाइट पोस्टर चिपकाया गया था. इस पर लिखा था- 'मोदी जी, हमारे बच्चों की वैक्सीन विदेश क्यों भेज दी'. इसी पोस्टर को लेकर 13 मई को गिरफ्तारियां शुरू हुईं और 24 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तारी का कारण बताया गया है कि कोरोना महामारी के बीच पोस्टर लगाना DDMA गाइडलाइंस का उल्लंघन है. इस मामले में सुप्रीम में याचिका भी डाली गई है और FIR रद्द करने की अपील की गई है.
अब पोस्टर पर लिखे इस सवाल को अगर दिल्ली के कुछ इलाकों में चस्पा किया गया था तो गिरफ्तारियों की जरूरत थी? और इसका असर क्या हुआ? इन दोनों सवालों के जवाब जरूरी हैं.
गिरफ्तारियों के खिलाफ विपक्ष एकजुट, सोशल मीडिया पर दिखा रहा ताकत
पोस्टर वाली एक छोटी सी विरोध की चिंगारी को रोकने के चक्कर में सरकार के विरोध में पूरा विपक्ष लामबंद है. कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस समेत कई पार्टियों के नेता ट्विटर पर अपनी प्रोफाइल पिक्चर में ये पोस्टर लगा रहे हैं और खुद की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी, टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा, आम आदमी पार्टी नेता संजय सिंह समेत तमाम नेता खुद की गिरफ्तारी की बात कह रहे हैं और ये भी कह रहे हैं कि वैक्सीन पर पीएम मोदी से पूछे गए इस सवाल में कुछ भी गलत नहीं हैं.
वहीं विपक्ष के इन नेताओं से अलग कई बुद्धिजीवी, कलाकार, पत्रकार, वकील भी इन गिरफ्तारियों को गलत बताकर कह रहे हैं कि- 'आओ हमें भी गिरफ्तार कर लो'.
कुल मिलाकर जिस विरोध को रोकने के लिए दिल्ली पुलिस धड़ाधड़ गिरफ्तारियां कर रही थी, वो विरोध अब खुले तौर पर हो रहा है और वो पोस्टर जो हो सकता था कि दिल्ली के कुछ इलाकों के लोगों की नजरों तक सीमित रह सकता था अब वो सोशल मीडिया के जरिए, ट्विटर-फेसबुक-वॉट्सअप के जरिए शहर-शहर पहुंच रहा है.
'मोदी जी, हमारे बच्चों...' ये सवाल क्यों पूछा जा रहा है?
आम आदमी पार्टी ये दावा कर रही है कि पूरी दिल्ली में पोस्टर पार्टी की तरफ से ही लगवाए गए हैं. जिन लोगों की गिरफ्तारी हुई है, उसमें कुछ आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता भी हैं. अब ये सवाल किसी एक पार्टी का न होकर पूरे विपक्ष और सोशल मीडिया पर एक बहुत बड़े धड़े का कैसे हो गया?
दरअसल, कोरोना संक्रमण जिस रफ्तार से फैला है, उसको रोकने में सबसे असरदार वैक्सीनेशन उसी रफ्तार से नहीं हो पा रहा है. देश की कुल आबादी का एक मामूली हिस्सा ही कोरोना वैक्सीन लगवा पाने में अबतक कामयाब रहा है. अब भी लंबी दौड़ बाकी है लेकिन वैक्सीन कहां है?
सरकार के मुताबिक, जुलाई तक उसने 51 करोड़ वैक्सीन का इंतजाम किया है. यानी 25 करोड़ लोग. यानी 18 फीसदी आबादी, जबकि एक्सपर्ट्स का कहना है कि 60-70 फीसदी आबादी को वैक्सीन लगे तो ही कोरोना को काबू में किया जा सकता है.
अब ऐसे में विपक्षी पार्टियां ये पूछ रही हैं कि जब खुद के पास इंतजाम नहीं था तो दूसरे देशों को वैक्सीन डोनेट क्यों किया गया? आरोप है कि फर्स्ट वेव और सेकेंड वेव के बीच जो गैप था उसमें मोदी सरकार वैक्सीन डिप्लोमेसी पर ज्यादा और देश को कोरोना से बचाने पर कम काम करती दिखी. वैक्सीन देकर किसी भी देश के नागरिक की जान बचाने में किसी को कोई आपत्ति नहीं है लेकिन ये तब किया जाता जब खुद के देश में लोगों की जान सुरक्षित रहने की व्यवस्था रहती.
बीबीसी की एक रिपोर्ट में विदेश मंत्रालय के आंकड़ों का जिक्र है. इसके मुताबिक, भारत ने 90 देशों को 6 करोड़ 60 लाख वैक्सीन दी है. ये अलग-अलग कैटेगरी में दी गई हैं. इनमें से 16 फीसदी दान में दिया गया है.
वैक्सीन बाहर भेजने पर सरकार से लगातार सवाल पूछा जा रहा था लेकिन पोस्टर पर गिरफ्तारियों ने विपक्ष को एकजुट और हमलावर होने की वजह दे दी. आम आदमी पार्टी ने तो एक कदम आगे बढ़कर उन देशों की लिस्ट शेयर कर दी जिन्हें भारत ने वैक्सीन भेजी.
ये लिस्ट कितनी सही है या नहीं, कह नहीं सकते लेकिन ये बीजेपी की राजनीति के लिए सही नहीं है, ये तो जरूर कह सकते हैं.
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