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नोटबंदी से ग्रामीण भारत का बैंकिंग सिस्टम प्रभावित

ग्रामीण भारत का वह 93 फीसदी हिस्सा जो बैंकों से अछूता है, उन इलाकों में बैंक मित्र काम करते हैं.

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भारत
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8 नवंबर की शाम आठ बजे. पीएम मोदी देश एक फैसला सुनाते हैं. एक फैसला जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक बैंक मैनेजर की रातों की नींद छीन लेता है. ये इसलिए क्योंकि उसके बैंक में जमा धनराशि का ज्यादातर हिस्सा 500 और 1000 रुपये को नोटों में है.

जैसे ही मैंने सुना कि 500 और 1000 रुपए के नोट 4 घंटे बाद बेकार हो जाएंगे, मैं स्तब्ध रह गया. हमारी बैंक में छोटे नोटों के नाम पर बहुत कम रकम थी.
बैंक मैनेजर

इस बैंक मैनेजर की ब्रांच में सौ नोटों के रूप में छह लाख, 20 रुपए के नोटों के रूप में साढ़े पांच लाख और 10 रुपए के नोटों के रूप में 90 हजार रुपए की रकम मौजूद थी. जबकि ब्रांच में कुल 60 लाख रुपए का कैश मौजूद था. बैंक मैनेजर ने यह भी बताया कि उसकी ब्रांच में 50 रुपए के नोट नहीं थे.

बैंकिंग सिस्टम पर पड़ा बड़ा असर

प्रधानमंत्री मोदी के नोटबंदी के फैसले से बैंकिंग सिस्टम बुरी तरह प्रभावित हुआ है. खासतौर पर देश के ग्रामीण इलाकों में मौजूद बैंक और उनसे जुड़े खाताधारकों के लिए. अर्थशास्त्रियों को भले ही इस बात का ठीकठीक अंदाजा नहीं है कि इस नोटबंदी के फायदे क्या होंगे? लेकिन इतना स्पष्ट है कि ग्रामीण इलाकों में बैंकिंग सिस्टम पर बड़ा असर पड़ा है.

रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, ग्रामीण भारत के 81 फीसदी नागरिक बैंकों के बिना जी रहे हैं. वहीं अर्बन इंडिया में ये आंकड़ा शून्य है.

ग्रामीण भारत का वह 93 फीसदी हिस्सा जो बैंकों से अछूता है, उन इलाकों में बैंक मित्र काम करते हैं. एक आंकड़े के मुताबिक, ऐसे इलाकों में फिलहाल 1.2 लाख बैंक मित्र अपनी सेवाएं दे रहे हैं. यही बैंक मित्र गांवों के बाजार को बैंकों से जोड़ने का काम करते हैं.

लगातार काम कर रहे हैं बैंक मित्र

आठ नवंबर के बाद से गांवों में रहने वाले लोग अपने पुराने नोट बदलवाने के लिए बेताव हैं. इनमें से कुछ बैंकों तक पहुंच पा रहे हैं, जबकि बाकी बैंक मित्रों का सहारा ले रहे हैं. ऐसे ही इलाके में काम कर रहे एक बैंक मित्र ध्रुव नारायण की मानें तो नोटबंदी के फैसले के बाद बैंक मित्रों को आम दिनों के मुकाबले ज्यादा काम करना पड़ रहा है.

अब दो उदाहरणों से समझिए कि नोटबंदी के फैसले से कस्बे में काम करने वाले बैंक मैनेजर और गांवों में काम करने वाले बैंक मित्र की जिंदगी पर क्या फर्क पड़ा है? दोनों ही इस योजना के समर्थन में काम कर रहे हैं लेकिन फिर भी गांव में रहने वाले लोगों को लाभ पहुंचाने में असफल होते नजर आ रहे हैं.



ग्रामीण भारत का वह 93 फीसदी हिस्सा जो बैंकों से अछूता है, उन इलाकों में बैंक मित्र काम करते हैं.
(फोटोः RBI)

ग्रामीण इलाकों की बैंकों को नहीं मिल रहा पर्याप्त कैश

पीएम मोदी की नोटबंदी की घोषणा के बाद 9 नवंबर को पूरे देशभर में सभी बैंक पब्लिक के लिए बंद रहे. इस दिन सभी बैंकों के मैनेजरों ने अपने सर्किल ऑफिस से कैश के लिए संपर्क किया.

हमने अपने करीब 40,000 अकाउंट होल्डर्स को सुविधा देने के लिए 25 लाख रुपए की मांग की. आमतौर पर त्योहारों के दिनों में हम औसतन 40 लाख रुपए का एक दिन में भुगतान करते हैं. अगले दिन कैश एक्सचेंज कराने के लिए बैंक के बाहर सैकड़ों लोग लाइन में खड़े दिखे. और हमारे सर्किल ऑफिस ने हमें सिर्फ 4 लाख रुपए कैश भेजा था.
बैंक मैनेजर

मैनेजर से लेकर कैशियर तक बैंक के सभी स्टाफ को छुट्टियों से वापस बुला लिया गया. किसी ग्राहक को 2000 रुपए मिले तो किसी को 1200 रुपए. दिनभर के काम के बाद आखिरकार ब्रांच रात नौ बजे बंद हो गई. 'हमने काम बंद कर दिया और कैश रिप्लेसमेंट का इंतजार करने लगे."



ग्रामीण भारत का वह 93 फीसदी हिस्सा जो बैंकों से अछूता है, उन इलाकों में बैंक मित्र काम करते हैं.

बैंक के सभी कर्मचारी सुबह तीन बजे वापस अपने घर जा पाए. अगले दिन दोबारा सर्किल ऑफिस से 25 लाख रुपए कैश की मांग की गई लेकिन दोबारा भी "हमें सिर्फ 4 लाख रुपए कैश ही भेजा गया."

अगले दिन भी लोग कैश एक्सचेंज कराने के लिए उतावले हो रहे थे. शादियों का सीजन चल रहा है, ऐसे में सभी को पैसों की जरूरत है.

हमने लोगों को कहा कि वे बैंक का समय खत्म होने के बाद प्रूफ के तौर पर शादी के कार्ड की कॉपी लेकर आएं, फिर हम उन्हें 5000 रुपए देने की कोशिश करेंगे. इसके अलावा हम और क्या कर सकते थे?
बैंक मैनेजर

इसके बाद बैंक मैनेजर को दोबारा ज्यादा कैश मांगने में बुरा लगा, क्योंकि वह जानता था कि ग्रामीण इलाकों की सभी बैंकों के साथ यही हो रहा था.



ग्रामीण भारत का वह 93 फीसदी हिस्सा जो बैंकों से अछूता है, उन इलाकों में बैंक मित्र काम करते हैं.

बैंक मित्रों को भी नहीं मिल रहा है कैश

9 नवंबर के बाद से बैंक मित्र के तौर पर काम कर रहे ध्रुव यादव की नींद भी बैंक मैनेजर के कॉल से ही खुलती है. बडया बुजुर्ग गांव में रहने वाले यादव एक इंसानी एटीएम की तरह काम कर रहे हैं. गांवों में रहने वाले खाताधारक उनकी छोटी दुकान में आते हैं और एक दिन में बीस हजार रुपए तक की रकम जमा करते हैं या फिर इतनी ही रकम निकालते हैं.

यादव इन खाता धारकों का लेखा-जोखा अपने कम्प्यूटर में रखते हैं. साथ ही खाता धारकों की पासबुक पर भी इसकी एंट्री करते हैं.

हालांकि ध्रुव ने अब, अपने खाता धारकों को कह दिया है कि वह केवल 2000 रुपए ही जमा कर सकते हैं या फिर इतनी ही रकम निकाल सकते हैं. हालांकि अभी नोट नहीं बदल सकते हैं.

ध्रुव जब बैंक जाते हैं तो उन्हें ब्रांच कैश देती है, ताकि वह गांव में रहने वाले खाता धारकों को जरूरत पढ़ने पर पैसा मुहैया करा सकें.

बैंक मित्र ध्रुव ने बताया- मुझे बैंक ने कुल 12000 रुपए दिए और कहा कि इस पैसे को मैं 25 लोगों में बांट दूं.


ग्रामीण भारत का वह 93 फीसदी हिस्सा जो बैंकों से अछूता है, उन इलाकों में बैंक मित्र काम करते हैं.

ध्रुव बताते हैं, 'एक दिन मेरे पास एक महिला आई. उसने कहा कि उसके बच्चे को निमोनिया है. अगर पैसे नहीं दिए तो वह मर जाएगा."

ध्रुव ने बताया कि 8 नवंबर के बाद से अबतक केवल उसी महिला को उन्होंने 2000 रुपए दिए. उन्होंने यह भी कहा कि वह चाहते तो वह उसे और भी रुपए दे सकते थे, लेकिन वह नियमों को तोड़ना नहीं चाहते थे."

इसके बाद उस महिला ने अपने पति को पैसे लाने के लिए कहा. लेकिन ध्रुव अबतक पैसों का इंतजार कर रहे हैं.

इस बीच, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पैसों के इंतजार में अबतक करीब 30 लोगों की मौत हो चुकी है.

14 नवंबर को आर्थिक मामलों के सचिव शक्तिकांत दास ने पत्रकारों से बात करते हुए कहा, "लोगों को परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है."

उत्तर प्रदेश में अब बैंक मैनेजर कड़े फैसले ले रहे हैं. 16 नवंबर को नोटबंदी के एक हफ्ते बाद उनकी ब्रांच को 20 लाख रुपए मिले हैं. इसलिए अब उन्होंने खाता धारकों को 1000 रुपए कैश मुहैया कराने का फैसला लिया है.

बैंक ब्रांच के स्टाफ को ज्यादा घंटों तक काम करना पड़ रहा है. बैंक खुलने से 4 घंटे पहले ही ब्रांच के बाहर सुबह 5 बजे से लोगों की लाइनें लग जाती हैं. ग्राहकों के साथ-साथ बैंक स्टाफ को भी भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.

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